शिव शकित केरो जगमां रुडो राज रचना कवि आरव गढवी
Sponsored Ads
.
Sponsored Ads
12 फ़रवरी 2018
31 जुलाई 2017
शिव ने भजो जीव दिन रात
શિવ ને ભજો જીવ દિન રાત (શિવ-સ્તુતિ)
આપનો પવિત્ર શ્રાવણ માસ નો બીજો સોમવાર શિવ મહી બને અને ભોલેનાથ ની દયા હમેશાં તમારા ઉપર રહે એવી શુભેચ્છા સહ તમામ ને જય માતાજી જય સોનલ.
24 जुलाई 2017
भगवान शिवनी स्तुती रचना :- श्री ब्रह्मानंद
हरे सब दु:ख भकतन के, दयाकर होतो ऐसा हो.
सदा शिव सर्व वरदाता… टेक
रमे नित संग गिरीजा के, रमाण घर हो तो ऐसा हो.
सदा शिव सर्व वरदाता.… (१)
कला मस्तक में चंदरकी, मनोहर हो तो ऐसा हो.
सदा शिव सर्व वरदाता.… (२)
धरा सब कंठ में पी कर, वीषंधर हो तो ऐसा हो.
सदा शिव सर्व वरदाता…(३)
दिया सब राज दुनिया का, दिलावर हो तो ऐसा हो.
सदा शिव सर्व वरदाता…(४)
बनाया खास गण अपना, अमर कर होतो ऐसा हो .
सदा शिव सर्व वरदाता…(५)
उडाये एक ही सरसे, त्रिपुंडहर हो तो ऐसा हो.
सदा शिव सर्व वरदाता…(६)
कीया सब ध्वंस पलभर में, भयंकर हो तो ऐसा हो.
सदा शिव सर्व वरदाता…(७)
वो ब्रह्मानंद दुनिया में, उजागर होतो ऐसा हो.
सदा शिव सर्व वरदाता…(८)
श्रावण मास निमिते ऑडियो

- BHOLA SHAMBHU - VARJANG GADHAVI MOTA BHADIYA
- STUTI
- MAN MERA MANDIR
- SHIV SHANKAR KO JIS NE
- SHIV STUTI SHIV NE BHAJO DIN NE RAT - PRADIP GADHAVI
- SHIV TANDAV

24 फ़रवरी 2017
लाभ जण लोटेश्वरा - रचना: दोलतदान अलराजजी बाटी
, *रचना: दोलतदान अलराजजी बाटी*
. *छंद: हरगीत*
झालरां घंटण नाद झणणे,पनंग फणिदर सुरपूरे
ॐकार रुपा सृस्टी आभ्रण,अचल योग उमेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..01
भवनाथ वै जा नाथ भोळा, महा षड सत्रु मटे
मन वचन सेवक बणीं समरे, घण दिंयण घूस्मेस्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..02
जळळाट जळीयो विश्व जांणे, राख भरथारो रती
देवां निवाजक दैव कालम, कूट पींण कालेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..03
अण मास भाद्रव अमा वस्या, वरण मळ जोयो वडो
देसात्र जग घुरजट्ट दाता, भजो घण भुवनेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..04
प्रज पाळ प्रिति धर्म पुदगळ,क्रुर खळ पर कोपतो
ऋषी मारतंडे राम रटीयो, पार ब्रह्म परमेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..05
जय जयती राघव संत जपीया स्रुत पथ सुद्धारवा
त्रय कोट ग्रामा मुंज पर तट, हर प्रगट माहेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..06
दिन बंधु भगतां धन्य दौलत दान जण दरशण दियो
काशी अजोधा तणों महीमा, राखीयो रामेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..07
वंदंत्य मेटे हत्थ वामे, आय जण बण आतूरे
परियां उधारे पतीत पामर, सामटा सोमेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..08
वैताळ डाकण रहै वेगळ, प्रेत पीशक पर हरे
आणंद जण घण टळे आव्रण, मृत्यु जय माहेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..09
रतपीत त्रय दोषा रहेना, महा मारण जड मटे
नारायणां नर निकट निवसे, कसें केदारेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..10
जस धर्म जापे थीर थापे, द्वार डेली डायरा
अंन्जळां आलय वास आपे, ईशरा अभरेश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..11
जळ कमळ जग अनुराग हरजस, राग बागा सिद्ध रहे
जनमे सुकुळ हर राग जागे, अराधे आर्येश्वरा
वढियार धर काशी तडोवड,लाभ जण लोटेश्वरा..12
29 अगस्त 2016
कवि श्री पद्माकर कृत गंगा लहरी :-संकलनः- कवि श्री प्रवीणभाइ मधुडा श्री मोरारदान सुरताणीया
सुप्रभात जय माताजी 🌹🙏🏼🌹
कवि श्री पद्माकर कृत गंगा लहरी
🌹🌻🍁🌹🌻🍁🌹🌻🍁
॥ दोहो ॥
हरि हर बिधिको सुमिरिके. ,काटहि कलूष कलेस.
