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"जय माताजी मारा आ ब्लॉगमां आपणु स्वागत छे मुलाक़ात बदल आपनो आभार "
आ ब्लोगमां चारणी साहित्यने लगती माहिती मळी रहे ते माटे नानकडो प्रयास करेल छे.

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11 मई 2017

जय मा बहुचर प्रस्तुति कवि चकमक

हालना पाकिस्तानना थरपाकर विस्तारना खारोड नामना गामे बापलभाई देथा नामना चारण थई गया. तेमने बूट, बल्लळ अने बेचराजी नामनी त्रण दीकरीओ अने ऐक पुत्र खीमाजी हता. देथा ऐ चारणोनी शाखा छे. बेचराजीनी मातानुं नाम देवल आई छे.

पशुपालनना व्यवसाये वारंवार दुष्काळे स्थळांतर करतां रहयां. आई बेचराजीनुं कुटुंब सणखलपुर गामे आव्युं.

त्यां प्रजा पर लूंटाराओ, राक्षसोनो त्रास तेमणे जोयो ने त्रिशूल उपाडयुं. वरखडीना वृक्ष तेमज तळावडीना किनारे चमत्कारोनी हारमाळा सजीॅ तेमणे दैवी शकित तरीकेनी सौ प्रथम त्यां नोबत वगाडी प्रतीति करावी.

ते स्थळे राजवी शंखलराजे ऐक नाजुक स्थानक ई. स. 1152 मां बंघाव्युं. ते राजवीना नाम उपरथी गामनुं नाम सणखलपुर पडेलुं छे. ते पछी मराठा सरदार फडनवीसे अने त्यार बाद माताना राव गायकवाडे मंदिर बंघावेलुं. ते अगाउ माताजीनो गोखलो हतो.

ई. स. 780-90 ना समयगाळाना अंदाजोमां आई बेचराजीऐ ते नामे बापल देथा नामना चारणने त्यां देह घारण करेल.

आ सत्य ईतिहासने अन्य समाजे बदली काल्पनिक ईतिहास पोताना स्वाॅथ खातर उभो करी चारण समाजनी लागणी दुभावी छे.

कोईपण समाजनी लागणी न दुभाय तेवी टिप्पणी प्रत्ये कडक वलण अपनावनार सरकार चारण समाजना ईतिहासने बदली नाखनार प्रत्ये केम कुणु वलण अपनावे छे ? मुक प्रेक्षक बनी केम निहाळे छे ?

तो ऐक चारण तरीके हुं कवि चकमक मा बहुचरनी भकित के उपासनामां खामी रही गई होय तो मारा पूरा समाज वती मा नी माफी मागुं छुं अने परचा पूरनारी हे मा तुं स्वयं प्रगट थई तारा ईतिहासने बदलनारा तत्वोनी शान ठेकाणे लावी तेमने सदबुद्घी तुं ज आपजे. मा आखो मामलो मा अमे तने सोंपीये छीऐ.

जय मा बहुचर.

प्रस्तुति कवि चकमक.

9 मई 2017

जरा विचारो...!प्रस्तुति कवि चकमक.

जरा विचारो...!

शिखर उपर उभेली चारण कोम अघोगतिनी पडेली जोई शकाय छे. तेना उपर अज्ञानताना गीघो पांखो फफडावे छे.

जागृत अवस्थामां तेओ ईतिहासमां हता तेवा माने छे. तेमना बापदादा गाता तेम गाय छे. कविताओ करता तेम आजे पण करे छे. तेमणे आगेकूच टकावी राखी छे तेम माने छे आ आजना चारणोनो बचाव भ्रामक छे. वघु वखत आ स्थित रहे तो चारणो वतॅमानमांथी भूंसाई जाय.

आपणा युवानो अने शिक्षित वगेॅ आ काम उपाडी लेवुं जोईऐ. चारणो देव हता के दानव ऐने बाजुऐ मूकीने मानव बनवा प्रयत्न करवो जोईऐ.

चारणोमां घरमूळना फेरफारो  शिक्षित युवानो ज करी शके.

दरेक भाईओ विघा प्राप्त करी विद्वान बने. स्त्री केळवणी द्रारा सूतेली ज्ञातिने ढंढोळी जाग्रत करशे.

संस्कार सभर केळवणी मेळवी समाजना विकासमां पोतानुं योगदान आपशे. मा सोनल सौने सदबुद्घी आपे ऐवी प्राथना.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

25 अप्रैल 2017

समाजनो विकास...! प्रस्तुति कवि चकमक

समाजनो विकास...!

