💐 *कच्छना समाजसुधारक चारणकवि हरदास वारवाणी* 💐
कच्छी भाषामां सुभाषित स्वरुपे जेमणे बेतो आप्या छे. एवा समाज सुधारक, कच्छनो अखो कवि हरदास वारवाणीनो जन्म मांडवी तालुकाना काठडा गामेतुंबेल गोत्रनी गुंगडा शाखामां (सेडा शाखामां) राम वारवाणीना घरे आजथी दोढेक सो वर्ष पहेला थयो हतो. राम गढवी ना त्रण पुत्रो हता. लखमण, भीमशी अने हरदास, हरदास सौथी नानो पुत्र हतो. तेमना लग्न गोपाल दादा मुंधुडानी सुपुत्री भाणबाइ साथे थयेला.एमना एक पुत्र नु नाम मेघराज हतुं.
वंश परंपरा प्रमाणे जोइए तो कच्छना वारु गढवीना नानाभाइ रणमलनो पुत्र वालो थयो.वालानो कानीयो अने कानीयाना पुत्र रामनो हरदास थयो.
काठडाना राम गढवी साधारण स्थितीना हता. खेती करी पोतानी आजीविका चलावता. तेमना घरे त्रीजा पुत्र नो जन्म थतां घरमां आनंद ना गीतो गवावा लाग्या. मोटाभाइ लखमण ने भीमशी साथे हरदास पण मोटा थवा लाग्या. हरदास ने बाळपण थीज दुहा-छंद, भजन गावानो शोख हतो. हवे धीरे-धीरे हरदास नाना काव्योनी पण रचना करता हता. हरदास कविए साधारण अक्षरज्ञान प्राप्त करीने पिताने खेतीवाडीमा मदद करता. युवानीमा पग मांडता पिताए एमना लग्न कर्या, परंतु काठडा तथा आसपासमां क्यांय आजिविका चाले ए माटे कोइ प्रबंध थइ शके एम न हतुं. खेतीवाडीमां वारंवार पडता दुष्काळने कारणे कांइ उपजतुं नहोतुं. तेथी हरदासे एक भाटिया सद्गृहस्थना आग्रहने कारणे मुंबई जवुं पड्युं. मुंबईमां गोदीमां काम करता घणा चारणो त्यां वसता हता.
चारणो लगभग दोढेक सैकाथी मुंबई आविने वस्या हता अने शुरुआत थी ज गोदीमा मुकादमीना काममां जोडायेला हता. एक वखत एवो हतो के कोटनी अंदर जनरल पोस्ट आफिस पासेनो विस्तार चारणोनो ज कहेवातो. त्यां दोढसो उपरांत कच्छी पाघडी बांधनार चारणोना घर हता. गोदीना काममां ते समये 'मारे तेनी तलवार' जेवुं काम हतुं. कायदा कानुनने चारणोने कांइ गतागम न हती. धोको चलाववो ए ज एमनो कानुन. तेना कारणे चारणोथी गमे तेवो शक्तिशाळी खटारा हांकनार के मजूर गभराइ जतो. तेथी बारोट नाम पडे एटले गमे तेवि विकट परिस्थितिमां पण मार्ग थइ जतो. आजे पण त्यां गोदीमां मजूर ने खटारा हांकनारने बारोट न होवा छतां बारोट नामथी संबोधवामां आवे छे....
ए समयमां कोट विस्तारमां अवारनवार चारणो उजाणी गोठवी भेगा थता,वटना कटका अने कच्छी आंटानी पाघडी बांधता अनेक चारणोथी आखो विस्तार गाजतो हतो. उदार पण एवा के कोइ कच्छथी नवो-सवो आवे तो तेने बे महिना आग्रहथी रोकी राखता. दररोज खावा-पीवानु अने उपरथी वापरवा पैसा पण आपता.
ए ज अरसामां काठडाना कविराज हरदास वारवाणी मुंबई आव्या. कवि पोते माताजी ना परम उपासक अने समाज प्रत्येनी अपार लागणी. तेमने अहिंनी गोठमां मंडाती दारुनी महेफिलो अने परस्परनो कुसंप,लडाइ झगडा जोइने दिल ध्रुजी उठ्युं. समाजमां पेसी गयेल दारु,जुगार,मांगणवृत्ति,डायरा भरीने बेसी रहेवुं. आळस अने उडाउवृत्ति जोइ हरदासे समाजना लोकोने समजाववामां निष्फळ गया. अने हरदासने ज दारु वगेरेनी महेफिलोमां भळी जवा प्रयत्नो थवा लाग्या. त्यारे संत ह्रदयना कविनी वेदना वाणी स्वरुपे वहेवा लागी. अने समाजमां पेसी गयेला सडाने चाबखा मारवा लाग्या. तेमणे शरुआत करी...
