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19 दिसंबर 2017

ll विहळ राबा रा बखांण ll - धार्मिक जासिल 'मयूख' रचित

*ll विहळ राबा रा बखांण ll*

*(छंद प्रकार दोहरा)*

परंपरा साची परज, जूक्यो नही जराह
द्वादस नै हसकै डणक ,नाखी जुद्ध नराह *(१)*

तेगा मारी तुरक सू, बिंध्या अंग बरंग
कंग छताह अपंग किय, राबा जाजा रंग *(२)*

नाम रटी रवराय निज, मुख मांगी पत मोळ
ते पछि जुध मांही तुरक, राबा दीधा रोळ *(३)*

बंका चारण बिग्रहे, हा हा कीधो हास
पछै विधाता पोथ किय, सहि राबा साबास *(४)*

जयति रवेची मुख जपी, जावत रावत जंग
खाग चलावत खेत सू, सगती राबा संग *(५)*

परधर्मी पतसाह रो, दसकंधा सम दाम
फरे पास नाही फिकर, राबा ऐसो राम *(६)*

थकरा सा पुग्या थलै , आंबरडी अकराह
बकरा पकराया बधा, नाखै चीर नराह *(७)*

थर थर पग हर थावता, धगधगती थी धार
सगती जगजाती सुणी, पूरा नरा प्रहार *(८)*

क्रोध कियो तो कमधजा, गर्व किए गुहिलोत
चक रच्छक चौहाण सम, नाम नरा रो गौत *(९)*

पावौ जो परलोक पथ, बळिया सह भर बत्थ
सगती राबा सत्थ मै, शाखा नरा समत्थ *(१०)*

*-धार्मिक जासिल 'मयूख' रचित*
*संपर्क:- 9712422105*

18 नवंबर 2017

|| रवेची प्रशस्ति || कवि धार्मिक जासिल "मयूख" रचित

*|| रवेची प्रशस्ति ||*
जड चारण तनया जठे, बाक लोक बिसराय
कुलदेवी गावै कुकवि, रिझो पद्य रवराय
*(छंद दुर्मिला)*
रट नाम समान सुराग रम्मनिय दख्ख दम्मनिय
रख्ख रती
अळ कंथ अनंत हथी कथ मंत्र तुरंत हरंत बिकट्ट खती
कुळदेवि नराकिय पुज्य पराकिय हाक बुराकिय बाक कडी
रवराय रमम्मम् पाल परम्मम् बाल बरंगिय द्रग्ग बडी
बरकत्त सुकार्य करत्त समर्थ कुकार्य सुपत्त दुपत्त करे
व्रत भंग अमंगल तंग तरत्त विकार दुकारणको विफरे
नहि एक तरफ्फिय सर्व सरफ्फिय मात मुरब्बिय पीड लडी  
रवराय रमम्मम् पाल परम्मम् बाल बरंगिय द्रग्ग बडी
रज गाम रवक्किय खंड नवक्किय संग सवक्किय हैक हुई
लगि अंग उमंग समान तुरंग जुधारण जंग बजाय तुई
वरदायक संकट आय कपायक पाय उपायक जाय पडी
रवराय रम्म मम पाल परम्मम् बाल बरंगिय द्रग्ग बडी
नभ मध्य चमक्क सुशोभ रही फहरक्क फरक्क धजा प्रछटी
रवआलय कालय ईम कटे ग्रह सर्व लगे जिम जाय वटी
अब आखर चाड सुणावत आपत जाय हवे हण चाड चडी
रवराय रम्म मम पाल परम्मम् बाल बरंगिय द्रग्ग बडी
*-कवि धार्मिक जासिल "मयूख" रचित*