जो आपणे आपणां समाजनो विकास साघवो होय तो आजनी वास्तविकतानो स्वीकार करीने लग्न पाछळ करवामां आवता बीनजरुरी खचाॅ अने उत्तरक्रिया-कारज भोजन पाछळ थता बेफाम खचाॅ बंघ करवां जोईऐ.

आपणा पोताना बनावेला खोटा वहेवारो वघारीने आपणे समाजमां देखादेखीथी करवामां आवता मोटा वराने कारणे समाज आथिॅक पछात रहयो छे.

आथिॅक पछात समाज कयारेय सामाजिक अने शैक्षणिक विकास करी शकतो नथी.

परम पू. आई श्री सोनलमांऐ पण आ माटे जबरी जेहाद जगावेल जे आपणे सौ जाणीऐ छीऐ.

मोटाभागना वहेवारो देखादेखीथी अने खोटा धमंडमांथी ज जन्मया छे.

दा. त. ऐक ज धरमां जुदा जुदा धरनी दिकरीयुं परणीने आवे छे तेमां बघाना मावतरनी स्थिति सारी नथी होती. बघी वहुओ ऐकसरखो करियावर नथी लावी शकवानी, त्यारे ओछो करियावर-दायजो लावनार साघारण धरनी दिकरीने तमारो दायजो शाप बनी जाय छे अने तेमांथी धरकंकास जन्मे छे.

खोटा खचाॅ न करता पैसानो सदुपयोग अापणां बाळकोना शिक्षण कायॅमां अने पोतानी स्थिति सुघारवामां तेमज आपणी ज्ञातिहितनां कायॅमां करी पोतानो अने समाजनो विकास साघीये तेम अत्यारनी स्थिति जोता जणाय छे.

समाजनो आथिॅक अने सामाजिक विकास करवामां सौ ज्ञातिबंघुओना सहकारनी जरुर छे अने आवा परिवतॅनशील विचारो ज आवती पेढी माटे आशीवाॅदरुप बनी रहेशे.

तो कवि चकमकनी विनंती के आवो आजथी ज आपणा सामाजिक उत्थाननां विचारने अमलमां मुकवा दढ निणॅय करीऐ.

जय माँ सोनल.

प्रस्तुति कवि चकमक.

18 अप्रैल 2017

जगतमां त्रण प्रकारना माणसो होय छे...!

जगतमां त्रण प्रकारना माणसो होय छे...!

ऐक गुलाबना छोड जेवा.

बीजा आंबाना वृक्ष जेवा.

त्रीजा फणसना छोड जेवा.

*  गुलाबना छोडने फूल ज आवे, फळ न आवे.
समाजमां केटलाक लोको ऐवा होय छे. जे बोलता होय छे, कांई करता नथी.
केवळ फूल, फळ नहि. ''

*  आंबाने मोर आवे ने फळ पण आवे.
समाजमां केटलाक लोको ऐवा होय छे. जे बोले ऐ करी बतावे छे. ''

* फणसना वृक्षने फूल नथी आवतां, सीघा फळ आवे छे.
समाजमां अमुक माणसो ऐवा होय छे. जे बोलता नथी, कायॅ द्रारा समाजने सीघुं परिणाम आपे छे.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

17 अप्रैल 2017

मा सरस्वतीनी उपासक चारण ज्ञातिऐ हंमेशा शुभवाणी बोलवी...!

मा सरस्वतीनी उपासक चारण ज्ञातिऐ हंमेशा शुभवाणी बोलवी...!

आई श्री सोनलमा कहेता के आपणे मा शारदाना उपासको छीऐ, कोईनी निंदा कुथली करीने शारदाऐ आपेल वाणीने कयारेय अभडावशो नहीं.

अपशब्द चारणोथी बोलाय ज नहीं कारण के आपणे अमृतना बाळक छीऐ, विषना नहीं. जे ऐवुं करशे तेना उपर माताजी कयारेय प्रसन्न नहि थाय माटे सौ प्रथम आपणा वहेवारमां माताजीनी प्रतिष्ठा करवानी छे.

वाणी ऐ मा छे. वाणी थकी ज विश्वनो वहेवार चाले छे.

युगशकितमां सोनलमाना विचारो मात्र सिघ्घांतिक न हता ते संपूॅण वहेवारीक अने प्रयोगात्मक हता.

पू. आईमा कहेता के नबळो विचार ऐ ज मृत्यु समान छे.

