*|| आइ नी आरदा ||*
*|| छंद - सारसी ||*
*|| कर्ता - मितेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
*|| छंद - सारसी ||*
*|| कर्ता - मितेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
कळियुग री आ वाट मे साची जनेता तु ज छो,
भवसागरे थी बाय पकडी तारनारी तु ज छो,
जगदंब आइ हाथ तारो रोज मुज पर थापजे,
जोगण दयाळी आइ जुग पर रहेम द्रष्टी राखजे,(1).
भवसागरे थी बाय पकडी तारनारी तु ज छो,
जगदंब आइ हाथ तारो रोज मुज पर थापजे,
जोगण दयाळी आइ जुग पर रहेम द्रष्टी राखजे,(1).
पापी बन्या जे पंड थी पोते बनावे घाव जे,
भुले तमारी याचना सुख भोग एना दाव जे,
दु:ख ना जणाता वावडा तुज धाम धोळी आवसे,
जोगण दयाळी आइ जुग पर रहेम द्रष्टी राखजे,(2).
भुले तमारी याचना सुख भोग एना दाव जे,
दु:ख ना जणाता वावडा तुज धाम धोळी आवसे,
जोगण दयाळी आइ जुग पर रहेम द्रष्टी राखजे,(2).
अनेक पापी आवीया ने हारिया तुज थी सदा,
पंथो बगाडी साचना जुठी गणावी आरदा,
राहे भूलेला ने दाह दइ तु सत्य वाटे वारजे,
जोगण दयाळी आइ जुग पर रहेम द्रष्टी राखजे,(3).
पंथो बगाडी साचना जुठी गणावी आरदा,
राहे भूलेला ने दाह दइ तु सत्य वाटे वारजे,
जोगण दयाळी आइ जुग पर रहेम द्रष्टी राखजे,(3).
परचा पुर्या ते लाख माडी डूबता जग तारिया,
मन मोह ने दु:ख लोभ व्याधी विघन ते विडारिया,
*मितेश* ना गुण गान ने तु आइ चरणे दाखजे,
जोगण दयाळी आइ जुग पर रहेम द्रष्टी राख जे,(4),
.
मन मोह ने दु:ख लोभ व्याधी विघन ते विडारिया,
*मितेश* ना गुण गान ने तु आइ चरणे दाखजे,
जोगण दयाळी आइ जुग पर रहेम द्रष्टी राख जे,(4),
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----------- *मितेशदान(सिंहढाय्च)* -----------
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