. *असमंजस*
. *रचना: जोगीदान गढवी(चडीया)*
. *छंद:सारसी*
कोई कहे काशी चलो कोई कहे चल करबला
कोई सनातन कहत शंकर और कोई के अला
वाडाकरी वणसी गया क्यां शरीर माथे छाप छे
पामी न सकींये पार के शुं पुन्य ने शुं पाप छे.01
ब्रहमा थकी स्रस्टी बणी,अल्लाह आदम आतमो.
परलय करे परमेहरो के खूदा करतो खातमो.
जो नाम खाली छे जुंदा तो केम कापा काप छे
पामी न सकींये पार के शुं पुन्य ने शुं पाप छे.02
ईश्वर तणां छे अंश जगना जीव सौ ए जांणता
हणवाकजु नीज हाथ थी तरवार सीदने तांणता
अल्लाहु अकबर एक जीभे जपे हर हर जाप छे
पामी न सकींये पार के शुं पुन्य ने शुं पाप छे.03
मालीक नी मरजी विना अहीं पांदडु ना घर पडे
जांणे छतांये दान जोगी लोक सघळा कां लडे
तरको दलीलो तणो अा वघतो जतो बस व्याप छे
पामी न सकींये पार के शुं पुन्य ने शुं पाप छे.04
ईशर कहो अल्लाह ईशु क्राईस्ट को के कानजी
जुजवाय रुपे जोगडा सौ भाळतो भग वान जी
बेटो न कोनो बचन साहिब बधा जग नो बाप छे
पामी न सकींये पार के शुं पुन्य ने शुं पाप छे.05
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