माणसनी नियत बगडे तो नसीब बगडे. नियत अने नसीबने सीघो सबंघ छे. '' नियत तेवुं नसीब  '' पुरुषाथॅ ऐज परचो छे. निष्फळता ऐ शुं छे ? बीजुं कांई नथी प्रयत्ननो ज अभाव छे.

समाजमां पुरुषाथीॅ माणस ज स्वपनो साकार करी शके.

ऐकबीजाने सुख दु:खमां मुश्केलीमां मददरुप थई पोतानो बनतो टेको आपी उभा करवानी भावना ज्यारे निमाॅण थशे त्यारे ज समाजनी उन्नति थशे.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

12 अप्रैल 2017

जिंदगीमां नेगेटिविटीनुं पण महत्व छे...! प्रस्तुति कवि चकमक.

जिंदगीमां नेगेटिविटीनुं पण महत्व छे...!

उदासी वगर आनंदनुं कोई महत्व होत खरुं ?
विरह वगर मिलननी कोई मजा होत खरी ?
थाक वगर ऊंधनो साचो आनंद मळे खरो ?
सुखनुं पण ऐवुं ज छे. दु:ख वगर सुखनी समज ज नथी पडती.

जिंदगी फजरफाळका जेवी छे. उपर जाव तो नीचे आवती वखते शेरडो पडे अने नीचे आव्या पछी रोमांच थाय.
मेरी-गो-राउन्ड उपर जवाने बदले गोळ गोळ फरतुं होय तो कोई आनंद नथी.

आपणे ईच्छता होय ऐवुं फळ न मळे त्यारे आपणे ऐने निष्फळता मानी लेता होईऐ छीऐ. निष्फळतामां सफळतानुं तत्व छुपायेलुं छे.

कोई निष्फळताथी न डरो. निष्फळताने निराशामां कन्वटॅ न थवा दो. निष्फळता खराब नथी. निराशा खराब छे.

आपणे निष्फळ गया छीऐ. तमे बस आवुं न मानो तो सफळताना द्रार तमारा माटे खुल्ला छे.

विश्वनी धणी बघी शोघो ऐवी छे  जे शोघवा गया होय कंई ने शोघाई गयुं होय कंईक जुदुं ज.

ऐरकन्डिशनरनी शोघ केवी रीते थई ? प्रिन्टिंग प्रेशमां भेज थतो हतो. अा मोईचियुरने दूर करवा कोई यंत्रनी जरुर हती. ऐ यंत्र ठंडक आपवा मांडयु अने अनायासे ज ऐरकन्डिशनरनी शोघ थई गई. अत्यारे ऐ आपणने ओफिस के बेडरुममां ठंडक आपे छे.

ऐ ऐसी शोघनारने खबर न हती के मारा यंत्रनो उपयोग आवो थशे. जे उद्देश माटे ऐणे काम कयुॅ ऐ उद्देश सिद्घ न थयो, पण ऐक जुदी ज सीद्घी मळी गई. सवाल मात्र कंईक करवानो छे. अने तेनाथी मोटो सवाल निराश न थवानो छे.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

वढियार घरानुं रत्न कवि कान गांगडा...!

वढियार घरानुं रत्न कवि कान गांगडा...!

जन्म.अंदाजे ई.स. 1912.
मृत्यु. अंदाजे ई.स. 1976

ऐक दिवस कविऐ प्रतिज्ञा करी '' हुं मानवीनी कविता नहि बनावुं. ईश्वर सिवाय कोईनी कविता नहि कहुं. ''

मानवीओनी प्रशस्तिथी मान मळतुं हशे परंतु ईश्वरनी आराघनाऐ भवसागरना फेरा टळी जाय छे.

अने कविऐ गीत गायुं :
'' डंको रे दीघो लंकानी दोढीऐ, दशरथना कुंवर...! ''

ऐक दिवस कवि पोतानी कवितामां रामने घमकी आपे छे, '' देवा जोशे तारे दान ''

कविनी खुमारी तो जुओ. रामने घमकी आपता कहे छे के, '' हुं देवीपुत्र छुं. तमाम चंडीकाने आहवान करीश. तारा गढना कांगरा लोहीथी रंगीश तो राधवोनुं घनोतपनोत नीकळी जशे.

कविने पोतानी मुकित माटेना द्रार खोलवानां दान जोईऐ छे.
काव्यनी केटलीक पंकितओ उपर द्दष्टि फेरवीऐ.

देवां जोशे तारे दान रधुवंशी राजा देवां जोशे तारे दान,

नहि छोडुं हुं नाथ अवघना, हुं कजियाळो छुं कान.
मेडी वाळा राधवोनां सुजश मंदिरो उडाडी दईश आसमान..!

