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31 जुलाई 2017
ओछु भणेला गढवी दंपतिना बे संतानो कलास वन अधिकारी बन्या
शिव ने भजो जीव दिन रात
શિવ ને ભજો જીવ દિન રાત (શિવ-સ્તુતિ)
આપનો પવિત્ર શ્રાવણ માસ નો બીજો સોમવાર શિવ મહી બને અને ભોલેનાથ ની દયા હમેશાં તમારા ઉપર રહે એવી શુભેચ્છા સહ તમામ ને જય માતાજી જય સોનલ.
30 जुलाई 2017
नागदमण ग्रंथ विमोचन अहेवाल
डॉ. दिलीपभाई चारण
मो - 9825148840
|| बनास दुर्घटना || || कर्ता मितेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||
*||रचना:वरसाद नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया||*
*||कर्ता:मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
*वरसादी ने कारणे बनास मा जे पुर आव्यू एमा घणाय ना जीव जता रया,घणा ने ईजा थै,घणा ना पाक बगड़ी गया तो घणाय रखड़ी पड्या,कुदरत ना आवा केर पर भगवान ने जराय दया न आवी*
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया(टेक)
जीव हण्या जोने,जेह जीवताता,
आतम तू आधार,
विफरी मारया कैक ने वेगे,
ध्रुजवी नाखी धार,
वहावी नीर विखेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(1)
कैक बहेनो ए भाई ने खोया,
ममताए कोई बाळ,
घर मोभी जेना एक अजवाळा,
एवा कैक पिता ने काळ,
भरखी ने मोत ने भेर्या,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया.(2)
धान खेडु ना खोरवी खाधा,
अने अन्न दाणाय अपार,
भूख प्यासी बन भमता कैको,
रंक थया घर बार,
विरह ना द:ख ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(3)
रझडाया एना रंग राजीना,
ने *मीत*खोया मन मार,
स्थिर थिए समसान सरजाणु,
ठेर पड्या नीर ठार,
कुदरत माथे कोप कहेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(4)
*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*
*कवि मीत*
मैं चारण हूँ सत्य के सिवा लिखता नही डॉ प्रेम दान भारतीय। चराण गाडण
चारण सम्मेलन का मोल तब होगा डॉ प्रेम दान भारतीय चारण (गाडण )
29 जुलाई 2017
चारण कवी दुर्शाजी आढ़ा
चारण कवी दुर्शाजी आढ़ा
की सभा में अकबर के समक्ष खड़े होकर बिना डरे
महाराणा प्रताप के नाम से 76 दुहे बना कर सुनाये
थे जो "बिरद छहुतरि" के नाम से जाना गया।
( चारण कवी दुरसाजी आढा रचित महाराणा प्रताप
की प्रशस्ती के दोहे - संपुर्ण 'बिरद छहुंतरी' )
अलख धणी आदेश, धरमाधार दया निधे,
बरणो सुजस बेस, पालक धरम प्रतापरो. (१)
गिर उंचो गिरनार, आबु गिर ओछो नही ;
अकबर अघ अंबार, पुण्य अंबार प्रतापसीं. (२)
वुहा वडेरा वाट, वाट तिकण वेहणो विसद ;
खाग, त्याग, खत्र वाट, पाले राण प्रतापसीं. (३)
अकबर गर्व न आण, हिन्दु सब चाकर हुआ ;
दिठो कोय दहिवाण, करतो लटकां कठहडे. (४)