"पेलो पाप पनणमें, जुको वडो आय वटार
न गनजे घरजे नीचजो, से आर तेडो उडकार
इ व्या आचार, से में हत डठा हरदासचें"
हरदासे समाजमां पेसी गयेल मांगणवृत्तिनो जोरदार विरोध कर्यो. जेना तेना घरनुं अनाज खाइ आचार भ्रष्ट थतां समाजना लोकोने चाबखा मारवानुं हरदास चुक्या नहीं तेमणे मुंबई मा जेवुं जोयुं तेवुं कह्युं छे " से में हत डठो हरदास चें "
बीजा एक बेतमां हरदासे हिंदु समाजनी आचार-संहिता बतावे छे. आ 'हिंदु देह' छे. तेमने शुं शुं निती नियमोनु पालन करवुं जोइए..? मुंबई मां वसता चारणो पोतानो आचार धर्म छोडी दीधो छे. दारु पीए छे,जुगार रमे छे,परमाटी खाय छे,पोतानी पवित्रता जाळवता नथी.हरदास कविने बीजी ज्ञातीनो विरोध न हतो. परंतु दारुडीआ,जुगारी, मांसाहारी अने आचारविहीन बनी जइए छीए. आ वात हरदास कविए खुब ज कडवा शब्दोमां कह्युं छे
"ब्यो पापी उ जुको,पैसो पीठे में दीये
ग्लास मियां मारजा,तेमें पंढ पीए
ए उंचा कीं थीएं, जे जो हिन्दु देह हरदास चें"
समाज माटेनी कडवी वाणी सांभळी मुंबई मां आखी नात एकठी थइ. तेमां हरदास कविने बोलाववामां आव्या अने कडवा शब्दोमां कहेवामां आव्युं के 'तुं आखी नातने वागोवे छे. तेनुं परिणाम सारुं नहीं आवे. ते जे चारणनात विशे लख्युं छे ते माटे नात पासे माफी मांग, चारणो तो देविपुत्र छे, ऋषियोनां संतान छे,तेने केम वगोवाय..?
समाजना आगेवानोनी धाकधमकी भरी वात सांभळी हरदासे स्पष्ट शब्दोमां वात करी के " हुं तो जे चारणो दारु पीए छे,मांस खाय छे,जेनी बेन-दिकरीओ,पत्निओ मांगवा जाय छे,जुगार रमे छे,लडाइ-झघडा करे छे, एवा लोको जन्मे तो चारण छे परंतु कर्मो नीच छे. जे देव कोटी चारणने अभडावे छे ते लोकोने सत्य कहुं छुं अने कहेतो रहिश. आवा कायर लोकोनी माफी मांगवा हुं हरगिज तैयार नथी". अने पछी हरदासनी वात सांभळी एकत्र थयेला चारणो हरदास कविने नात बहार करे छे....
समाजना कहेवाता आगेवानो तेने तिरस्कृत करे के बहिस्कृत करे एनाथी नीडर, सत्यवक्ता हरदासनी सच्चाइ पर जराय आंच न आवी. हरदास अडग रह्यो. अने एणे एटला ज जुस्साथी समाजने कह्युं
" सुबुद्धी सोएंमें हकडे के, ब्या कुबुद्धी वश थ्या
समजाया न समजें, जें के अखर ऊंधा प्या
ए वो वट में व्या, हारी धरम हरदास चें "
एनी वात पण साची हती. व्यसनोमां फसायेल समाज पोताना धर्मने हारी चुक्यो हतो. तेथी समाज सुधारकोने अने पोताना आत्माने हरदास कहे छे. काम घणुं छे समय ओछो छे. तेथी हिंमत राखी काम करजे. जेथी इश्वरने प्राप्त करी शकाय.