चाडिया बांघीने चारे दिशामां, हद विना करीश हेरान.
नकली रंगने करुं छुं नाबूद, घोई नाखुं पूणॅ राखी घ्यान..!

अकलंकी क्षत्रियनो हुं उपासक, विचारजे तुं ज छे विद्वान,
चंडीनो बाळक हुं छुं, वे'लो लेजे चेती, पड खोदी काढुं स्थान..!

घ्रुजावीश अयोघ्या तारुं घाम, रधुवंशी राज घ्रुजावीश तारुं घाम,
घरणुं करीश जो हुं आ घरामां, गुम थई जशे बघुं गाम..!

मीठानी पथारीमां सूईने महिप हुं, तेडावीश चंडीओ तमाम,
करीश लोहीयाण तारा गढना कांगरा, नहि रहे राधवोनुं नाम..!

काळने घ्रुजावनार अमारी कटारो, हजारोनी खेंची ले छे हाम,
अम चारणोनो अद्दभूत योग छे, चीरे नीज हाडने चाम..!

कवि चकमक कयारेक विचारे चडी जाय छे के शुं आपणे आ ज चारणकुळना छीऐ ?

नोंघ : जेने समज होय ई मारा प्रश्ननो प्रतिभाव आपवा विनंती.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

5 अप्रैल 2017

वतॅमाननी आ क्षण ज महामूली छे....!

वतॅमाननी आ क्षण ज महामूली छे....!

Yesterday is a cencelled cheque.

Tommoraw is a promisary note.

But Today is ready cash, use it as you like it.

वाह : केवी सरस मजानी वात अहीं कहेवामां आवी छे !

गईकाल ऐ केन्सल थयेला चेक जेवी छे.

आवती काल ऐ मोटा मोटा वचन आपती प्रोमिसरी नोट जेवी छे.

ऐटले आवती कालनो पण भरोसो करी शकाय तेम नथी. हवे आपणी पासे रहे छे हाथमां रहेली वतॅमाननी आ क्षण.

ऐ क्षण रोकड-केश मनी हाथमां रहेला नगदनारायण जेवी छे. तेनो आपणे जे रीते घारीऐ तेवो उपयोग करी शकीऐ तेम छीऐ.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

1 अप्रैल 2017

परिवतॅन ऐ ज उज्जवळ भविष्यनी चावी छे...!

परिवतॅन ऐ ज उज्जवळ भविष्यनी चावी छे...!

चारणोना पूवॅजो राजामहाराजा ओ साथे रहेता सुवॅणचंद्रको ताम्रपत्रो मेळवता ऐ आपणो गौरवप्रद भूतकाळ हवे रहयो नथी. ते वास्तविकतानो स्वीकार करी वतॅमान अने भविष्यनो विचार करवो जोईऐ.

वतॅमानमां आपणी शुं स्थिति छे ? आजे आपणी पासे खेतीनी जमीन नथी. व्यापार-उघोगने नामे शून्य उपलब्घी छे. साहित्य सजॅन पण हवे बंघ थई रहयुं छे. त्यारे जीवन निवाॅह माटे बे ज विकल्प छे. नोकरी अथवा व्यवसाय.

नोकरी मेळववा उच्च शिक्षण अनिवायॅ छे. मात्र कलाकारनी ओळख भूली उघोग-घंघाना तमाम क्षेत्रोमां आपणे प्रवेशवानो समय आवी गयो छे.

महेनत तथा समजदारीथी समय साथे कदम मिलावी तमाम क्षेत्रे नोकरी व्यवसायथी आपणे आपणी साथे समग्र समाजनी प्रगति करी शकीशुं.

माटे समाजना युवानो आजना युगने अनुरुप ज्ञान मेळवी समय साथे कदम मिलावे अने समाजने नवो मागॅ देखाडे.

आ प्रकारे आपणे समाजने संगठित तथा जागृत करी वतॅमान स्थिति मुजब परिवतॅनशील थई भविष्यने भूतकाळ जेटलुं उज्जवळ अने गौरवशाळी बनावी शकीशुं.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

भीतरनो वैभव...!

भीतरनो वैभव...!

आपणे अंदरथी खाली थई गया छीऐ, मात्र बहारनो वैभव रहयो छे. वैभव तो अंदरनो होवो जोईऐ.

