*मितेशदान(सिंहढाय्च) कृत रामायण महागाथा मांथी,,,,*
*||रचना:धनुषभंग प्रसंग||*
*||कर्ता: मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च)||*
*||छंद दुर्मिळा||*
जमरोळ हला बळ बात जिन्हों धमरोळ लियो मन वाक धरी,
मिथिलेश उवाचेय आप महजुद्ध देखण लख्खन कोप दरी,
समताप कियो नरपत्त सजोगिय ध्रुजट्ट आभ चड़ी वकर्यो,
कळळळ धरा नभ धाक मची जब राघव हाथ धनुष धर्यो, (227)
ध्रुजताक धरा मेरु पंड धुरंदल,स्पर्शन तीर गढ़े सुरताक,
व्रहैमंड खंड तणो खींच खाटत,पाण पणंछत नाखत पाक,
रसातल व्योम थडक्कीय राजत,कंड मरोड़ त्रिपुंड कर्यो,
कळळळ धरा नभ धाक मची जब राघव हाथ धनुष धर्यो,(228)
द्रग देव सभे निज मन्न भु दख्खण,खख्खण घुघरी झांझ कणी,
कद गज गढ्यो शिव हाथ धनु,लेहु जोर जमोड के कांध खणी,
अंत ड़ोर तणो लिये आंट के अक्कड़,पक्कड़ तोड़ पणंछ पर्यो,
कळळळ धरा नभ धाक मची जब राघव हाथ धनुष धर्यो,(229)
झंपझोर लगो तूटके तरळाट,मच्यो घुघवाटण घोर भवा,
अह्रीमान अचंबित देव भये,चकचूर विलंबित मुग्ध चवा,
भरपूर मही भूप उर फुले,जय हो मीत राम को नाद भर्यो,
कळळळ धरा नभ धाक मची जब राघव हाथ धनुष धर्यो,(230)
सुरजागत थंभ सु रथ्थ रणे नभ,रभ्भ सुरम्भण वारण है,
कर लंब छटा धर नभ्भ पटाधर तेज व्रहा दरशावण है,
जुग जोवत है इतिहास समो एक राम तणो तद नाम खर्यो,
कळळळ धरा नभ धाक मची जब राघव हाथ धनुष धर्यो,(231)
*🙏-----मितेशदान(सिंहढाय्च)-----🙏*
*कवि मीत*
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