मा सरस्वतीनी उपासक चारण ज्ञातिऐ हंमेशा शुभवाणी बोलवी...!
आई श्री सोनलमा कहेता के आपणे मा शारदाना उपासको छीऐ, कोईनी निंदा कुथली करीने शारदाऐ आपेल वाणीने कयारेय अभडावशो नहीं.
अपशब्द चारणोथी बोलाय ज नहीं कारण के आपणे अमृतना बाळक छीऐ, विषना नहीं. जे ऐवुं करशे तेना उपर माताजी कयारेय प्रसन्न नहि थाय माटे सौ प्रथम आपणा वहेवारमां माताजीनी प्रतिष्ठा करवानी छे.
वाणी ऐ मा छे. वाणी थकी ज विश्वनो वहेवार चाले छे.
युगशकितमां सोनलमाना विचारो मात्र सिघ्घांतिक न हता ते संपूॅण वहेवारीक अने प्रयोगात्मक हता.
पू. आईमा कहेता के नबळो विचार ऐ ज मृत्यु समान छे.
माणसनी नियत बगडे तो नसीब बगडे. नियत अने नसीबने सीघो सबंघ छे. '' नियत तेवुं नसीब '' पुरुषाथॅ ऐज परचो छे. निष्फळता ऐ शुं छे ? बीजुं कांई नथी प्रयत्ननो ज अभाव छे.
समाजमां पुरुषाथीॅ माणस ज स्वपनो साकार करी शके.
ऐकबीजाने सुख दु:खमां मुश्केलीमां मददरुप थई पोतानो बनतो टेको आपी उभा करवानी भावना ज्यारे निमाॅण थशे त्यारे ज समाजनी उन्नति थशे.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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