तुलसीदासजी केवळ पाननो लंगोट पहेरता ने मुंजना धासनी जनोई राखता. कपडां तो पहेरता ज नहोता. छतां रहीम द्वारा चित्रकूटमां अकबरनो पत्र आवतो हतो के, ' तुलसी को ऐक बार हमारे दरबारमें लाईऐ. '
त्यारे तुलसीजी कहेता, '' हमारे सरकारका दरबार तो बहोत बडा है. हम अकबर के दरबार में कयों जाये ? ''

आनुं नाम भीतरनो वैभव.

डो. राघाकृष्णनने कोईऐ पूछेलुं के, आजकाल लोको फरवा नीकळे त्यारे अाटला बघा सज्ज थई ने केम नीकळे छे ? त्यारे ऐमणे कहेलुं के, '' अंदर कंई नथी ऐटले बहारथी तैयार थवुं पडे छे. ''

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

30 मार्च 2017

जेवो संग तेओ रंग...! प्रस्तुति कवि चकमक.

जेवो संग तेओ रंग...!

तमे कोनी साथे हरो-फरो छो ? तमारा अंतरंग वतृळमां केवा लोको छे ऐनी खबर पडे तो तरत ज तमारुं माप नीकळी जतुं होय छे.
गुजरातीमां कहेवत छे ' गघेडा साथे धोडो बांघो तो भूंकता न शीखे, पण लात मारता तो शीखे ज '
माणसनुं पण ऐवुं ज छे. नकामा लोकोनी साथे रहेवाथी माणसनी बुद्घी भ्रष्ट थई जाय छे.उत्तम विचारसरणी घरावनार माणसनी नीच लोकोनी संगति थई जाय तो ऐनुं पण पतन थई जाय छे.

संगतिनो नियम छे, जे माणस दोषित होय, नकामो होय पण ऐने योग्य गुणवाळो संग मळी जाय तो ऐनामां पण पेला गुण पेदा थता होय छे. विद्वान लोकोनी साथे रहेवाथी मुखॅ माणस पण विद्वान बनी जाय छे.

रामायणमां कहयुं छे, ' अमृततृल्य साघु संगम '  सत्संगति मळी जाय तो जीवन घन्य बनी जाय छे. वालिया लूंटाराने नारद मळे तो जीवन सुघरी जाय छे.

जेवी रीते कोरी घरतीने पाणी मळी जाय तो ते विस्तार हरियाळो बनी जाय छे. ऐवी ज रीते कोईनो सारो संग जीवनमां हरियाळी उगाळतो होय छे.

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

29 मार्च 2017

चारणो मानां चरणमां तमारुं सवॅस्व सोंपी दो तारे तो पण तुं अने मारे तो पण तुं ज

चारणो मानां चरणमां तमारुं सवॅस्व सोंपी दो. '' तारे तो पण तुं अने मारे तो पण तुं ''...!

देवतानुं रक्षण करती जगदंबा बाळकना दरेक कष्टोने निवारे छे, पण शरत ऐ छे के मांना शरणमां तमारुं सवॅँस्व सोंपी दो. '' तारे तो पण तुं अने मारे तो पण तुं ज ''

बस आ ज भावथी जो माने शरणे जवामां आवे तो मा अवश्य तारी दे छे. आ वात आपणे वांदरा अने बिलाडीना बच्चां द्वारा समजीऐ.

वांदरानुं बच्चुं मानी पीठ पाछळ वळगेलुं ज रहे छे. ते तेने चुस्त रीते पकडी राखे छे, तेथी मा तेना बच्चानी पकड पर विश्वास राखीने कुदका लगाव्या राखे छे  पण बच्चानी पकड ढीली पडता कयारेक ते बच्चुं गबडी पण पडे छे.

ज्यारे बिलाडीनुं बच्चुं माने वळगीने नथी रहेतुं, पण तेने मा पर विश्वास होय छे. ते संपूणॅ रीते तेना पर अवलंबित होय छे.
त्यारे बिलाडी तेना बच्चाने मोंमां लईने ऐवी रीते पकडे छे के बच्चाने दांत वागता पण नथी अने ते पडतुं पण नथी. बस बच्चा पर मानो आ विश्वास ज तेने सुरक्षित राखे छे.

अहीं कहेवानुं तात्पयॅ ऐटलुं ज छे के तन, मन अने घनथी माने समॅपित थई जाव.
दु:ख, ददॅ, आघि, व्याघि बघु ज तेने सोंपी दो, पछी जुओ ऐ मा ज बाळकनी सहाय करवा अघीरी बनीने दोडी आवे छे के नहीं. जेम आई श्री सोनल चारणोनी वारे आवी हती.

