. *|| पतंग दोर नी प्रित ||*
. *राग : कागडा कदीये कारहे नावे....*
. *रचना : जोगीदान गढवी (चडीया )*
. दोहो
. बनवुं साचुं बापला , ऐक बीजा ना आंत
. जुदा न थावुं जोगडा, सिखवे छे सकरांत
. गीत
पतंग नी दोर थी प्रितडी पुराणी......(०२)
सउ ने जोने सिखवी जाती, उतरायण नी उजाणी..
साथे उडवा सोगंद लेईने, बेउ नी गोठडी बंधाणी..
कंठ कोरी ने कोटे लगावी(०२) किनिया बंध केहवाणी..
पतंग नी दोर थी प्रितडी पुरांणी...||01||
दल थी दोरीये साथ दीधो त्यां, मोज्युं आकास नी मांणी
ईरसा पेच मां ढील ना आपतां, (०२)काया दोर नी कपाणी..
पतंग नी दोर थी प्रितडी पुरांणी...||02||
साथ पतंग नो छुटतां भेळी, पडती थईन पटकाणीं
नोखाय थाता निरखी जात ने(०२)धणीं विना धुळ धाणी
पतंग नी दोर थी प्रितडी पुरांणी...||03||
पतंग एकलो भाळी पवन पण, तुरत लई जाय तांणी
लोक बधा ऐने मांड्या लुंटवा(०२)करुंण थई ती कहांणी
पतंग नी दोर थी प्रितडी पुरांणी...||04||
उजळां बेय छे ऐक बीजा थी, जोगी दान ल्यो जांणी..
ऐकलां ईतो साव अधुरा..(०२)राजा होय के रांणी...
पतंग नी दोर थी प्रितडी पुरांणी...||05||
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