. || काम द्वादसी ||
. रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)
. दोहा
कळा अकळ आपे कई, शुक्कर लाख सलाम
जरी बुरो वह जोगडा, कुट भर्यो जींह काम.१
(कळा ओ आपनार शुक्र ने लाख सलाम छे
पण तेनुं बुरु लक्षण ऐ छे ते काम ने पनाह आपे छे)
साथ कदी ना सोहता, रती पती अर राम
जुवो सीयामां जोगडा, कदीन जडशे काम.२
(रती नो पती ऐटले के काम ने क्यारेय राम होय
त्यां नथी जोयो ऐनुं जीवंत उदाहरण मां जानकी)
शिव अटल्ल समाधीये, धणीं हता निज धाम.
जळ्यो लखण से जोगडा, कसो बुरो यह काम.३
(शिव पोताने धाम समाधी मां लीन हता त्यां पोते
जीवना जोखमे घुस्यो अनो जळी मर्यो आ केवो
दुस्साहसी छे काम ऐनुं प्रतीक छे )
भुल्या जुवो ब्रह्मा भला, गणो न मंदीर गाम.
जणीं गणीं नई जोगडा, कुडो भयंकर काम.४
(ब्रह्मा ऐटले विद्वता नो दाता केहवाय पण
तेने पण काम भुलवे छे माटे तो गामो गाम
ब्रह्मा ना मंदीर नथी आ पण काम ना भयानक
परिणाम नुं प्रतिक छे )
अकळ करे अंधार आ, पळ ई लैवण पाम.
जान भगावो जोगडा, कंस भयानक काम.५
(ऐक क्षण ना विलास माटे आतम तेज ने अधार
मय करी नाखे कंईं सुजवा न दे..तो तमारी भींतर
रहेला कृष्ण ने जगाडो अने भयानक कंस जेवा काम ने
जांणी ने भगाडो )
चंद्र भयो दागी चको, ईंन्द भटकतो आम.
जे हलकां ने जोगडा, कबे न छंडे काम.६
(चंद्र खुद दागी बन्यो ,ईंन्द्र आम तेम भटकतो थयो
माटे काम नी असर भारी भरखम व्यक्तित्वने हलका
कर्या विना छोडती नथी माटे तेने जांणो )
अमरत खातर आटक्या, विष्णु भये तद वाम.
जगन भुलावे जोगडा, कहो कसो यह काम.७
(जे देवो अने दानवो समुद्र मंथन थी अमरत लाव्या
तेनी वहेंचणी माटे विष्णु वाम(सुंदरी) बने छे अनो जे
मोहासक्त थया ते अमरत थी वंचीत रह्या आंम काम ऐ
जीवन नुं ध्योय भुलावे छे )
मोहीनी रुप मोहियो ,भसमासुर दीख भाम.
जाणे सब जग जोगडा,कंदुक नरतक काम.८
(भस्मासुर भगवान शिवने रीजवी वरदान लई सक्यो
पण कंदुक नृत्य करती मोहिनी रुप मां मोह्यो अने
जीवन नो अंत आंण्यो )
पांडु तजीयो प्रांणने, चखतां माद्री चाम.
जीवन हरीले जोगडा, कहो भलो शुं काम.९
(पांडु राजा ने पोताना मोत ना कारण नी खबर
होवा छतां माद्री ना चामडा पर मोह्या अने मोत ने भेट्या)
हर पळ परखो हेतने, जिव घट आठो जाम
जाग्रत रहवुं जोगडा,कबे दीखे जो काम.१०
(कोई पण विजातीय पात्र नो सथवार सांपडे ऐटले
तेना स्नेह ने परखो अने हरक्षण जाग्रत रहो )
निल कुबेरां न्याय कज, रावण हणींयो राम.
जगत विदित यह जोगडा, कढे लंक वह काम.११
(कारण के निल कुबेर नी पत्नी नाे कामांध रावणे
मात्र हाथ पकडेल अने राम ना हाथे तेने मरवुं पडेल
नहीतर तेने लंका मांथी कोंण काढी सकत ? )
शुकर गुरु साधो सकल. नकर भुलावे नाम.
जडे निकट मे जोगडा, कला जगत अर काम.१२
(शुक्र ऐ कला नो दाता परंतु शुक्र पोते काम ने पनांह
आपनार छे..माटे कला जगत नी साथे काम संकळायेल
जोवा मळे छे पण जो तमे शुक्र ने गुरु साथे मेळवशो तो
कला ना स्वामी तो रेहशोज अने गुरु नुं बेसणुं होय त्यां
काम कोई काळे नही पोहची शके...)