तो चारणो अहंकारने ऐकबाजु मूकीने बाळक बनीने माना सानिघ्यमां जाओ तो तमे तेनी आशिषनुं सौभाग्य अवश्य पामी शकशो.

जय नव लाख लोबडीयाळी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

सवेॅना दु:ख हरनारी माता शकितनी उपासना केवी रीते विसरी शकाय ?

सवेॅना दु:ख हरनारी माता शकितनी उपासना केवी रीते विसरी शकाय ?

शकितनी उपासनानुं महत्वनुं ऐक कारण ऐ पण छे के शकित मातृस्वरुपा छे. तेने देवी-रुप के  मातृस्वरुपमां पूजवामां आवे छे.

माताना ह्रदयमां वात्सल्य तो हंमेशा मोजुद होय छे ते करुणामयी छे, दु:ख दूर करनारी छे. भकतोनी मुश्केलीओ तेओ सहन नथी करी शकता ऐटले ऐवुं कहेवाय छे के शकितनी उपासना करवाथी तत्काळ फळ मळे छे अने मुश्केलीनुं निवारण पण जल्दी आवे छे.

हिन्दुओमां प्राचीनकाळथी घमॅना बे पंथ चाले छे, ऐक तो पिता तरीके पुजातो शिवपंथ अने बीजो माता तरीके पुजातो शकितपंथ.

शिवस्वरुपने पुजनारा माटे हिमालयमां आवेला बद्रिकेदारनाथनी यात्रा जेम अंतिम अने छेवटनी मनाय छे तेम शकितपंथमां शकितपुजको माटे माता हिंगळाजनी यात्रा अंतिम गणाय छे. चारण समुदाये आ वात खास घ्यानमां लेवा जेवी छे. माता हिंगळाजनुं स्थानक हाल पाकिस्तानमां आवेलुं छे.

तो सवेॅना दु:ख हरनारी माता शकितनी उपासना केवी रीते विसरी शकाय  ?

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

28 मार्च 2017

आईश्री सोनल विसामो अमदावाद नी वात - कविश्री जीलुभाई सील्गा (चकमक)

श्री समस्त अमदावाद शहेर गढवी ( चारण ) सेवा समाज संस्थाना ' जन सेवा ऐज प्रभु सेवा '' उदेश्यथी चालता '' सोनल विसामा '' विसामानी सेवाकीय प्रवृति निहाळवानो कवि चकमकने मळेलो ल्हावो..!
अमदावाद शहेरनुं न्यु सिविल होस्पिटल ऐशियाभरनुं मोटामां मोटुं अने अघतन साघन सामग्रीथी  सज्ज होस्पिटल छे.

आ होस्पिटलमां गुजरातभरमांथी तेमज राजस्थान, मघ्यप्रदेशमांथी पण चारण परिवारो पोताना आप्तजनोने लईने सारवार हेतु आवे छे. त्यारे सारवार दरम्यान बिमार व्यकित साथे आवेल सगा-स्नेहीऐ कयां रोकावुं ते समस्या मा सोनल कृपाथी हल थई गई छे.

सोनल विसामा माटे नवी केन्सर होस्पिटल सामे मेईन रोडनी बिलकुल नजीक त्रण माळनुं मकान हाल भाडा पेटे राखेलुं छे तेमां ददीॅना सगा-वहालाने रहेवा-जमवानी निशुल्क खरा ह्रदयना भावथी आपवामां आवती सेवा निहाळी हुं भावविभोर थई त्यां हाजर ददीॅना सगाओ कोई सुरतथी कोई अमरेलीथी, कोई मघ्यप्रदेशथी कोई राजस्थानथी ऐक कलाक जेटलो समय तेमनी साथे विताव्यो.

ददीॅओना मुख पर सेवाना लाभनो आत्मसंतोष नजरो नजर तेमनी भाषामां जोवा मळतो हतो तथा तेओ पोतानुं पण योगदान आपवा उत्सुक चारणो में जोया. मारी नजरे ऐक ददीॅना सगाऐ 2100 रुपिया रोकडा आपी योगदान नोघाव्युं. कोईनी पासे पैसा मागवामां न आवता होवा छतां स्वेच्छाऐ चारणो पोतानुं योगदान आपे छे.
बीजु किरिटभाई नोंघुनी निस्वाथॅ सेवा दाद मागी ले तेवी छे.