19 अगस्त 2017

|| सुर्यमल मिशण प्रशस्ति || कवि धार्मिक गढवी

*|| सुर्यमल मिशण प्रशस्ति ||*
*(छंद:- दोहरा)*
वर्यो भोग विलास, के वर्यो वैराग पर
प्रत्युत्तर नहि पास, भ्रमित सर्व गण भाणमल
बुंदी राज बरंग, अंग विशेष शरीर वत
धर्म अधर्म सुढंग, आलेखन द्ये अर्कमल
हाडा पासे हैक, हैक छताय हजार सम
हारे जाय हरेक, शास्त्रविदो कवि सुर्यमल
मदिरा गणिका मित्र, चोट अपार चरित्र पर
तर्क जगत पर तित्र, उड देखाड्यो अर्कमल
*(छंद छप्पय)*
नमन सुर्यमल नाम, माम चारण गण मध्ये
कवि तम कर्म अजोड, तोड पायो नहि पद्ये
काव्य अषाढी कंद, छंद नहि लेश छटक्के
मूर्धस्थान अति मार, शब्द पळ फळे पटक्के
फल आम नही पण आम धर, काल सुखो कविरो कडौ
तद् मेह रती काव्ये बरस ,ब्रख हाडौती पर बडौ
-कवि धार्मिक गढवी

28 जून 2017

|| कविनुं स्वपन || - कवि धार्मिक जाशील (गढवी)

*|| कविनुं स्वपन ||*
अणगमती मुज एह, दुध पिये डेरी तणा
भली दोवती भेह, नारी परणू नेहनी
देखेली नय डीश, तरबोळे घी तांहळी
राखे सेज न रीस, नारी परणू नेहनी
फेशनरी नय फांट, ओजस पाखे ओढणे
गमे जनमरी गांठ, नारी परणू नेहनी
मुबइनो नय मोह, गोवा जेने नह गमे
तेवी भोळी तोह, नारी परणू नेहनी
लाख तणी हो लाज ,एक्टीवा नह आवडे
सुंदर देशी साज, नारी परणू नेहनी
माँ ने नह क्ये मोम, फोन जरा नय फावतो
जबर काममां जोम, नारी परणू नेहनी
रुडु पोमे रोम, सोम समी ई सुंदरी
भमी गही गीर भोम, नारी परणू नेहनी
प्रितम माथे प्रेम, बहु करे ई बिंदणी
ताणे नय पण टेैम, नारी परणू नेहनी
मन माही मुज लोभ, डीग्री नय दिकरी तणो
मोंघा घरनो मोभ, नारी परणू नेहनी
मेकप लेश न मुख, चारणयाणी चमकती
द्ये नय खर्चा दुख, नारी परणू नेहनी
*-कवि धार्मिक जाशील (गढवी)*

13 मई 2017

|| बचुबापु गढवी ||-कवि धार्मिकभा गढवी

*|| बचुबापु गढवी ||*
*(दुहा)*
गोला थइ ग्या गढवियो, गाता केवा गान
जनमे क्यारे जगतमां, बीजो बचुदान *(१)*
खट थई ग्या छे खत्रियो, मटियल एना मान
धरजो अमने हे धरा, बीजो बचुदान *(२)*
*(छंद:- हरिगीत)*
उपासना क्षात्रत्वनी ने शौर्य रसने सांभळी
सरकार सारी थरथरी गइ शासको ग्या खळभळी
जाहेरमां प्रतिबंध राख्यो कही जोखम जानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(३)*
चारणत्वनी ते चोट राखी गीत गाया ना कदी
भगवान ते भडवीर कीधा वांक पण कायम वदी
खत्री बधा खुंखार करियल कही जोखम खानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(४)*
इतिहास आखो अर्थमां कइ सत्यने समजावतो
स्वसर्जने जीवी गयो तुं को किधु ना चावतो
कायर कहे भुंडा भणे सत बोलवामां भानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(५)*
वढवाण जालावाड जीवण नामथी जन्मयो हतो
सामे भले हो स्टेट बेठा भरसभामां भूपतो
रत दोकडा खोटा करे वख्खाण नाही दानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(६)*
आर्याव्रती उजळी किरतने अम लगी तुं आपतो
परताप पृथ्विराज केरा नाम कायम जापतो
वाणी अत्ति तीखी हती ई चीरती पड कानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(७)*
*(छंद:- छप्पय)*
बोले बचुदान, खानको हरदम खटके
बोले बचुदान, राणको कायम रटके
बोले बचुदान, तानमां हरदम टोके
बोले बचुदान, गानको कदी न गोखे
बस दो दशका दुनिया मही, जीवन गर जाजु होत
सब पलटे शासन प्रांतना, ने बिग्रह थात बहोत *(८)*
_*-कवि धार्मिकभा गढवी रचित*_
*संपर्क:- 9712422105*

