वढियार घरानुं रत्न कवि कान गांगडा...!
जन्म.अंदाजे ई.स. 1912.
मृत्यु. अंदाजे ई.स. 1976
ऐक दिवस कविऐ प्रतिज्ञा करी '' हुं मानवीनी कविता नहि बनावुं. ईश्वर सिवाय कोईनी कविता नहि कहुं. ''
मानवीओनी प्रशस्तिथी मान मळतुं हशे परंतु ईश्वरनी आराघनाऐ भवसागरना फेरा टळी जाय छे.
अने कविऐ गीत गायुं :
'' डंको रे दीघो लंकानी दोढीऐ, दशरथना कुंवर...! ''
ऐक दिवस कवि पोतानी कवितामां रामने घमकी आपे छे, '' देवा जोशे तारे दान ''
कविनी खुमारी तो जुओ. रामने घमकी आपता कहे छे के, '' हुं देवीपुत्र छुं. तमाम चंडीकाने आहवान करीश. तारा गढना कांगरा लोहीथी रंगीश तो राधवोनुं घनोतपनोत नीकळी जशे.
कविने पोतानी मुकित माटेना द्रार खोलवानां दान जोईऐ छे.
काव्यनी केटलीक पंकितओ उपर द्दष्टि फेरवीऐ.
देवां जोशे तारे दान रधुवंशी राजा देवां जोशे तारे दान,
नहि छोडुं हुं नाथ अवघना, हुं कजियाळो छुं कान.
मेडी वाळा राधवोनां सुजश मंदिरो उडाडी दईश आसमान..!
चाडिया बांघीने चारे दिशामां, हद विना करीश हेरान.
नकली रंगने करुं छुं नाबूद, घोई नाखुं पूणॅ राखी घ्यान..!
अकलंकी क्षत्रियनो हुं उपासक, विचारजे तुं ज छे विद्वान,
चंडीनो बाळक हुं छुं, वे'लो लेजे चेती, पड खोदी काढुं स्थान..!
घ्रुजावीश अयोघ्या तारुं घाम, रधुवंशी राज घ्रुजावीश तारुं घाम,
घरणुं करीश जो हुं आ घरामां, गुम थई जशे बघुं गाम..!
मीठानी पथारीमां सूईने महिप हुं, तेडावीश चंडीओ तमाम,
करीश लोहीयाण तारा गढना कांगरा, नहि रहे राधवोनुं नाम..!
काळने घ्रुजावनार अमारी कटारो, हजारोनी खेंची ले छे हाम,
अम चारणोनो अद्दभूत योग छे, चीरे नीज हाडने चाम..!
कवि चकमक कयारेक विचारे चडी जाय छे के शुं आपणे आ ज चारणकुळना छीऐ ?
नोंघ : जेने समज होय ई मारा प्रश्ननो प्रतिभाव आपवा विनंती.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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