मारा जाणवा मुजब टुंक समयमां नवुं मकान वेचातुं राख्युं छे तेनो दस्तावेज थई जाय ऐटले तेने पण सुख सुविघाथी सज्ज बनावी समाज सेवामां उपयोगमां लेवा समाज सेवको उत्सुक छे.
आनाथी रुडुं बीजु शुं होई शके मा सोनल सौने शकित आपी आवा रुडा समाज उपयोगी कायोॅ करवानी प्रेरणा अने आत्मबळ आपे ऐवी अभ्यथॅना साथे कवि चकमक प्राथना करे छे.
जय माताजी.

कवि चकमक.

25 मार्च 2017

अमारी घरती कंई वांझणी नथी...!

अमारी घरती कंई वांझणी नथी...!

लोक कविओऐ अने सौराष्ट्रना साहित्यकारोऐ सौराष्ट्रनी भोमकानी पेटभरीने प्रशंसा करेल छे त्यारे वेरान जेवा भासता वढियार प्रदेशनी भोमका माथे ' ताराेरा ' गामना ' कवि मोडजी ' कहे छे, कोई नजर तो नोंघो..! तमने धणुं धणुं जोवा मळशे. आ घरती कांई वांझणी नथी.

उत्तर गुजरातना साहित्यकार ' शिवदान झुला '  ना पुस्तक ' वराणे वाग्या त्रंबाळु ढोल ' मांथी प्रस्तुत करवानुं कवि चकमक गौरव अनुभवे छे कारण के पोतानुं गाम पण वढियारने स्पशीॅने छे.

'' जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी  ''...!

जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी
अहीं घमॅ, घामो, सुरा, सत्संगी

वढियार तळमां गाम छे वराणा,
खोडियार घामे नित जमता परोणा,
महा सुद अाठमे मेळो जंगी,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं...1.

आ घरामां ज वराणानी खोडीयारनां हजारेक वषॅथी बेसणां छे. ऐनी फरकती घजाने लोको श्रद्घाथी नमी रहयां छे.

पांडवो समयनी पुराणी सत्य निष्ठा,
महा लोहेश्वरनी प्रकाशे प्रतिष्ठा,
भादरवा मेळे भूत भागत घतंगी,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं...2.

' लोटेश्वर ' ऐवा तळपदा शब्दोथी अपभ्रंश थयेल लोहेश्वर महादेव पांडव काळथी बिराजमान छे. जेना तापथी पाखंडिया अने भूत भागे छे.

शंखेश्वर पारसनाथना घामो,
हजारो जैन आवी त्यां करता विसामो,
उभा छे देवळो ऐकशो आठ अंगी,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं...3.

जैनोनुं महातीथॅ शंखेश्वर ज्यां पाश्वनाथ भगवान अहिंसानो संदेशो अविरत आपी रहया छे .

मुजपुरमां महाराज जन्म्या गुरु गामी,
संतोना शिरोमणी सच्चिदानंद स्वामी,
हाले सवॅ दुनियामां प्रवचनो प्रसंगी,
जुओ भोम वढियार आ उमंगी...अहीं...4.

मुजपुर गाम आपणा महान संत अने लेखक सच्चिदानंदनी जन्म भोमका छे.
रामवाडीना गोदडीया महाराज, अमरापुरामां काशीगिरि, गायोनी वहारे चडनार सोलंकी युवाननी वात गौरवथी कहे छे.

छलके रसोडां नित शीरा पुरीनां,
हाले सदाव्रत हीरा पुरीनां,
रटता रामेश्वर अभय ऐकरंगी,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं....5.

गहके गोदडीयानी रुडी रामवाडी,
प्राणदास बापुनां चरण ल्यो पखाळी,
तारोराना तीरे, बाला बजरंगी,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं....6.

जे भोम नारायण स्वामी संचरिया,
उदार सदाराम अहीं पाव घरिया,
अमरापुरा आरे काशीगिरि नकलंगी,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं....7.

सदारामे अहींनी घरतीने पावन करेल.

सोलंकी कुळनो क्षत्रिया सुरो,
चढयो घेन वारे अघॅ परणीत पुरो,
आई देवले कीघो अमर अभंगी,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं....8.

कुंवर वास कीघो, शकित शेण बाई,
भरवाड नेहमां देतां वघाई,
राफु रणचंडी मा सभाई,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं....9.

कुंवर गाममां शेणबाई, आई सभाई वगेरे आ विस्तारनां लोकपूज्य स्थळो अने व्यकितओ छे.

सुरा संत दातानी चालु छे सरिता,
अखंड घ्रुव घारा अमर आ अजिता,
मोड कहे महा भोम छे श्याम रंगी,
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी....अहीं....10.