मन अकबर मजबूत, फुट हिन्दुआ बेफिकर ;
काफर कोम कपूत, पकडो राण प्रतापसीं. (५)
अकबर किना याद, हिन्दु नॄप हाजर हुआ ;
मेद पाट मरजाद, पोहो न आव्यो प्रतापसीं. (६)
मलेच्छां आगळ माथ, नमे नही नर नाथरो,
सो करतब समराथ, पाले राण प्रतापसी. (७)
कलजुग चले न कार, अकबर मन आंजस युंही ;
सतजुग सम संसार, प्रगट राण प्रतापसीं. (८)
कदे न नमावे कंध, अकबर ढिग आवेने ओ ;
सुरज वंश संबंध, पाले राण प्रतापसी. (९)
चितवे चित चितोड, चित चिंता चिता जले ;
मेवाडो जग मोड, पुण्य घन प्रतापसीं. (१०)
सांगो धरम सहाय, बाबर सु भिडीयो बहस ;
अकबर पगमां आय, पडे न राण प्रतापसी. (११)
अकबर कुटिल अनित, और बटल सिर आदरे ;
रघुकुल उतम रीत, पाले राण प्रतापसी. (१२)
लोपे हिन्दु लाज, सगपण रों के तुरक सु ;
आर्य कुल री आज, पुंजी राण प्रतापसीं. (१३)
सुख हित शिंयाळ समाज, हिन्दु अकबर वश हुआ ;
रोशिलो मॄगराज, परवश रहे न प्रतापसी. (१४)
अकबर फुट अजाण, हिया फुट छोडे न हठ ;
पगां न लागळ पाण, पण धर राण प्रतापसीं. (१५)
अकबर पत्थर अनेक, भुपत कैं भेळा कर्या ;
हाथ न आवे हेक, पारस राण प्रतापसीं. (१६)
अकबर नीर अथाह, तह डुब्या हिन्दु तुरक ;
मेंवाडो तिण मांह, पोयण राण प्रतापसीं. (१७)
जाणे अकबर जोर, तो पण ताणे तोर तीड ;
आ बदलाय छे ओर, प्रीसणा खोर प्रतापसीं. (१८)
अकबर हिये उचाट, रात दिवस लागो रहे ;
रजवट वट सम्राट, पाटप राण प्रतापसीं. (१९)
अकबर घोर अंधार, उंघांणां हिन्दु अवर ;
जाग्यो जगदाधार, पहोरे राण प्रतापसीं. (२०)
अकबरीये एकार, दागल कैं सारी दणी ;
अण दागल असवार, पोहव रह्यो प्रतापसीं. (२१)
अकबर कने अनेक, नम नम निसर्या नरपती ;
अणनम रहियो एक, पणधर राण प्रतापसीं. (२२)
अकबर है अंगार, जाळे हिन्दु नृप जले ;
माथे मेघ मल्हार, प्राछट दिये प्रतापसीं. (२३)
अकबर मारग आठ, जवन रोक राखे जगत ;
परम धरम जस पाठ, पीठीयो राण प्रतापसीं. (२४)
आपे अकबर आण, थाप उथापे ओ थीरा ;
बापे रावल बाण, तापे राण प्रतापसीं. (२५)
है अकबर घर हाण, डाण ग्रहे नीची दिसट ;
तजे न उंची ताण, पौरस राण प्रतापसीं. (२६)
जग जाडा जुहार, अकबर पग चांपे अधिप ;
गौ राखण गुंजार, पिले रदय प्रापसीं. (२७)
अकबर जग उफाण, तंग करण भेजे तुरक ;
राणावत रीढ राण, पह न तजे प्रतापसीं. (२८)
कर खुशामद कुर, किंकर कंजुस कुंकरा ;
दुरस खुशामद दुर, पारख गुणी प्रतापसीं. (२९)
हल्दीघाटी हरोळ, घमंड करण अरी घणा ;
आरण करण अडोल, पहोच्यो राण प्रतापसीं. (३०)
थीर नृप हिन्दुस्तान, ला तरगा मग लोभ लग ;
माता पुंजी मान, पुजे राण प्रतापसीं. (३१)
सेला अरी समान, धारा तिरथ में धसे ;
देव धरम रण दान, पुरट शरीर प्रतापसीं. (३२)
ढग अकबर दल ढाण, अग अग जगडे आथडे ;
मग मग पाडे माण, पग पग राण प्रतापसीं. (३३)