कवि पद्माकर रचत हे ,गंगा लहरीहि बेस.
॥ कवित ॥
वहति बिरंचि भइ वामन पगन पर,
फेली फेली फिरि ईश शिषपें सुगथ की.
आई के जहान जन्हु जंघा लपटाय फिरि,
दीनन के लिन्हे दोर कीन्ही तीन पथ की .
कहे " पद्माकर " सू महिमा कहालो कहो,
गंगा नाम पायो सहि सबके अरथ की .
चार्यो फल फली फुली गह गही बह बही,
लह लही कीरति लता हे भगीरथ की ....१
कुरम पें कोल कोल हूपे शेष कुण्डली हे,
कुण्डली पे फबी फ़ेल सुफन हजार की.
कहे " पद्माकर " त्यो फन फर फबी हे भूमि,
भूमि पे फबी हे थिति रजत पहार की .
रजत पहार पर शम्भू सुर नायक हे,
सम्भू पर ज्योति जटाजूट सो अपार की.
सम्भू जटाजूट पर चन्द्र की छूटी हे छटा,
चन्द्र की छटान पे छटा हे गंगधार की....२
करम को मूल तन तन मूल जीव जग,
जीवन को मूल एक आनंद उघरि बो.
कहे " पद्माकर " सू आनंद को मूल राज,
राज मूल केवल प्रजाको भ्होन भरि बो.
प्रजा मूल अन्न सब अन्नन को मूल मेघ,
मेघन को मूल एक जग्य अनुसरि बो.
जग्यन को मूल धन धन मूल धर्म अरू,
धर्म मूल गंगाजल बिन्दु पान करि बो....३
सहज सुभाई आई एक महा पातकी की,
गंगा मया धोइ तुतो देह निज आप हे.
कहे " पद्माकर "सो महिमा महिमे भइ ,
महादेव देवन में बाठी थिर थाप हे.
जकसे रहे हे जम थकसे रहे हे दुत,
दुनि दुनि पापन की उठी तन ताप हे.
बांकी बही वाकी गति देखीके बिचित्र रहे,
चित्र केसे लिखे चित्र गुप्त चूपचाप हे....४
गंगा के चरित्र लखि भाखे जमराज एसे,
एरे चित्र गुप्त मेरे हुकम में कान दे.
कहे " पद्माकर " ये नरक निमुंद कर,
मुंद दरवाजन को तजि यह थान दे.
देख यह देव नदी कीन्हे सब देव याते,
दुतन बुलाय के बिदा के बेग मान दे.
फार डार फरदन राख रोज नामा कहु,
खाता खत जान दे वहि को वह जान दे ...५
जाने जिन हे न जग्य जोग जप जागरन,
जनम बितायो जग जापन को जोय के.ते.
कहे " पद्माकर "सु देवन के सेवन ते,
दूरि रहे पूर मति बे दरद होय के.
कुटील कुराही क्रूर कलही कलंकी कलि,
काल की कथान में रहे जे मति प्रोय के.
तेऊ विष्णु अंगन मे बेठे सूर संगन मे,
गंगा के तरंगन में अंगनको धोय के.....६
जेसे ते न मोको कहू नेक हू डरात हूतो,
एसो अब व्हे हू तोहि नेक हु न डरि हो.
कहे " पद्माकर " प्रचंड झो परे गोताऊ,
मंड करि तोसो भुज दंड ठोकि लरि हो.
चलो चलि चलो चलि बीचलन बीच हुते,
किंच बिच निच तो कुटुंब को कचरि हो.
एरे दगा दार मेरे पातग अपार तोही,
गंगा की क छार में पछार छार करि हो ...७
पायो जिन तेरी धोरी धारामें धसत पात,
तिनको न होत सूर पूर ते निपात हे.
कहे " पद्माकर " तिहारो नाम जाके मुख,
ताके मुख अमृत को पुंज सरसात हे.