" सज थोडो पंध घणो, आळस म कज अज
हिंमत रखी हिये में, वरी पुजेंती कज
तडें रोंधी पांजी लज, हली गरजो हरदास चें "
समाजमां व्याप्त दारू, जुगार, मांसाहार अने आळस जेवा दूषणोथी त्रस्त थयेल समाज, हरदासने ज्यारे नातबहार मुकवामां आव्यो छे, त्यारे तेनुं कोइ सांभळतुं नथी. आ वात भगवान वेदव्यास पण कहे छे '' नकश्चित शृणोमये " त्यारे हरदास बोली उठे छे
" कइ थीये कलतारजी, से जोडइ हुंधी जीय
हिंमत रखज हियें में, से हमेस न हुंधो हीय
सभे सरखा डींय, से केंसें न हल्या हरदास चें "
जे लोको कमाय छे, पण दान आपता नथी. माया, ममता, मोहमां रच्या पच्या रहे छे. तेने जीवननी क्षणभंगुरता विशे कवि कहे छे,
" जा को माया जीवजी, किनीक भेरी कइ
मथेते बधी मोटडी, से भेरी कें न खइ
जडें हकल थइ, तडें छडें हल्या हरदास चें "
आज वात मेकरणदादा पण कहे छे " खाधे पण खाराए न क्ये काय ते भार" वळी मानवदेह क्यां सुधी रहेशे. ए माटे मेकरणदादा कहे छे.
"हकड हल्या, ब्या हलधा, त्र्या भरे वठा अइं भार
मेंको चेतो माडुवा, पांपण तेजी लारोलार "
आ ज वात हरदास पोतानी सचोट भाषामां कहे छे
" काया कसे कमांया, से झर चोवाणुं जे
खाधां कींक खारायांउगइ सर्यो ए
साथ हलधो से, जुको हथें डनां हरदास चें "
हरदास संतोना पण गुण गाय छे कारणके संतोना कारणे ज दुख मटे छे शांति थाय छे, तुलसीदासे राम चरित्र मां वात करे छे...
साधु चरित शुभ चरित कपासु। निरस बिसद् गुनमय फलजासु।।
अने हरदास पण आवा संतोना गुण गावानुं कहे छे, परंतु एकज जीभथी तेनुं वर्णन थइ शके तेम नथी..
" संत भेट्या दु:ख मट्या, वरी अविधा रोग व्या
मटइ भ्रांति मनजी, से शांती सुख थ्या
तेंजा कतरा गुण ग्यां मुजी हकडी रसना हरदास चें "
हरदास कविए जीवन संध्याना समय विशे कहे छे...
" सिज उलधो सांजी थइ अने पखी खोड्यां पख
कनिक मेळ्यां माणेक मोती, कनिंक मेळ्यां कख
आ वात चारण पुनशी पोतानी भजनवाणीमां कहे छे...
" कमाये वारा लखों कमाया
मुनो खरची ए न थइ
रामीया मुंजी बुढी अवस्था थइ"
हरदासनां नामे चडेल एक बेत शाहसाहेबनां रसालामां पण जोवा मडे छे
" सिज उलथो सांजी थइ, वरी वडे वठा काग
सुणी सांजी बांग, मुंजा पिरियन थ्यां पंध मे "
शाह अब्दलतीफना बेत प्रमाणे चारण हरदास समाजने वाणीरुपी चाबखा मारी कडवु सत्य कही पोतानो समय पुरो करी चाल्यो जाय छे. पण आजेय एमनी अमरवाणी कच्छी साहित्य मां अमर छे. कवि हरदासनी वाणी आजे लोकोनी वाणी बनी गइ छे लोकवाणी थइ ग।इ छे आजे हरदास लोकोमां समाइ गया छे. एवा सेडायत वंश शिरोमणी कवि हरदास ने मारी भाववंदना....
💐 *चारणकवि हरदास वारवाणी ना जीवननी माहिती में आशानंद भाइए लखेल "कच्छना चारण कविओ नामनी बुकमांथी टाइप करी छे, पोस्टमां खोटी छेड़छाड़ करवी नहीं अने पोस्ट मां भुल जणाय तो नचे आपेल नंबर पर संपर्क कर्या सिवाय कोई फेरफार करवो नहिं पोस्ट शेर करवानी छुट छे पण कोइए अधुरी जाणकारी ना हिसाबे छेड़छाड़ न करजो* 💐
🌹 *टाइपिंग = राम बी गढवी* 🌹
*नविनाळ = कच्छ*
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💐 *वंदे सोनल मातरमं* 💐