|| शिव धनख भंग - नरहरदासजी ||
मिथीलानी सभा मां रामे धनख भांग्युं. त्यारे केवुं द्रश्य सरजाणुं'तुं
सुर सरित सरवर, समुद्र मर्यादा मुक्कीय,
डरी दिगज डगमगीय, कमल भव ध्यान जु चुक्कीय,
धरनी धृज धस गई, प्रबल प्रबय विहार परी,
मिहिर बाजी छुटी मग, प्रगट दिग देव कंपी परी,
नागेष शेष फनमाल नमी, कोल कमठ क्रम तज्जयो,
रघुवीर धीर त्रिलेकपती, जेही छन शिव धनु भज्जयो.
भय विस्मि त्रय भुवन, सगन संकर समाधी टरी,
अष्ट कुलाचल विकल, पनग बधिरत्व कंप परी,
काल दंड परचंड, पर्यो जम्म हथ्थ बिछुट्टीय,
रवी शशी ग्रह रथ्थ, रूध तेज आफालित हट्टीय,
दिग चक्र डोल व्रेमंड डगी, भुवन त्रय जय जय भयो,
दशरथ कुमार शिव चाप दली, भव दुर्लश जग जश भयो.
- महात्मा नरहरदासजी
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