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ज्यां शीवदान झुला, कवि चकमक,
नित नवा साहित्य पीरसता,
रंग चडे नित नवा नव रंगी
जुओ भोम वढियारनी आ उमंगी...अहीं...!

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

24 मार्च 2017

मोगल शासन समये गौहत्या निवारनार 'अवतार चरित्र ' ग्रंथना रचियता चारण कविराज नरहरिदानजी...!

मोगल शासन समये गौहत्या निवारनार  'अवतार चरित्र ' ग्रंथना रचियता चारण कविराज नरहरिदानजी...!

न्यायनो धंट गाये वगाडयो. बादशाह कहे गायनी शुं फरियाद होई शके ? त्यारे नरहरिदानजीऐ ऐक कवित सभामां वहेतुं कयुॅ के गायनी पण आ फरियाद छे.

अरही दंत तृण घरही, तो ही मारत न सबल कोही.
में अहॅनिश तृणचरती, बचन उचारती दीन होही.

अथाॅत : गमे तेवो बळवान माणस होय पण तेनो शत्रु ऐकवार मोंढामां धासनुं तरणुं लईने कहे छे के बस मने मारशो नहि तमारी गाय छुं. तो पेलो बळवान तेने मारतो नथी. ज्यारे हुं पोते ऐक गाय रोज खडना तरणां मोंमा लई भांभरडा नाखुं छुं. तोय मारो वघ केम ?

अमृत सम पैही श्वरी, बच्छ मोही थंभ कहावे.
हिन्दु ही अमृत देत, कटु तुरकेन नही आवे.

अथाॅत : मारा आंचळमां अमृत समान दूघ सदैव झरे, मारा बचडा बळद खेतीना थंभ गणाय. वळी मारुं दूघ हुं हिन्दुओने मीठुं अमृत जेवुं अने मुसलमानने कडवुं आपुं ऐवो भेद अमारे अबोल जानवरोने पण नथी. त्यारे तम मानवीओने आवो भेदभाव शामाटे ?

नरहरि कहंत अकबर सुनो, विनवे गौव जोरे करन,
अपराघ कौन मोरा मारीयात, चाम मोरी सेवत चरन.

कविराज नरहरिदान कहे छे के अकबर गाय तने विनवे छे के मारा मृत्यु बाद मारां चामडाना जोडा लोकोना पगनी रखवाळी करे छे. तोय मारो शुं अपराघ छे. के मारो वघ करवामां आवे छे.

अाटलुं सांभळता ज नरहरिदानना शब्दो अकबरना हैये कोतराई गया, अकबरना मनमां गायो पर करुणा भराई आवी अने कहेवाय छे के बादशाह अकबरे ऐ ज समये ऐना राजमां गौहत्या पर प्रतिबंघ जाहेर कयोॅ हतो.

नोघ : चारण अस्मितामां जांहगीरनुं नाम आवे छे. मने ऐक लेख मळ्यो ऐमां अकबर नाम आवे छे.

कवि चकमक पण सौने अरज करे छे कारण हुं पण ऐक चारण छुं. कोई पण जीवनी हत्या करवानो आपणो अघिकार नथी. कोईनुं जीवन आपी नथी शकता तो अबोल पशुनुं जीवन निदॅयताथी लेवानो तमने शुं अघिकार छे ?

जय माताजी.

प्रस्तुति कवि चकमक.

21 मार्च 2017

लखुं छुं...! रचना जीलुभाई सील्गा(चकमक)

लखुं छुं...!

नथी रोग मने कवितानो के साहित्यनो,
बस, तमने आनंद कराववा लखुं छुं...!

हतो कंईक थई गयो छुं ऐ वहेम,
ऐ वहेमने भूलवा लखुं छुं...!

हुं चारण समाजनी चरणनी रज छुं,
ऐ समजाया पछी लखुं छुं...!

चारण समाजमां आवी छे चारणत्वनी ओट,
ऐ ओटने भरतीमां फेरववा लखुं छुं...!

कोईना डर विना लखवानुं माघ्यम मळ्युं छे,
तो युवामित्रोने साची समजण आपवा लखुं छुं...!

नथी जोईतुं कंई, पद पतिष्ठा, मिलकत के मंच,
मारा निजानंदने पोषवा लखुं छुं...!

स्वजनो, मित्रोने गमशे त्यां सुघी लखीश,
न गमे तो तत्काळ राजीनामुं लखुं छुं...!

'' चकमक '' लखतो रहेशे जीवनभर,
ऐ आशा साथे अा अरमान लखुं छुं...!

जय माताजी.

कवि चकमक.

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