*मितेशदान(सिंहढाय्च) कृत रामायण महागाथा मांथी,,,,,,,,*
सुणे कह राम काहूभेद गंग,
धरे उतरण कबे कहु रंग,
सुरालोक मेय विहारत बेय,
मिलाप कितेय धरा उतरेय,
*|| रचना: धरती पर गंगा का अवतरण ||*
*||कर्ता-मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च)||*
*|| छंद-सारसी ||*
अयोधा मही सुख राज होवत सगर नामक नृप हो,
पत्नी विदर्भी केशिनी पर पुत्र नहवे हीन हो,
धर्मान्त सत्यं धरण चित्तम रूपवंती नारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी,(1-116)
सुमिता हूती अर्धांग दूजी पुत्र नाही एकली,
सह केशिनी मन अड़ग ध्यानम पति संगे दो चली,
भृगुपरसवण गए जाप किन्नो वरद लिन्नो प्रारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(2-117)
वर एक दीन्नो पुत्र उजळो उजागर कुळ आगते,
दिन्नो दूजो वर पुत्र साठ हजार धर कूख त्यागते,
निश्चय लिनो एक को की कुण धर एक उरथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(3-118)
कूख केशिनी के जन्म धारण दुष्ट ई असमझ्झ थ्यो,
सुमिताय कुखे एक तुंबो साठ पुत्रे सज्ज थ्यो,
पोषण कियो लिए कुम्भ घी में सुख लिए परमार्थी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(4-119)
सूत जेष्ठ यौवन समय काले दुष्ट मन धर आकरो,
कर बाल लघु को नाखिया सरयू सरिता मा फरो,
इण दुष्ट कारण सगर काढत राज बारे त्यारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(5-120)
*(असमझ्झ को अंशुमान नाम का एक पुत्र था। अंशुमान अत्यंत सदाचारी और पराक्रमी था। एक दिन राजा सगर के मन में अश्वमेघ यज्ञ करवाने का विचार आया। शीघ्र ही उन्होंने अपने इस विचार को कार्यरूप में परिणित कर दिया।”)*
किये अश्वमेघन यज्ञ राजन अश्व छोडत धर परे,
रक्षाय काजन अंशुमन हरीतिमायुक्तन दळ धरे,
मद भान भूल्यो इन्द्र चोरत अश्व राक्षस रूपथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(6-121)
क्रोधी बनी किये सगर आदेश पुत्र साठ हजार को,
ले आव पातक को धरा अम यज्ञ कज संहार को,
त्रिलोक नही कही मिले पातक धरण खोदत वारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी,(7-122)
पाताल गए जब साठ पुत्रा निरख मुनि तप जापता,
मुनि कपिल पासत अश्व बांधे ध्यान गगने व्यापता,
अणसमज मन धर साठ पुत्रा भंग तप कियो खारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी,(8-123)
क्रोधि बने मुनि निरख दोषी भंग तप कियो पातके,
जारीय किन्नौ भष्म तन तब ज्वाल अगन वहावके,
तद अंशुमान सु अश्व शोधन गए गुफावट द्वारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी,(9-124)
तन मन भयो दुख अतीय अंशुमन क्षोभ लावत उर महि,
निश्चय किन्नो मोक्ष कारण साठ भ्राता जल त्यही,
ब्रह्मा तणो तप ख़ूब किन्नो ध्यान वर बाता कथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी,(10-125)
*(महाराज सगर के देहान्त के पश्चात् अंशुमान बड़ी न्यायप्रियता के साथ शासन करने लगे। अंशुमान के परम प्रतापी पुत्र दिलीप हुये। दिलीप के वयस्क हो जाने पर अंशुमान दिलीप को राज्य का भार सौंप कर हिमालय की कन्दराओं में जाकर गंगा को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करने लगे किन्तु उन्हें सफलता नहीं प्राप्त हो पाई और वे स्वर्ग सिधार गए। इधर जब राजा दिलीप का धर्मनिष्ठ पुत्र भगीरथ बड़ा हुआ तो उसे राज्य का भार सौंपकर दिलीप भी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये तपस्या करने चले गये। पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली। भगीरथ बड़े प्रजावत्सल नरेश थे किन्तु उनकी कोई सन्तान नहीं हुई। इस पर वे अपने राज्य का भार मन्त्रियों को सौंपकर स्वयं गंगावतरण के लिये गोकर्ण नामक तीर्थ पर जाकर कठोर तपस्या करने लगे)*
धर एक अंगूठेय कियो अडग तप शिव मन लियो,
परसन्न किते शिव मांग वर हर गंग धर पर लावियो,
मद मान चकचूर भान गंगा धरण रूप जल त्यारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(11-126)
पटकई धरण मन टेक शिव तन वेग जलमें वाहना,
महादेव खोलत जटा जकड़े गंग मन कट ध्यावना,
जल विलीन देखत राज भगीरथ तप कीनो तब फेरथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(12-127)
वहती करी अभिमान चूर कर सात भागे भामणे,
त्रि भाग ह्रादिनी छोड़ के नलिनीय पावनी
नामणे,
सिंधु सुचक्षी और सीता पच्छिमें भवतारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(11-128)
भगीरथ चले त्यही सप्त भागम गंग चलती जा रही,
कर पावना सब मुक्त मुनि गण दोष दारत जल ग्रही,
वही जह्नू यज्ञ विखेर कर तप भंग करियो खारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(12-129)
क्रोधी हुए मुनि त्याग तप जप गंग जल घट पी गये,
संसार मुनि सब विनव जह्नु मोक्ष कज आधार ये,
किरपा कीये मुनि नाथ छोड़ी गंग कर्णो द्वारथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(13-130)
गयी गंग भगीरथ संग सर कज रसातल उद्धार को,
किये मोक्ष साठ हजार को दिए स्वर्ग स्थान सुधार को,
जय जाह्नवी *मीत* नमन तुजने त्रिपथगा भागीरथी,
पापो हरण कज वरण जल धर अवतरी भागीरथी(13-131)
*(तबसे गंगा नदी जाह्नवी,त्रिपथगा,और भागीरथी नाम से जानी गयी,)*
*🙏----मितेशदान(सिंहढाय्च)----🙏*
*कवि मीत*