मढडा संमेलन मां आई मां नुं त्रीजु प्रवचन
' ज्योतिष मां जे होय ते, पण मने उंडे उंडे शंका रहे छे के मारू आयुष्य ओछुं छे. पण तोय मारी फरज तो मारे बजाववी ज जोईऐ. परंतु कोई नो उद्धार बीजु कोई करे, ऐम हुं मानती नथी. पोतानो उद्धार सौऐ पोते ज करवानो छे. भोमियो तो मार्ग बतावे. चालवानुं तो पोते ज होय छे. नातमां मारा हरवा फरवाथी वातावरण सुधरी जशे, ऐवु निश्वित तो न ज कहेवाय. छतांय मारे माटे तो ऐ ऐक तीर्थ यात्रा थाय. ज्ञाति पण गंगा छे. अहिं तमे सौ आव्या छो ते ज्ञाति गंगानी ऐक धारा छे. पण ऐ गंगानुं समग्र दर्शन तो गामडे गामडे अने झुंपडे झुंपडे फरवाथी थाय. ऐटले ज्ञातिनुं भलुं करवा करतां मारा पोताना आ स्वार्थ खातर हुं पिंगलशीभाईना कहेवा प्रमाणे मारा आयुष्यनो बनी शके तेटलो बधो भाग ज्ञाति सेवा करवानुं वचन आपु छु.'
ताळीओना गडगडात अने सोनल मातकी जय ना घोष थी मढडानुं आकाश गाजी उठयुं. हर्ष नादो थया. हजारोनां ह्रदयोमा उजळा भविष्यना आशादीप प्रागट्या. सेवानुं व्रत लीधेला पु. आई मा सोनल साक्षात शारदा ना रूप मा सौनो नजरे देखाया. थोड़ीवारे वातावरण शांत थयुं, ऐटले पोते फरीथी बोल्या के :-
" शंकरदानजी ने तबीयत सारी नथी रहेती. ठारणभाई पण वृद्ध थई गया छे. ऐटले कामनो बधोय बोजो भगत जी अने मेरुभाई ऐ उपाडवानो छे. अ ऐमणे घणु काम कर्यु छे ते माटे ऐमनी प्रशंसा नहि करु. पण उलटु हुं ऐमने ठपको आपवानी छु. का मेरुभाई ! आपुं ने ठपको ! मेरुभाई ऐ हाथ जोडी हसता हसता कह्यु के ' हां माडी ! आपो ठपको ' ऐटले पू. आई मा ऐ हसता हसता कह्यु के :-
" तमारी बंनेनी शकितना चार आनाज अत्यार सुधी ज्ञातिनी सेवामां खर्चाणा छे. पूरा सोळे सोळ आना जो ज्ञाति सेवा मां खर्चाया होत, तो ज्ञाति घणी आगळ वधी जात. पण तमे पण वेवार मा बेठा छो, ऐटले ऐना काम पण करवा पड़े. पण भगतजीने तो सौ बापु कहे छे. ऐटले बापु थनारनी जवाबदारी पण तेटली वधारे छे. साथे साथे बापु कहेनाराओ ऐ पण पूर्ण श्रध्धाथी बापुना बोल ने भगताजीना बोल ने उठावी लेवो जोईऐ.* ऐटले आपणे सौ ऐ हवे अवकाश लई ने आपणी बधी शकित ज्ञाति सेवा मा खर्ची जोईऐ, तो हवे भगतजी अने मेरुभाई पण प्रतिज्ञा ल्ये ( आम कही पोते जराक हस्या) के ज्ञाति सेवामां तन मन बधुं अर्पण करशुं. जे करवानुं छे, ते तमारे ज करवा नुं छे. आ तो तमे बधाऐ कह्यु ऐटले हुं नातमां फरीश , पण मारू स्थान तो आई ना ओरडा मा छे. ऐटले भगतजी अने मेरुभाई ऐ बधी जवाबदारी उपाडी लेवी जोईऐ. आना थी विशेष मारे कंई कहेवानुं नथी. जय माताजी जय अंबे"
संदर्भ :- पिंगळशीभाई पायक रचित मातृदर्शन मांथी पाना नंबर 384 पर थी
वंदे सोनल मातरम्
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