दळ जो दिल्ली हुंत, अकबर चढीयो एकदम ;
राण रसिक रण रूह, पलटे किम प्रतापसीं. (३४)
चित मरण रण चाय, अकबर आधिनी विना ;
पराधिन पद पाय, पुनी न जीवे प्रतापसीं. (३५)
तुरक हिन्दवा ताण, अकबर लागे एकठा ;
राख्यो राणे माण, पाणा बल प्रतापसीं. (३६)
अकबर मच्छ अयाण, पुंछ उछालण बल प्रबल ;
गोहिल वत गहेराण, पाथोनीधी प्रतापसीं. (३७)
गोहिल कुळ धन गाढ, लेवण अकबर लालची ;
कोडी दिये ना काढ, पणधर राण प्रतापसीं. (३८)
नित गुध लावण नीर, कुंभी सम अकबर क्रमे ;
गोहिल राण गंभीर, पण न गुंधले प्रतापसीं. (३९)
अकबर दल अप्रमाण, उदयनेर घेरे अनय ;
खागां बल खुमाण, पेले दलां प्रतापसीं. (४०)
दे बारी सुर द्वार, अकबरशा पडियो असुर ;
लडियो भड ललकार, प्रोलां खोल प्रतापसीं. (४१)
उठे रीड अपार, पींठ लग लागां प्रिस ;
बेढीगार बकार, पेठो नगर प्रतापसीं. (४२)
रोक अकबर राह, ले हिन्दुं कुकर लखां ;
विभरतो वराह, पाडे घणा प्रतापसीं. (४३)
देखे अकबर दुर, घेरा दे दुश्मन घणा ;
सांगाहर रण सुर, पेड न खसे प्रतापसीं. (४४)
अकबर तलके आप, फते करण चारो तरफ ;
पण राणो प्रताप, हाथ न चढे हमीरहर. (४५)
अकबर दुरग अनेक, फते किया नीज फौज सु ;
अचल चले न एक, पाधर राण प्रतापसीं. (४६)
दुविधा अकबर देख, किण विध सु घायल करे ;
पवंगा उपर पेख, पाखर राण प्रतापसीं. (४७)
हिरदे उणा होत, सिर धुणा अकबर सदा ;
दिन दुणा देशोत, पुणा वहे न प्रतापसीं. (४८)
कलपे अकबर काय, गुणी पुगी धर गौडीया ;
मणीधर साबड मांय, पडे न राण प्रतापसीं. (४९)
मही दाबण मेवाड, राड चाड अकबर रचे ;
विषे विसायत वाड, प्रथुल वाड प्रतापसीं. (५०)
बंध्यो अकबर बेर, रसत घेर रोके रीपुं ;
कन्द मुल फल केर, पावे राण प्रतापसीं. (५१)
भागे सागे भोम, अमृत लागे उभरा ;
अकबर तल आराम, पेखे राण प्रतापसीं. (५२)
अकबर जिसा अनेक, आव पडे अनेक अरी ;
असली तजे न एक, पकडी टेक प्रतापसीं. (५३)
लांघण कर लंकाळ, सादुळो भुखो सुवे ;
कुल वट छोड क्रोधाळ, पैड न देत प्रतापसीं. (५४)
अकबर मेगल अच्छ, मांजर दळ घुमे मसत ;
पंचानन पल भच्छ, पट केछडा प्रतापसीं. (५५)
दंतीसळ सु दुर, अकबर आवे एकलो ;
चौडे रण चकचुर, पलमें करे प्रतापसीं. (५६)
चितमें गढ चितोड, राणा रे खटके रयण ;
अकबर पुनरो ओड, पेले दोड प्रतापसीं. (५७)
अकबर करे अफंड, मद प्रचंड मारग मले ;
आरज भाण अखंड, प्रभुता राण प्रतापसीं. (५८)
घट सु औघट घाट, घडीयो अकबर ते घणो ;
ईण चंदन उप्रवाट, परीमल उठी प्रतापसीं. (५९)
बडी विपत सह बीर, बडी किरत खाटी बसु ;
धरम धुरंधर धीर, पौरुष घनो प्रतापसीं. (६०)
अकबर जतन अपार, रात दिवस रोके करे ;
पंगी समदा पार, पुगी राण प्रतापसीं. (६१)
वसुधा कुल विख्यात, समरथ कुल सीसोदिया ;
राणा जसरी रात, प्रगट्यो राण भलां प्रतापसीं.