|| बचुबापु गढवी ||-कवि धार्मिकभा गढवी

*|| बचुबापु गढवी ||*
*(दुहा)*
गोला थइ ग्या गढवियो, गाता केवा गान
जनमे क्यारे जगतमां, बीजो बचुदान *(१)*
खट थई ग्या छे खत्रियो, मटियल एना मान
धरजो अमने हे धरा, बीजो बचुदान *(२)*
*(छंद:- हरिगीत)*
उपासना क्षात्रत्वनी ने शौर्य रसने सांभळी
सरकार सारी थरथरी गइ शासको ग्या खळभळी
जाहेरमां प्रतिबंध राख्यो कही जोखम जानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(३)*
चारणत्वनी ते चोट राखी गीत गाया ना कदी
भगवान ते भडवीर कीधा वांक पण कायम वदी
खत्री बधा खुंखार करियल कही जोखम खानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(४)*
इतिहास आखो अर्थमां कइ सत्यने समजावतो
स्वसर्जने जीवी गयो तुं को किधु ना चावतो
कायर कहे भुंडा भणे सत बोलवामां भानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(५)*
वढवाण जालावाड जीवण नामथी जन्मयो हतो
सामे भले हो स्टेट बेठा भरसभामां भूपतो
रत दोकडा खोटा करे वख्खाण नाही दानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(६)*
आर्याव्रती उजळी किरतने अम लगी तुं आपतो
परताप पृथ्विराज केरा नाम कायम जापतो
वाणी अत्ति तीखी हती ई चीरती पड कानना
वहमां छता सत वेण वागे बाण बचूदानना *(७)*
*(छंद:- छप्पय)*
बोले बचुदान, खानको हरदम खटके
बोले बचुदान, राणको कायम रटके
बोले बचुदान, तानमां हरदम टोके
बोले बचुदान, गानको कदी न गोखे
बस दो दशका दुनिया मही, जीवन गर जाजु होत
सब पलटे शासन प्रांतना, ने बिग्रह थात बहोत *(८)*
_*-कवि धार्मिकभा गढवी रचित*_
*संपर्क:- 9712422105*

14 अप्रैल 2017

|| युद्ध वर्णन || रचना कवि धार्मिकभा गढवी

*|| युद्ध वर्णन ||*
*(छंद मोतीदाम)*
घणी धणणाट घणी घमसाण
मची रणजंग अत्तिशय हाण
नभो परथी बरसे खुब बाण
परस्पर एक दुजा हर प्राण *(१)*
धरी तलवार बिजे कर ढाल
अरि पर वार पडे मन फाल
नभे सब धूळ धरा सब लाल
दिसे वह द्रश कुकोप कराल *(२)*
निरंतर घाव थता हरदम्म
हरेक क्षणेय पधारत जम्म
गजावत गज्ज धरा धमधम्म
फटाफट अश्र्व चले पडदम्म *(३)*
ध्रबांग ध्रबांग बजे हर ढोल
हरीहर ओम रटे मुख बोल
छटाछट भोम उडे लहु छोल
विरो हर रास रमे लग गोल *(४)*
करे हद हास नरा नर नास
दिसे चहुकोर जमीं पर लास
जरा पलभार खमे नह त्रास
अणी पर शस्त्र तणी बस मांस *(५)*
धरा पर धूल मिले सह खून
अत्ति हलचल्ल छता सब सून
मरा मर मार धरी मन धून
निरंतर वार करे विर पून *(६)*
कहेर बहुत्त करे अकरोस
जमावत जुद्ध मही बहु जोस
चुकावत वार अरोस परोस
दखावत विर्ध पक्षे हर दोस *(७)*
महावत धारत आगळ  गज्ज
अने सब अश्र्व सवार सुसज्ज
धमाधम धार उडे रण रज्ज
रहे बनराज रु भागत अज्ज *(८)*
सजी समरांगणमां शणगार
नभे तक आंख खडी लय हार
करी बस राह दिसे बस धार
रु अप्सर हूर अलौकिक नार *(९)*
लडे रण हाथ धरी हथियार
मचावत फौज दु मारम मार
करे सब अंग कु आरमपार
झिले तब भोम विरा तण भार *(१०)*
- *कवि धार्मिकभा गढवी रचित*
9712422105

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