तेरो तोय छ्रोकरि छुटत तन जाको पात,
तिनकी चले न जम लोकन में बात हे.
जहा जहा मया धुरि तेरि ऊडी जात गंगा,
तहा तहा पापन की धुरि ऊडी जात हे ...८
जमपूर द्वारे लगे तिनमे किवारे कोऊ,
हे न रखवारे एसे वन के उजारे हे.
कहे " पद्माकर " तिहारे प्रन धारे तेऊ ,
करि अघ भारे सूर लोक कोसी धारे हे.
सुजन सुखारे करे पुन्य उजियारे अति,
पतित कतारे भव सिंधु ते उतारे हे.
काहुने न तारे तिन्हे गंगा तुम तारे अरु,
जेते तुम तारे ते ते नभ में न तारे हे....९
विधि के कमंडल की सिद्धि हे प्रसिध्ध वही,
हरि पद पंकज प्रताप की नहर हे.
कहे " पद्माकर " गिरीश शिष मंडल के,
मुंडन की माल तत्तकाल अघहर हे.
भुपति भगीरथ के रथकी सु पुन्य पथ,
जन्हु जप जोग फल फेल की फहर हे.
छेम कीछ हर गंगा रावरि लहर कलि ,
काल को कहर जम जाल को जहर हे .....१०
सौजन्यः- संकलनः-
कवि श्री प्रवीणभाइ मधुडा श्री मोरारदान सुरताणीया
राजकोट मोरझर
M.no. M.no.
95109 95109 9979713765
22 अगस्त 2016
शिव स्तुति - रचना :- थार्या भगत (झरपरा)
शिव स्तुति
दोहा
हरकरूणा बिन दिशत नही, सब गुण धर कैलास.
सो योजन विस्तार वट, तहां शंकर करत निवास.
छंद:-रणंकी
कर कर निवास शंकर समरथ, झर झर मुखमें तेज झरे.
खर खर गंग जटामें खरकत, भरर भभूति सुअंग भरे.
चरचित चंदन गंध समीरे, मधुकर वृंद गुजारत है.
शोभित शिव कैलास शिखरपर, अजर अमर बिराजत है. १
वाघचर्म वस्तर अतिशोभित, चम चम भाल शशी चमके.
लरलर गले भुजंगम लरकत, ठणण श्रवण कुंडळ ठमके
गौरवदन पर जूल लटाक, अनंग अनेक लजावत है.
शोभित शिव कैलास शिखर पर, अजर अमर बिराजत है. २
त्रेंक त्रेंक शंखरव शणणण, डिम डिम डिम डमरूक बजे.
धिनक धिनक तबलध्वनि बाजत, गणण गणण दशदिग्गरजे.
किन्नर चारण गावत गुण गण, अजब अप्सरा नाचत है.
शोभित शिव कैलास शिखर पर, अजर अमर बिराजत है. ३
पद पदमासनको हि जमावत, बढ अष्टांग हीयोग बढे.
संकर सेज स्वरूप संभारत, सर सर सुखद समाधि चढे.
विगत करत युग कोटी हजारो, धीरे प्राण उतारत है.
शोभित शिव कैलास शिखर पर, अजर अमर बिराजत है. ४
नाग नर देवा कर पद सेवा, धर धर योगी ध्यान धरे.
अनंत अजन्मा एक अनुपम, डर डर आगे काल डरे.
अष्टसिद्धि नवनिधि कर जोड, हमेश हुकम पर चालत है.
शोभित शिव कैलास शिखर पर, अजर अमर बिराजत है. ५
कर महेर देवाधिप मुजपर, हर हर मेरे दोष हरो.
भवसागर बूडत है नैया, धर कर बेगसे पार करो.
अविचल वास दियो चरनोंमें, थार्यो ए वर मागत है.
शोभित शिव कैलास शिखर पर, अजर अमर बिराजत है. ६
रचना :- थार्या भगत (झरपरा)
टाइप :- सामळा .पी. गढवी ना जय माताजी
मो :- 9925548224
भुल चुक क्षमा
🌹🙏🙏🙏🌹
दातारेश्र्वर देव भोळीया रचयिता :-चारण कवि श्री तखतदान रोहडीया- " दान अलगारी "
जटामा वसे मात गंगेव, पतितने पावन करती.
पारवतिना पति, खोळले रमे गुणनो पति.