(६२)
जीणरो जस जग मांही, ईणरो धन जग जीवणो ;
नेडो अपयश नाही,प्रणधर राण प्रतापसीं. (६३)
अजरामर धन एह, जस रह जावे जगतमें ;
दु:ख सुख दोनुं देह, पणीए सुपन प्रतापसीं. (६४)
अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दुसरा ;
पुनरासी प्रताप, सुजन जीसी सुरमा. (६५)
सफल जनम सदतार, सफल जोगी सुरमा ;
सफल जोगी भवसार, पुर त्रय प्रभा प्रतापसीं.
(६६)
सारी वात सुजाण, गुण सागर ग्राहक गुणा ;
आयोडो अवसाण, पांतरेयो नह प्रतापसीं. (६७)
छत्रधारी छत्र छांह, धरमधार सोयो धरा ;
बांह ग्रहयारी बांह, प्रत नतजे प्रतापसीं. (६८)
अंतिम येह उपाय, विसंभर न विसारीये ;
साथे धरम सहाय, पल पल राण प्रतापसीं. (६९)
मनरी मनरे मांही, अकबर रहेसी एक ज ;
नरवर करीये नांही, पुरण राण प्रतापसीं. (७०)
अकबर साहत आस, अंब खास जांखे अधम ;
नांखे रदय निसास, पास न राण प्रतापसीं. (७१)
मनमें अकबर मोद, कलमां बिच धारे न कुट ;
सपना में सीसोद, पले न राण प्रतापसीं. (७२)
कहैजो अकबर काह, सेंधव कुंजर सामटा ;
बांसे से तरबांह, पंजर थया प्रतापसीं. (७३)
चारण वरण चितार, कारण लख महिमा करी ;
धारण कीजे धार, परम उदार प्रतापसीं. (७४)
आभा जगत उदार, भारत वरस भवान भुज ;
आतम सम आधार, पृथ्वी राण प्रतापसीं. (७५)
काव्य यथारथ कीध, बिण स्वारथ साची बिरद ;
देह अविचल दिध, पंगी रूप प्रतापसीं. (७६)
भकतकविश्री सांयाजी झुला रचित नागदमण ग्रंथ विमोचन
28 जुलाई 2017
GPSC द्रारा लेवायेल कलास-1-2 नी परीक्षा परीणाम
(4) यशपाल प्रकाशदान गढवी (ईसराणी) (जामनगर)
27 जुलाई 2017
केज्यो आवस्युं काल
वरसाद ना वातावरण मां बहार गाम गयेल घरधणी पोताना घरे समाचार कहेवडावे छे के आजे नई अवाय काले आवस्युं.. एनुं कारण दर्सक गीत....
. *केज्यो अमे आवस्युं काले*
. *रचना: जोगीदान गढवी(चडीया)*
. *दोहो*
संदेस मारो साजणा,तुं, सांभळ साचो साच
जळ नो आभे जोगडा, निरख्यो तांडव नाच
. *गीत*
हाईवे पर होडकां हाले रे...
केज्यो अमे आवस्युं काले.....टेक
नदीयुं गाडी तुर आ नाहे, चडीया कांठे चार
झिक झिले नइ झाडवां एवो, मंडीयो मुसळ धार
आडे धड माग ना आले रे...
केज्यो अमे आवस्युं काले..01
जळ केरा जे जीववा आशे, बांधीया हुता बांध
तुटतां भळी थ्येल ताराजी, धोम मचावी धांध
वरहावी आफत्युं वाले...
केज्यो अमे आवस्युं काले..02
आंम भुका जांणे आभ माथेथी, काढीया चारे कोर
ठोर वरहे एनी ठंडीये ध्रुजे, ढाळीये बांधेल ढोर
मेघलीयो मौज मां म्हाले रे...
केज्यो अमे आवस्युं काले..03
गोम धणेंणीन वादळां गाजे, क्रोड गोपी अने कान
मेघ आकाशी राहडो मांड्यो, जोई ल्यो जोगीदान
त्रांबाळु ढोल ना ताले रे...
