जेवो संग तेओ रंग...!
तमे कोनी साथे हरो-फरो छो ? तमारा अंतरंग वतृळमां केवा लोको छे ऐनी खबर पडे तो तरत ज तमारुं माप नीकळी जतुं होय छे.
गुजरातीमां कहेवत छे ' गघेडा साथे धोडो बांघो तो भूंकता न शीखे, पण लात मारता तो शीखे ज '
माणसनुं पण ऐवुं ज छे. नकामा लोकोनी साथे रहेवाथी माणसनी बुद्घी भ्रष्ट थई जाय छे.उत्तम विचारसरणी घरावनार माणसनी नीच लोकोनी संगति थई जाय तो ऐनुं पण पतन थई जाय छे.
संगतिनो नियम छे, जे माणस दोषित होय, नकामो होय पण ऐने योग्य गुणवाळो संग मळी जाय तो ऐनामां पण पेला गुण पेदा थता होय छे. विद्वान लोकोनी साथे रहेवाथी मुखॅ माणस पण विद्वान बनी जाय छे.
रामायणमां कहयुं छे, ' अमृततृल्य साघु संगम ' सत्संगति मळी जाय तो जीवन घन्य बनी जाय छे. वालिया लूंटाराने नारद मळे तो जीवन सुघरी जाय छे.
जेवी रीते कोरी घरतीने पाणी मळी जाय तो ते विस्तार हरियाळो बनी जाय छे. ऐवी ज रीते कोईनो सारो संग जीवनमां हरियाळी उगाळतो होय छे.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें