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"जय माताजी मारा आ ब्लॉगमां आपणु स्वागत छे मुलाक़ात बदल आपनो आभार "
आ ब्लोगमां चारणी साहित्यने लगती माहिती मळी रहे ते माटे नानकडो प्रयास करेल छे.

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8 फ़रवरी 2019

छंद हरिगीत रचना :- माणेकभाई थार्या गढवी

प्रातः स्मरणीय प.पु.आई श्री हांसबाई मां (मोटा रतडिया मांडवी कच्छ)नो 91 मो जन्म महोत्सव वसंत पंचमी ता.10-02-2019 ना रोज उजवाशे ऐ निमिते माणेकभाई थार्या गढवी नी ऐक रचना आपनी समक्ष मुकववानुं नानकडो प्रयास करेल छे.

छंद हरिगीत
रचना :- माणेकभाई थार्या गढवी
भली भोळी भगवती जनजनने मन भावती
आवो बेटा खावो, बुलंद कंठथी बोलवती
जाई चरणे झुकता ऐना वारणे विघ्नो हरे
हंसबाई हसते मुख हेते महेरर्दष्टि मा करे....
जूठो बंधन जगतनो ऐक झाटकामां तोडियो
भूतनाथनी भगति तणो, रूदिया महीं रस घोळीयो
प्रेमघेली घेली मा गात्राळने राजी करे
हंसबाई हसते मुख हेते महेरर्दष्टि मा करे...
बूढा शरीरे बाई भीतर साव नानी बाळ छे
मरमाळ छे मायाळ दिल दरियावथी विशाळ छे
विकराळ वीफरे वाघ जेवी,असुर वृत्ति उपरे
हंसबाई हसते मुख हेते महेरर्दष्टि मा करे...
जोगी वहाला छे बहु गमतो वतन गिरनार छे
जनम अगले जोगणीना ऐ बधा आचार छे
सत् धर्मनां तेज मुख पर त्याग साथे तरवरे
हंसबाई हसते मुख हेते महेरर्दष्टि मा करे...
सत् दया तप शोच ऐवा सद्गुणोनी शोभती
"माणेक" मिथ्या मान धननी लालचे नव लोभती
भजन बळथी भेळीयावाळी मोज आपे ने करे
हंसबाई हसते मुख हेते महेरर्दष्टि मा करे...
धन धाम रूडो रतडियो जगदंब चारण जातनी
पिता नरा नाराण ने घन गोद गोरबाई मातनी
मा विनाना देव शिवनी आश पूरी ऐ करे
हंसबाई हसते मुख हेते महेरर्दष्टि मा करे...
रचियता  :- माणेकभाई थार्या गढवी


टाईप बाय :- www.charanisahity.in

संदर्भ :- आई श्री हांसबाई मां गुणगाथा पुस्तक मांथी


      वंदे सोनल मातरम् 


27 फ़रवरी 2018

चारण कवि माणेक थार्या जसाणी(जरपरा)

चारण कवि माणेक थार्या जसाणी(जरपरा)

कोइ हसी कोइ रोइ
               लइ लाखो मनोरथो
सुइ जाता सौ कोइ
               मोत निंदरमां माणका।
मननुं धार्यु मोइ
                पूरुं नव कोइनुं थतुं
सूइ जाता सौ कोइ
                मूकी अधूरु माणका।
करीने सारा काम
                 जश कमावो जगत मां
मत करो बदनाम
                 माता पिता ने माणका।
रटे न मुखथी राम
                 हटे न हैयुं हरामथी
कटे न मननो काम
                 मटे न पीडा माणका।

7 दिसंबर 2017

चारण कवि माणेक थार्या जसाणी

चारण कवि माणेक थार्या जसाणी
(जरपरा- कच्छ)

कोइ हसी कोइ रोइ
               लइ लाखो मनोरथो
सुइ जाता सौ कोइ
               मोत निंदरमां माणका
मननुं धार्यु मोइ
                पूरुं नव कोइनुं थतुं
सूइ जाता सौ कोइ
                मूकी अधूरु माणका
करीने सारा काम
                 जश कमावो जगत मां
मत करो बदनाम
                 माता पिता ने माणका
रटे न मुखथी राम
                 हटे न हैयुं हरामथी
कटे न मननो काम
                 मटे न पीडा माणका

18 अक्टूबर 2017

आवो दिवाळी उजवीऐ - रचना :- कविश्री माणेक थार्या जसाणी (गढवी) - झरपरा-कच्छ

आवो दिवाळी उजवीऐ

रचना :- कविश्री  माणेक थार्या जसाणी (गढवी) - झरपरा-कच्छ



आवो दिवाळी उजवीऐ सौ छळ कपट ने छोडी
छळ कपट ने छोडी मळीऐ दिलथी दिलने जोडी,
प्रेम तणां पाणीथी धोईऐ सत्त नी साबु चोडी
भीतरनी भींतोने करीऐ दाग विनानी धोडी,
रुदिआ केरा पट आंगणमां रंगीऐ सुंदीर रंगोडी
लगुतानी ग्रंथीओ नाखीऐ फटाकडा जेम फोडी,
कोईना जांखा जीवन दीपमां दीवेल पुरीऐ दोडी
सांघा दईऐ तुटेला ने जुदा पडेल ने जोडी,
पीऐ प्रेम रस आंख प्याले गटमां "माणेक" गोडी
बनेतो बुजाईऐ कोईनी हैये बळती होळी,

रचना :- कविश्री माणेक थार्या जसाणी (गढवी) - झरपरा-कच्छ

टाईप :- www.charanisahity.in

5 सितंबर 2017

कवि श्री माणेक गढवी (जसाणी )नी रचना

मरु छुं जेने मळवा  तेनु मुख ना हुं देखु ।
डरु छुं जेना थी ऐतो रोज सामो थाय छे ॥

छुटवा जेना थी भागु छोडे ई ना छेडो ।
दोडु जेनी पाछळ ते दूर भागी जाय छे ॥

अमृत नु काने सांभळ्यु छे नाम खाली ।
बाकी उगाडी आंखे जेर ज देखाय छे ॥

'माणेक' पारसमणि क्यांय देखाती नथी ।
अहीं चमकती चिरोडी मां मन छेतराय छे ॥

        कवि :- माणेक गढवी (जसाणी ) (जरपरा-मुंद्रा)

23 मई 2017

मातृमहिमा रचना माणेकभाइ थार्याभाई गढवी

मातृमहिमा

मेरी माॅं, माॅं सारे जग की, महतत्व वही महामाया है.
जिसका यश गाया वेदोंने, जिसने ब्रह्मांड बनाया है.

परिपालन वो पवनं बनके, जननी जनका हर बार करे.
श्र्वासों में आ करके जिसने, प्रानों का दूध पिलाया है.

धरती धरती बनके भरती, कबहू न किसे परिहरती है.
पर्वत नदियां पैडोंसे शोभित, ओषध विविध पकाया है.

जो गर्जत काले बादल में , बिजली बनके वो नृत्य करे.
करषी जल सागर का जिसने, बरषी मधुरं बरषाया है.

फलती रसधार बहार बनी, हसती कुसुमे कलिये कलिये.
उषमा संध्या बनके जिसने, नित नूतन रूप दिखाया है.

दिखता हि नहीं मुजको जगमें, कुछभी उससे बिलगा करके.
प्रभुताई कहौं इसमें उसकी, जिसने मुजको समजाया है.

हर बालक में  दिखने लगती, सुरता अपनी  महतारिनकी.
तुम देख जरा गहरी नजरे, कह माणेक रूप छुपाया है.

आ मातृमहिमा श्री माणेकभाइ थार्याभक्तनी छे
टाइप:- सामळा .पी. गढवी
मोटी खाखर (कच्छ)
मो:- 9925548224
जय माताजी
🌹🙏👏🙏🌹

14 मई 2017

माँ कवि माणेक थार्या जसाणी

🌹🌹🌹🌹माँ 🌹🌹🌹🌹

                      दुहा

कवि माणेक थार्या जसाणी
                  झरपरा कच्छ

जीरवी लईने झेर
          हसते मोढे हेतथी
अमृत दइ उछेर
          माता करती माणका

पोते सहीने पीर
          पय प्यारथी पोसती
सुंदर मनूष्य शरीर
          मा ऐ दीधुं माणका

🌹जय माताजी 🌹

🌹🌹🌹🌹👏🏼🌹🌹🌹🌹

18 नवंबर 2016

सोरठा - चारण कवि माणेक थार्या जसाणी

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                    सोरठा

चारण कवि माणेक थार्या जसाणी

कोइ हसी कोइ रोइ
               लइ लाखो मनोरथो
सुइ जाता सौ कोइ
               मोत निंदरमां माणका

मननुं धार्यु मोइ
                पूरुं नव कोइनुं थतुं
सूइ जाता सौ कोइ
                मूकी अधूरु माणका

करीने सारा काम
                 जश कमावो जगत मां
मत करो बदनाम
                 माता पिता ने माणका

रटे न मुखथी राम
                 हटे न हैयुं हरामथी
कटे न मननो काम
                 मटे न पीडा माणका

    
     📝  हरि गढवी ववार कच्छ

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