केज्यो अमे आवस्युं काले..04
⛈🌨🌧🌧⚡🌨🌧🌨⛈
पींगळशी मेघाणंद् गढवी नी जन्म जयंती
पिंगळशी मेघाणंदभाई गढवीनुं परिचय
||आवड़ माताजी नो छंद || ||कर्ता मितेशदान(सिंहढाय्च) ||
*||रचना:आवड़ माताजी नो छंद ||*
*||छंद- दुर्मिळा(सप्तक)||*
*||कर्ता-मितेशदान महेशदानदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
जननी जपु जाप नमू जगदंब अजा मात आवड़ आदि अनंत,
धरी अवतार बणी रूप नागण आठम सात शकत्तिय खंत,
पुकार सुणी साद मामड प्राथ रही खोरडे आई खेल रमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे, *(१)*
खलके धर गेल खेलंतिय प्रांगण सातेय सोम सजाव लगे,
छलके मुख हेत छबी सुख दाखण,मामड चित्त उजास जगे,
कर धारण नाग वलोणाय भम्मर घम्मर घम्मर छाय जमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमें *(२)*
काळ थंभ गयो तिमिराण उजागर थंभण भाण भु थाप दिये,
कळके दळ आकाश संग दिगंबर द्रिसत खोडिय कुम्भ लिये,
जल पान अमृत कियो मुख मेरख जीवन तारणहार तमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(३)*
जगराय रखी रिझ दाखत राज प्रसन्न तनोटाय मात जयो,
हुण काट सेना कुळ तेमड़ डारण भोय वधेरण जात हयो,
घंटीयाल हण्यो हळेळाट असुराण हाक हुकाटेय आण खमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(४)*
त्रिलोकिय तात बणी खप्पराळीय जब्बर जोगण रास रमे,
व्रहेमांड फरे नव लाखाय माडीयू नाद गुंजावत शोर भमे,
धधकावत पद पड़े धर अंबर,चौद भुवन श्रृंगार समे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(५)*
भळके जब जंग लगे झट्ट खैखट्ट खप्पर खांडेय शोर मचे,
कर चुड़ खणंकित खेलण युद्ध रमे जगराय रक्त्त रचे,
धड़ काटन छेद दियो मुंड मारण शुंभ निःशुंभ
हण्यो रणमें,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(६)*
उजळा हिये हार बणाव सूखा रूप कुंडल कान धरु करणे,
सघळा वरु वाट तणा मत पाई बणु सत चारण तु शरणे,
मिहिराण ते'मिर समीर घडो गुण चारण चित सरु मनमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(७)*
*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*
*उजळा हिये हार बणाव सूखा रूप कुंडल कान धरु करणे,*
*अर्थ:अमारा आ चारणी रिदय ने मा तमे उजळा बनावो अने सुख रूपी हार डॉक मा ने कान मा कुंडल स्वरूप गुण परोवो,
*सघळा वरु वाट तणा मत पाई बणु सत चारण तु शरणे,*
*अर्थ: अमारा दरेक दुख ने भूली ने सदाय साची वाट पकड़ी ने जगदम्बा तारो मत जे हसे,जे ते धारयु हसे तारा बाळको माटे ते अमे स्वीकारी लेसु,अने सत्य चारण बनी राहेवानो ध्येय राखिस ने सदाय तारा शरणे ज रहीस,
*मिहिराण ते'मिर समीर घडो गुण चारण चित सरु मनमे,*
*(अहीं तिमिर शब्द ने बे अर्थ मा लै ने ते'मीर कर्यो छे,)*
*(मीर मतलब अमीर,धनवान अने तिमिर एटले अंधारु,)*
*अर्थ:मिहिराण:,सूरज,(जे तेजस्वी छे तेनु तेज),तिमिर:अंधारु,(जे गाढ़ शांतिथी घेरायेल छे तेवु,) अने समीर: पवन(जेनी गति अने शकत्ति अपार छे ते)
है मा आ त्रणेय ना गुण मारा मा संचित कर के जेथी हु समाज मा चारण छु तेवा गर्व थी सूर्य जेवु तेज राखी सकू,जेथी हु गाढ़ तिमिर नि जेम शांत मन थी दरेक परिस्थिति मा धीरज धरि शकु,अने पवन जेवी गति संचित करु के जेथी हु मारी उत्तरोत्तर प्रगति करी मारा समाज अने मारा जीवन ने उजागर करि शकवा सक्षम बनु,
*मिहिराण: मि*
*ते'मीर : ते*
*समीर : स्*
🙏~~~ *कवि मीत* ~~~🙏