*|| वृक्ष नु महात्म्य ||*
*||कर्ता-मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
*|| दुहा ||*
*जीव बचावण काज जो,तरुवर सामे तू,*
*मीत रहेम कर मानवा,(नहीतो)लागसे नकरी लु (१)*
हे मानवी जो तारे आ धरती पर सारू शुद्ध जीवन अनुभव्वु होय तो आ धरती परना वृक्ष ने काप नही एनी सामु एक वार जो,के ए छे तो ज जीवन मा श्वास छे,ए नही होय तो उनाळा नी काळ झाळ गरमी नी लू तने जीववा नइ दे,
*ऑक्सीजन जे आपतो,कापे का ततकाळ,*
*मीत रहेंम कर मानवा,सदा वृक्ष संभाळ, (२)*
हे मानवी तारा जीवन मा जे श्वास रूपी ऑक्सीजन लइ रह्यो छे ए आ वृक्ष ने कारण ज लइ रह्यो छो तू,माटे कोई स्वार्थ माटे एनी एक पल मा कापी न नाखिस,तू ऐनु रक्षण कर ए पण तारु रक्षण करशे,
*प्रकृति ना प्राण ने, ना कर तू निर्वाण,*
*मीत रहेम कर मानवा,जीव तरु ने जाण, (३)*
हे मानवी वृक्ष ए प्रकृति नो प्राण छे अने आ प्राण ज तू छीनवी लइश तो तारा प्राण कई रीते बचावीश,माटे तु एमज जाणी ले के जो वृक्ष मा ज्या सुधी जीव छे त्या सुधी तारा मा
प्राण रहेशे,
*लघु उम्र नी लागणी,मोटो थै ना मार,*
*मीत रहेंम कर मानवा,वृक्ष पर कर न वार,(४)*
हे मानवी नानपण मा तू जे वृक्ष पर रमतो,एनी छाव मा बसतो,हिचका खातों अने एना साथे आखा गाम नी,परिवार नी यादो जोड़ाएल छे ए वृक्ष ने तू मोटो थै ने एना पर कोहाडी थी वार करता जीव कै रीते हाली सके,
*मेघ वरसण धोधमार, रहे वृक्ष नु ऋण,*
*मीत रहेम कर मानवा,तरुवर होय के तृण,(५)*
हे मानवी जे धोधमार वरसाद पड़े छे एना मूळ आधार ने ज तू नष्ट करि दइश तो अनाज क्याथी उगाडिस,नाना तृण थी लइ ने मोटा मोटा तरुवर ए वरसाद नो आधार छे माटे तू आ धरती नी कोई पण प्रकार नी वनस्पती ने नष्ट न करीश,🙏
*उगाडी वृक्ष नित एक,लाय धरण नी लाज,*
*मीत रहेम कर मानवा,असल टेक धर आज,(६)*
दरेक मानवी एक वृक्ष उगाडे तोय आ धरती पावन थै जाय,आपडा देश मा 1 करोड़ वृक्ष उगी सके छे
*हरियाळी हरखावी ने,माँ धर ने दे मांन,*
*मीत रहेम कर मानवा,सेव तरु सन्मान,(७)*
हे मानवी आ मातृभूमि ने हरियाळी बनावीश तो मा भारती ना आशीर्वाद सदाय आपडा पर बन्या रेहशे,माटे तु वृक्ष नु सन्मान कर,
*तार खगा ने तरुवर,सदा बचावण सार,*
*मीत धरा पर मानवी,यही जीवन आधार,(८)*
हे मानवी आ धरती पर जेटला वृक्ष उपयोगी छे एटला ज पक्षी ओ उपयोगी छे तो तू सदाय ऐनु जतन कर,ए तो आ पावन धरा नो मूळ आधार छे,
*🙏---मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*
*कवि मीत*
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