.

"जय माताजी मारा आ ब्लॉगमां आपणु स्वागत छे मुलाक़ात बदल आपनो आभार "
आ ब्लोगमां चारणी साहित्यने लगती माहिती मळी रहे ते माटे नानकडो प्रयास करेल छे.

Sponsored Ads

Sponsored Ads

.

Notice Board


Sponsored Ads

7 मई 2017

पांपणीये थी छलक्यां पांणी

.       *||पांपणीये थी छलक्यां पांणी||*
.   *ढाळ:सुना समदर नी पाळे ने मळता*
.      *रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)*

"आंख भिंजावे ओढणां, बोल सकी नई बोल"
"जान हाली त्यां जोगडा, ध्रुहके चडियो ढोल"
......

सरणायुं ने सूर समांणी, गरवी जे गुंजती गांणी..
घडीभर लाड घेलुडी नी वाल भरी लउं सांभळी वांणी, पांपणीये थी छलक्यां पांणी...टेक

जवाम्रद भाईर्यो जोतो, रहे रह आंहुडे रोतो
तातो एक त्रागडो एनी व्हाल सोयी ने जाय छे तांणी रे....पांपणीये थी छलक्यां पांणी..01

बेठेलो बाप ना बोले रे, खमतीघर मुख न खोले
व्हालो एनो विरडो कोई.. आंखडी सामे जाय छे आंणी रे...पांपणीये थी छलक्यां पांणी..02

भारे नई पडश्युं भाई रे,  पिता किधी केम पराई
आपी अवतार करुंणा नी धीडीयुं ने थई केम कहांणी रे..पांपणीये थी छलक्यां पांणी..03

दादा तारी आंत्य ना दुभी, तोय अरेरे हुं एकली उभी
चीहुं जोगीदान ई मारा हाय काळजडा मां जाय चिरांणी..पांपणीये थी छलक्यां पांणी..04

आवो मां आखनी आगे रे, लाडकडी ने वहमुं लागे
विदायुं नी वात थी मारी, आज पारेवी नी आंख भींजाणी रे.....पांपणीये थी छलक्यां पांणी..05

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

कोई टिप्पणी नहीं:

Sponsored Ads

ADVT

ADVT