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14 फ़रवरी 2016

न सामज्या तने सोनबाई - रचियता कवि वरदान गढवी

न समज्या तने सोनबाई  ,
                           गुमावी अमे ऐक आई,
मां,मां कहीने दोडतो आवे,मांगे सदा सुखाई जी..
करे न जो पुरुषार्थ तो,शुं करे सोनबाई......१.
चरण पखाळी पीधा पण,आचरण मा न काई जी..
धुप दीप कर्या घणा,(पण)अंतर हजी अंधराई...२
तमारा,मारा ने बधा मा छे ऐक ईश भाई जी..
समजाव्यु सदैव माताऐ,तोय परमांस केम खवाई....३
'सोनल कृपा' 'सोनल कृपा' लखतो ठामे ठामजी...
पाळे नही आदेश ऐक तो, राजी रहे नहीं आई....४
दारु तो पीवे द्वैत्यो, नही चारणो भाईजी...
मात कहे मांस छोडो,तोय मुरख रोज लगाई....५
पकडो नही मने पण, समजो मारा विचार जी..
न समजे ई माताने, रोज मंदिरीया बंधाई....६
आई ने माने पण, आई नु न माने भाई जी....
आरे! केवी अंतरदशा, पकडी जड मुरखाई....७
मागण करता, मरण भलु समजावे आई जी....
लेजो नही पारकु धन,(तोय)धंधा ऊधा धराई....८
फर्यो चक्र ने,आवी ऐक दीन कुबुध्धी भाईजी..
तोली दीधा मातने, हे समजी कोई बाई....९
रहेवु नही मारे हवे, झाझु अही भाई जी...
'वरदान'कहेे मात कोपाणा,गया स्वधाम सीधाई......१०.
:- वरदान गढवी (8758323886)

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