सत्कर्म विना
रचना :- कवि आलाभाइ खेतशी भाइ गढवी (कवि आल)
छंद हरि गीत
वांचतो बहु ग्रंथ विधविध, सरस अर्थो शोधतो,
विद्वान मोटो थयो वक्ता, सभाने संबोधतो,
मान ने सन्मान मळतां, पृथ्वीऐ पंकाय छे,
पण सद् कर्म स्मरण विना अंते, आतमा अकळाय छे,
विद्वान मोटो थयो वक्ता, सभाने संबोधतो,
मान ने सन्मान मळतां, पृथ्वीऐ पंकाय छे,
पण सद् कर्म स्मरण विना अंते, आतमा अकळाय छे,
बुधवान बेटा भाइ बळिया, साख पण निज सरस छे,
लीधा कमावी माल लाखो, हैये ऐनो हरख छे,
घर होय घोडा गयंद गुणियल, दास पण दरशाय छे,
पण सद् कर्म स्मरण विना अते, आतमा अकळाय छे,
लीधा कमावी माल लाखो, हैये ऐनो हरख छे,
घर होय घोडा गयंद गुणियल, दास पण दरशाय छे,
पण सद् कर्म स्मरण विना अते, आतमा अकळाय छे,
मजबूत तननो मर्द पोते, बाहु पण बलवान छे,
भाळतां अरि जाय भागी, पाणमां किरपाण छे,
डरतो नथी कदी कोइ डरथी, जंगमां झंपलाय छे,
पण सद् कर्म स्मरण विना अंते, आतमा अकळाय छे
भाळतां अरि जाय भागी, पाणमां किरपाण छे,
डरतो नथी कदी कोइ डरथी, जंगमां झंपलाय छे,
पण सद् कर्म स्मरण विना अंते, आतमा अकळाय छे
भूपति मोटा भुवन मंजु शक्र जेवी संपति,
भारे रूपाळा भाग्य वाळा दीर्ध आयु दंपती,
जर पति 'आला' जगत जाहिर, विश्व मां वखणाय छे,
पण सद् कर्म स्मरण विना अंते, आतमा अकळाय छे,
भारे रूपाळा भाग्य वाळा दीर्ध आयु दंपती,
जर पति 'आला' जगत जाहिर, विश्व मां वखणाय छे,
पण सद् कर्म स्मरण विना अंते, आतमा अकळाय छे,
टाइप ; हरि गढवी
सौजन्य ; गोविंद भाइ आला भाइ गढवी
मो 97278 12598
मो 97278 12598
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