*||विषय - वीर शिवाजी||*
*||छंद - त्रिकुटबंध||*
*||कर्ता-मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च)||*
शिर हो मराठी पाघडी,
कीर्ति सकळ तुज आघडी,
अंग्रेज पर अट्क्यो लड़ी,
शुर हिन्दवो शिवराय,
शुरवीर मीत सज सोमणे,
लड़वीर भाळ्यो भोमणे,
कर तेग झाली लड्यो दळदळ,
फाळ दुश्मन देह पळपळ,
जुद्ध खेलण रमण खळखळ,
काळ कोप्यो बनिय कळळळ,
त्राट्क्यों दळ परे तळळळ,
फाडियो अफझल पलकपळ,
नख्ख खोप्यो पीठ परबळ,
छेदिया धड काट हळहळ,
मारिया मुघलाय,(1)
हर नाद महादेवा तणो,
गजवेय हरदम ए घणो,
संगेसदा जननी भवानी,
जपत कायम जाप,
दुर्गे दटण मीत दाखियो,
गढ़ राय नज़रे राखियो,
धर कटारी कर कमर कसकर,
छटा वरख़म वीररसभर,
कमख मोती हीर झणकर,
मोजड़ी मंजुळ पदधर,
चडी घोडे युद्ध लड़कर,
मराठी कुळ शान सजकर,
युद्ध निति दाव रटकर,
वेद ज्ञाना शौर्य मनभर,
छत्रपति सुर ताप, (2)
*🙏---मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*
*कवि मीत*
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