श्याम गढ़वी नी एक सूंदर रचना जरूर वंचजो
अखूट खजानो प्रेम नो तारो
राग _कादजा केरो कंटकोमारो
अखूट खजानो प्रेम नो तारो ,मावड़ी माप ज नहीं
जग हाले आखु यात्रा करवा ऊंबरे ओड़खे नहीं,,,,,,,(अखूट,,,,)
भाई मुके भामिनि मुके पण, मावड़ी मुके ज नहीं
दोढ् दुकाडे नावडि सुके पण सागर सुके ज नहीं ,,,,(अखूट ,,,)
दोढ् दुकाडे नावडि सुके पण सागर सुके ज नहीं ,,,,(अखूट ,,,)
चकली माडु बांधवा चांचे लाखो तनखा लई
उड़ता सीखे बाड़ आकासे पछि एनु मात थी नातू नहीं ,,,,(अखूट,,,)
उड़ता सीखे बाड़ आकासे पछि एनु मात थी नातू नहीं ,,,,(अखूट,,,)
पूछ जो ओला पूत ने कोई दी जे मात विण मोटा थई
मात विण छोरु नु काज छे कोरू ई कवियों थाक्या कही,,,,(अखूट,,,,)
मात विण छोरु नु काज छे कोरू ई कवियों थाक्या कही,,,,(अखूट,,,,)
लाड लदाव्या लाख ते माड़ी गोत ता गोदे लै
'श्याम 'मडि साँची सुख नी गडी जननी खोडे जई ,,,,(अखूट ,,,,)
'श्याम 'मडि साँची सुख नी गडी जननी खोडे जई ,,,,(अखूट ,,,,)
लेखक -श्याम गढ़वी (लोकसाहित्य कार ।करोडिया)
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