जाप नित जपे जतीने सती, आरति रोज उतरती...१
अंग पर रमे विखधर व्याल, मणीधर फणीयल काळा.
गरल धरण निलकंठ, धतुरा भंग त्रप्त आकंठ.
निशाचर भूत प्रेत नाचंत, भयंकर भूरी लटाळा...२
शिवायं नम :करे उच्चार , ध्यान शंकररो धारे.
धर्म अर्थ ने काम, मोक्ष सह चारु फल दे साम.
सदाशिव हाम्म दाम ने ठाम, समर्पे सेवक द्वारे...३
दिगम्बर महादेव भगवान, अजन्मा अकळ अनुपम.
देव देत्यने नाग, मानवी कोई न पामे ताग.
अजरवर थारां गुण अथाग, समरीये शंभू दम दम...४
त्रिशूळ कर डमरू डाक बजंत, वास कैलाश निवासी.
भवहर भवरा नाथ, साधरा साध वडा समराथ.
अघोहर अनाथ हंदा नाथ, टाळतल भवरी फांसी...५
चरित वंचाय जगत्त रे चोक, के जय हो पिनाकपाणी.
" अलगारी "उछरंग, धरी गुण गाय करी मन चंग.
राखीये नाथ त्रिलोकी रंग, वदत नित विमलवाणी...६
चारण कवि श्री तखतदान रोहडीया- " दान अलगारी "
सौजन्य:- संकलन:-
कवि श्री प्रवीणभा मधुडा मोरारदान सुरताणीया
Mo 09510995109 Mo.
W.app. 097239 38056 9979713765
अविलंब शंकर आवजो रचना :- चारण महात्मा श्री पालु भगत
वंदा पाव उमदा प्रभु, प्रदा भकती अभयेव.
हे भीड भंजन तु नीरंजन, आत्मा अजपा जपा,
विश्वेस हे सर्वेस निर्मल, नाथ नीत अपनावजे,
संभाळ लेवाने सदा, अविलंब शंकर आवजे.
अविलंब शंकर आवजे....(टेक)...1
बे बाकळा देवो बिचारा, झेरथी बळता हता,
जीवन बचाव्यु जीरव्यु, विख धरण नेह वहावजे.
संभाळ लेवाने सदा...2
भ्रम तुत आखो तोडवा, अवधुत तुं समराथ छे,
अटपट्टी आंटी गुंटीयुं, छळ कपटथी छोडावजे.
संभाळ लेवाने सदा...3
जन्मो जनम ना कर्मने, नथी जाणता के शुं नडयुं,
अवळु बधु सवळु करी, नबळु निवारी नाखजे.
संभाळ लेवाने सदा...4
वळि लाभ के हानी थती, आ विश्वना वहेवार मां,
अकुपार भवसागर भयंकर, बुडता ने बचावजे.
संभाळ लेवाने सदा...5
केवुं गजुं माया गजब, ब्रह्माय भुली जाय छे,
लोभामणा दळ लोढमांथी, नाव कांठे लावजे.
संभाळ लेवाने सदा...6
समराथ श्वासे श्वासमां, विश्वास शुध्ध वहावजे,
बस आस ऐकज खास तारी, पास वास वसावजे.
संभाळ लेवाने सदा...7
सचरा अचरमां सर्वमां, अवकासमां आभासमां,
"पालु" कहे रहेजे प्रसन्न, दिदारने दरसावजे.
