मढळे जावा मातना, छोरु करे कूदकाई
होय आदेश आईमात नो तो खुद रथ हांके सोनबाई
रथडे रुमझुम करता, जाऊ छे मारे हरखाई
ई' माटी धरवा माथडे जया खुद अवतर्या छे सोनबाई
चारण कुळमा अवतर्या अम्बा स्वरूपा आई
चारण ने एक धारण कीधा ई' सुखकारी सोनबाई
आम्भ सवायो ओढयो छे भेळियो जाणे चांदो उग्यो वनराई
अम्बा तु तो ईश्वरी ई' मढळावादी सोनबाई
पथ बताव्यो पावनकारी अमने उजळा कीधा आई
चारण ने फरी चारण बनाव्यो ई' ममतादी सोनबाई
खोदे रमवा मातना जंप लाव्यो हु बळडाई
"आरव" कहे शरणे तु लेजे अमारी माही रे सोनबाई
कवि- गढवी आरव रवाई
मो-9586717848
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