. " रामायण "
रचयिता: राजकवि पिंगलशीभाई पाताभाई नरेला. भावनगर
करबोथो जहां राज , तहां भयो बनमें निरकबो ,
हरबोथो मृगप्रान तहां , भयो सियको हरबो ,
जरबोथो कपि अंग तहां भयो लंकको जरबो ,
सरबोथो सुरकाज तहां भयो सुधी बिसरबो ,
यह बात देव दानव आगम , पिंगल कहे प्रतक्षऐ,
जगतके लोक जाने कहां , भाविके बस सबभऐ .
संकलन: अनिरुद्ध जे. नरेला. भावनगर
प्रसंग:-
वरसाद पाछो खेचतो जातो हतो, दुष्काळ नी परिस्थितियो सरजाय रही हती, 1800 पादर नी श्रद्धा ने मीट भावनगर महाराजा साहेब तरफ हती,
तो बीजी बाजू
भावनगर ने.ना.महाराजा साहेब श्री कृष्णकुमारसिंहजी पोताना वचन पालन ना सिद्धांते खूब लोक प्रिय,
एवामा ऐक वार प्रजा ना कल्याण हेतु महाराजा साहेब श्रीजी टेक लई बेठा के वरसाद ना थाय त्या सुधि हु रोज " रामायण" वाची ने ज मारी दिनचर्या शरू करिश्,
समय जातो गयो, रामायाण वाची ने दिवस सरू करवा ना प्रण मा अन्नेक कामो अधूरा रेहवा लाग्या, प्रजा दर्शन माटे राह जोई जोई ने थाकि, त्यारे अचानक वेहलि सवारे हुकम: थयो के मारी पर्सनल गाड़ी मोकलो
अने " राजकवी पिंगळशीभाई" ने आज वेहला तेडावो.
सो सो कोयडा नो उकेलनार कोई बाळपण नो भेरू वर्षो पछि मळयो होइ ने जे हरख थाय एवा हरख थी स्वागत् करायु, मंदिरे बेसी ने टेक विशे, अने तेने कारणे उपस्थित परिस्थिति नी पण चर्चा थई,
त्यारे त्यांज बेसिन भावेणा ना भूप नी टेक पण सचवाय अने प्रजा कल्याण नो हेतु पण जळवाय ऍम आ "संक्षिप्त" रामायण सार नि रचना थई.
दुष्काळ नु वर्ष टळी ग्यु,
राज्य मा सुख समृद्धि नी रेलम छेल थई.
अने प्रजा वत्सल ने.ना. भावनगर माहाराजा साहेब श्री कृष्णकुमारसिंहजी नी जय जय कार हंमेश नी जेम फैलाय गई...
जाजेरा जय माताजी.
धर्मदीप नरेला
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