संभाळ लेवाने सदा...8
15 अगस्त 2016
कामप्रजाळण नाच करे : रचना :- दुला भाया काग
आजे पवित्र श्रावण मासनो बीजो सोमवार छे ते निमिते कविश्री दुला भाया कागनी रचना
कामप्रजाळण नाच करे
(छंद - दुर्मिला)
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,
भभके गण भूत भयंकर भुतळ, नाथ अधंखर ते नखते,
भणके तळ अंबर बाधाय भंखर , गाजत जंगर पांह गते ;
डमरुय डडंकर बाह जटंकर , शंकर ते कईलास सरे,
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे, (1)
हडडं खडडं ब्रह्मांड हले, दडडं दडदा कर डाक बजे,
जळळं दंग ज्वाल कराल जरे , सचरं थडडं गण साज सजे ;
कडके धरणी कडडं , हडडं मुख नाथ ग्रजंत हरे ,
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(2)
हदताळ मृदंग हुहूकट,हाकट धाकट धीकट नाद धरं,
द्रहद्राह दिदीकट वीकट दोक्ट,कट्ट फरंगट फेर फरं ;
धधडे नग धोम धधा कर धीकट,धेंकट घोर कृताळ धरे,
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(3)
नट तांडवरो भट देव घटां नट उलट गूलट धार अजं,
चहँ थाक दुदूवट दूवट खेंखट,गेंगट भू कईलास ग्रजं ;
तत तान त्रिपुरारि त्रेकट त्रुकट, भूलट धुहर ठेक भरे,
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(4)
सहणाई छेंछ अपार छटा,चहुथ नगारांय चोब रडे,
करताल थपाट झपाट कटाकट, ढोल धमाकट मेर धडे ;
उमया संग नाट गणं सरवेश्वर,ईश्वर 'थईततां,' उचरे,
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(5)
पहरी गंगधार भेंकार भुजंगाय , भार अढारिंय वृक्ष भजे,
गडताळ अपार उठे पडघा,गढ सागर त्रीण ब्रह्मांड ग्रजे,
हदभार पगांय हिमाचळ हालत,हालत नृत्य हजार हरे ,
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(6)
बह अंग परां धर खाख अडंबर डंबर सुर नभं दवळा,
डहके डहकं डहकं डमरु बह,डूहक डूहक थे बनळा ;
हदपाळ कराळ विताळरी हाकल, पाव उपाडत ताळ परे,
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(7)
ब्रह्मादिक देख सतं भ्रमना भर,सुर तेत्रीशांय पाव सबे,
खडडं कर हास्य ब्रह्मांड खडेडत,अंग उमा अरधंग अबे ;
जग जावण आवण जोर नचावण, आवत *काग* तणे उपरे,
परमेश्वर मोद धरी पशुपाळण,कामप्रजाळण नाच करे,(8)
रचियता :- दुला भाया काग
टाईप :- मनुदान गढवी
वंदे सोनल मातरम्
8 अगस्त 2016
सुधा धारा स्तोत्र - रचना: भगवान शिवजी
. || सुधा धारा स्तोत्र ||
. रचना: भगवान शिवजी
ॐ कार उरमां उठत, रटण रसण सीय राम
जो नीत गाये जोगडा, करे पुरण सब काम
अचिन्त्यामिताकार - शक्तिस्वरुपा
प्रतिव्यक्त्यधिष्ठान सत्त्वैकमूर्तिः
गुणतीत निर्द्वन्द्वबोधैकगम्या
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ १
अगोत्राकृतित्वाद नैकान्तिकत्वात्
अलक्ष्यागमत्वाद-शेषाकरत्वात्
प्रपञ्चालसत्वादनारम्भकत्वात्
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ २
असाधारणत्वाद सम्बन्धकत्वात्
अभिन्नाश्रयत्वाद-नाकारकत्वात्
अविद्यात्मकत्वाद-नाद्यन्तकत्वात्
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ ३
यदा नैव धाता न विष्णुर्न रुद्रो
न कालो न व पञ्चभूतानि नाशा
तदाकरणीभूत स्त्त्वैक मूर्तिः
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ ४
न मीमांसका नैव कालादितर्का
न सांख्यां न योगा न वेदान्तवेदाः
न देवा विदुस्ते निराकारभावम्
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ ५
न ते नामगोत्रे, न ते जन्म मृत्युः
न ते धामचेष्टे न ते दुःख सौख्ये
न ते मित्र शत्रु न ते बंध मोक्षो
