नेक नामदार महाराज साहेबनो मुकाम महुवा हतो
कवि श्री दुला भाया काग ( भगतबापु ) एे वखते त्यां गयेल
युवराज कुंवर श्री "वीरभद्रसिंहजी एक वखत रोता हता एे उपरथी हालरडुं जन्मयुं छे.
महाराणी "विजयकुंवरबा" साहेब कुमारश्रीने छाना राखवा बीजा घणा हालरडां गायछे
पण एेमने तो जुदुं ज हालरडुं सांभळवुं छे.
आंखना भावथी महाराणी साहेबने बाळ युवराज जाणे समजावे छे के . मने तो मारा वडवाअोमो ईतिहास हालरडांमां सांभळवो तोज छान रहुं " .
एे वात महाराणी साहेब समजी जाय छे कुमारश्रीने छाना राखवा गोहिल वंशनी वात उपरांत आदर्श राजाओनो धर्म , अने एकाद लीटीमां मोशाळ पक्षना "जाम अजाजीनो" "भूचर मोरी " नो प्रसंग पण हालरडांरुपे गाय छे .
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हवे आपडे भगतबापु रचीत एे अदभुत हालरडांनुं रचपान करये ..
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( राग=आभमां ऊगेल चांदलो ने जीजाबाईने आव्यां बाळ )
हालरडुं
हाथ हींचोळीने ताणतां दोरी, हैडे हेत न माय -
माता गाय बाळनां गाणां……
(तोय)वीरोजी रेय नई छाना ……टेक
पारणामांथी सुणवी छे एने, वंश गोहिलोनी वात -
आंखोथी बाळ समजावे ……
(मने) ते केडे नींदरुं आवे ……||1||
सांभळे सूतो बाळराजा, माए मीठडी मांडी वात -
गोहिलोनुं बिरद छे न्यारुं ……
गंगाजळ कुळ छे तारुं ……||2||
ब्राह्मण वैश्य ने शूद्न माटे रूडी, गंगमाताजी धार-
रजपूतोनुं तीर्थ बतावुं ……
(एने) प्रजाना हितमां न्हावुं……||3||
बोल अफर, जेना काछ अणडग, जेने देशतणां अभिमान-
पोतानी भोमका माटे ……
ऊनां ऊनां लोई पण छाटे ……||4||
सिंह सादूळा ! तुं राखीश मा झाझी परदेशोनी प्रीत-
घरोघर घोडलां हांकी ……
प्रजानी सुण हालाकी ……||5||
आत्पजनो ने भायातने, बाळुडा ! जाणजे पोतानी बांय-
एनी जागीर न लेजे ……
एने दु:खे भागीओ थाजे ……||6||
सुख दु:खे समभाव हृदे, एवा रजपूतोनां नाम
एटलुं, मारा प्राणथी व्हाला……
लखी राख, कृष्णना लाला ……||7||
आंहींनुं सुधारी, बाळ मारा ! उर धरजे इश्र्वर ध्यान-
सांभळ, पेरमना राज.
देयुंना मोह नो'य झाझा……||8||
आशरे आव्यो न आपीओ, रे एक ससलानो शिकार -
क्षत्रीवट धर्मने धार्यो……
(ते दी) खांडानो खेल स्वीकार्यो……||9||
चारणीने जोडी सांतीए रे, एनां वावणीनां टांणां जाय -
देपाळे धर्म संभार्यो……
धोंसर लईने कांध पर धार्यो……||10||
बेटडा ! तारा बापदादा लेता, दरीआ केरां दाण-
सुणी शाह हाथ पछाडी……
आव्यो मोटी फोज उपाडी……||11||
मोखडो ऊठयो मामले रे ते दी, शाह पापी ग्यो त्राह-
खेडी जुद्ध मजलूं लांबी……
(एनी) "खदडपर" मां धडनी खांभी……||12||
रामदास जाता काशीए ने; उदेपुरनां खाधेल अन्न-
आवी म्लेच्छ फोज हजारां……
ते दी ' राणा आडां शीश उतार्यां……||13||
वखतसिंहे वेरीओ सामा रोमे रोमे झील्या घाव -
एनां फळ मीठडां वेड्यां……
(दादे) रातां रातां लोई बउ रेड्यां………||14||
मोसाळमां तारे जाम अजोजी , ए सुणी धीगाणानी वात -
ते दी' वरमाळ फेंकीने……
आव्यो रणमांय ठेकीने……"||15||
आठ दीने उजागरे वीराने, आववा मांडी ऊंघ-
हालरडे आंख घेराणी……
व्हाली लागी " काग " नी वाणी. ||16||
रचयीता :- दुला भाया काग भगतबापु
टाइप :- सामळा .पी. गढवी mo- 9925548224
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1 टिप्पणी:
Kag bapu na swar ma ramayan na prasang hoy to muko plz
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