. || परख साचा प्रेम नी ||
. रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)
. छंद : सारसी
केवां हशे ई काळज जे जिवन जे जीती गीया
वातुं मां रहीगई वेदना ने वखत ऐ वीती गीया
औषध मळे नई आ धरा पर वधल जुट्ठा वेमनी
जगमांय जोगीदान क्यां छे परख साचा प्रेम नी..||01||
रोळेल सपनां रांक ना ने भांगीयुं घर भादरे
पछडाई चारण थीयो पागल पोरहा ने पादरे
ईरखा य करतो हशे ईंदर जोड्य भाळीन जेमनी
जगमांय जोगीदान क्यां छे परख साचा प्रेम नी..||02||
वडले वराळुं थईन वसीयो प्रितमो पदमा तणो
परीयुं न वरीयो प्रेम काजे भुतडो केवो भणो
ई मांगडा पदमा तणी कहो प्रित भुलिये केमनी
जगमांय जोगीदान क्यां छे परख साचा प्रेम नी..||03||
प्रथमीय आवी पदमणी मन मोहीयुं ओढा मथे
अंबार रुपनो प्रित अनहद कलम आ केमे कथे
छोड्युं सरग संसार मांड्यो हिये होथल हेमनी
जगमांय जोगीदान क्यां छे परख साचा प्रेम नी..||04||
लाजाळ प्रिति लागणी खोडाय खिमरो खांभीये
लोडणे छांट्या लोय धोबे निसासा दई नांभीयें
पादरे थई ग्यां पाळीया ऐवी करुंणा ऐम नी
जगमांय जोगीदान क्यां छे परख साचा प्रेम नी..||05||
हैये हलामण जेठवा ने सोन वसीयल सांजणी
ऐना विना सउं नार जगनी मानतो ई मां जणी
वेरी थीयुं वांहे पड्युं आ जगत आखुंय जेमनी
जगमांय जोगीदान क्यां छे परख साचा प्रेम नी..||06||
रोमीयो जुलीयट हिर रांझां सोहणीं महीवाल छे
फरहाद सीरी फांकडा ऐ धरम प्रिती ढाल छे
प्रथमी य केवां थीयां प्रेमी यादीयुं रई ऐमनी
जगमांय जोगीदान क्यां छे परख साचा प्रेम नी..||07||
जोगीय घेली बनी जोगण लगन करियां लावथी
रंगेय रोही साळ आवड भज्यां बेजण भाव थी
घर घर महीं जे गीत घुमे ऐह प्रित्युं ऐमनी
जगमांय जोगीदान जेने परख साचा प्रेम नी..||08||
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