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ ६
न बाला न चत्त्वं वयस्का न वृद्धा
न च स्त्री न षण्डः पुमान्नैव च त्वम्
न च त्वं सुरो नासुरो न नरो वा
त्वमेँका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ ७
जले शीतलत्त्वं शुचौ दाहकत्त्वं
विधौ निर्मलत्त्वं रवौ तापकत्त्वं
तवैषाम्बिके यस्य कस्यापि शक्तिः
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ ८
पपौ क्ष्वेडमुग्रं पुरा यन्महेशः
पुनः संहरत्यन्तकाले जगच्च
तवैव प्रसादान् न च स्वस्य शक्त्या
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ ९
करालाकृतीन्याननानिश्रयन्ती
भजन्ती करास्त्रादि बाहुज्यमित्थम्
जगत् पालनायासुराणाम् वधाय
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ १०
रुचन्ती शिवाभिर् वहन्ती कपालं
जयन्ती सुरारीन् वधन्ती प्रसन्ना
नटन्ती, पतन्ती, चलन्ती हसन्ती
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ ११
अपादापि वाताधिकं द्यावसित्त्वं
श्रुतिभ्यांविहीनापि शब्दं मृणोषि
अनासापि जिघ्रस्यानेत्रापि पश्यसि
अजिह्वापि नानारसास्वादविज्ञा ॥ १२
यथाबिम्बमेकं रवेरम्बरस्थं
प्रतिच्छायया यावदेकोदकेषु
समुद्रमातते नेकरुपं यथावत्
त्वमेका परःब्रह्मरुपेण सिद्धाः ॥ १३
यथा भ्रामयित्वा मृदं चक्रमध्ये
कुलालो विधन्ते शरावे घटं च
महामोह यंत्रेषु भूतान्यशेषान्
तथा मानुषांस्त्वं सृजस्यादिसर्गे ॥ १४
यथा रंगरज्वर्कदृष्टिष्वकस्मात्
नृणाम् रुपदर्वीकराम्बु भ्रमस्यात्
जगत्, यत्र तत्तन्मये तद्वदेव
त्वमेकैव तत्त् तन्नि तत्ता समस्तम् ॥ १५
महाज्योति एकार सिँहासनं वत्
त्वकीयान् सुरान् वाहयसि उग्रमूर्ते
अवष्टभ्य पदभ्यां शिवं भैरवं च
स्थितातेन मध्ये भवत्यैव मुख्या ॥ १६
कुयोगासने योगमुद्रभिः नीतिः
कुशोभायुपोतस्य बालाननं च
जगन्मातराद्वक् तवापूर्व लीला
कथं कारमस्मत् विधैर्देविगम्या ॥ १७
विशुद्धापरा चिन्मयी स्वप्रकाशः
मृतानंदरुपा जगद् वयापिका च
तवेदद्-विद्या या निजाकार मूर्ति
किमस्माभिरंतर - ह्यदि ध्यायितव्या ॥ १८
महाघोर कालानल ज्वालज्वाला
हित्यत् त्यन्तवासा महाटाट्टहासा
जटाभारकाला महामुण्डमाला
विशाला त्वमीद्वग् मयाध्यायशम्ब ॥ १९
तपोनैव कुर्वन् वपुः सीदयामि
व्रजन्नापि तीर्थँ पदे खंजयामि
पठन्नापि वेदान् चनिं यापयामि
त्वदंघ्रिद्वयं मंगलं साधयामि ॥ २०
तिरस्कर्वतोन्यामारोपासनार्चे
परित्यक्तधर्मादध्वरस्यास्य जन्तोः
वदाराधनान्यस्त चित्तस्य किम् मे
करिष्यन्त्यमी धर्मराजस्य दूताः ॥ २१
न मन्ये हरिँ नो विधातारमीश
न वहिनं न ह्यर्कं न चेन्द्रादिदेवान्
शिवोदीरितानेक वाक्यप्रबन्धैः
त्वदर्चाविधानं विशत्वम्ब मत्याम् ॥ २२
नरा मां विनिन्दन्तु नामत्यजेत्
सर्वा बान्धवा ज्ञातयः सन्त्यजन्त
यमीया भटा नारके पातयन्तु
त्वमेका गतिर्मे त्वमेका गतिर्मे ॥ २३
महाकाल रुद्रोदित स्तोत्रमेतत्
सदाभक्तिभावेन योऽध्येति भक्ताः
न चापन्न न शोको न रोगो न मृत्युः
भवेत् सिद्धिरन्ते च कैवल्यलाभः ॥ २४
इदं शिवायाः कथितं सुधाधाराख्यं स्तवं
एतस्य सतताभ्यासात् सिद्धिः करतलेस्थिता
एतत् स्तोत्रं च कवचं पद्मं त्रितयमप्यदः
पठनीयं प्रयत्नेन नैमिक्तिक समर्पणे ॥ २५
सौम्येन्दीवर नीलनीरद्घटा प्रोद्-दामदेहच्छटा
लास्योन्माद निनादमंगल चयैः श्रोण्यन्तदोलज्जटाः
साकालीकरवाल कालकलना हन्त्वंश्रियं चण्डिका
कालीक्रोध करालकालभयदाः उन्माद प्रमोदालयाः
नेत्रोपान्त कृतान्त दैत्यनिर्वहा प्रोद्-दान देहामया ॥
🙏🏼🙏🏼🙏🏼 इति काली सुधा धारा स्तोत्रम्