*आवड़ मा नी चरज*
*कर्ता - मितेशदान महेशदान गढ़वी (सिंहढाय्च)*
*कर्ता - मितेशदान महेशदान गढ़वी (सिंहढाय्च)*
आई तू तो प्रगट रे प्रकाशी रूपक मावड़ी,
माड़ी तारा नाम रे लेता ने दरीदर भागे रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(1)
माड़ी तारा नाम रे लेता ने दरीदर भागे रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(1)
माड़ी तूने नमें रे जगत आखु भाव थी,
माड़ी एना दुखो ने संकेलो वेली वारे रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(2)
माड़ी एना दुखो ने संकेलो वेली वारे रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(2)
माड़ी तारा देवळो शोभे छे दीपक माळ थी,
माड़ी तारा त्रिषुले कीधा छे अशूर संहार रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(3)
माड़ी तारा त्रिषुले कीधा छे अशूर संहार रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(3)
माड़ी तारा नाम रे सुणी ने भुत प्रेत भागता,
माड़ी ते तो कीधा रे तारा बाळ तणा उद्धार रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(4)
माड़ी ते तो कीधा रे तारा बाळ तणा उद्धार रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(4)
माड़ी तू तो दया नो सागर ने आशीष उर नी,
माड़ी ते तो भूलो ने कीधी छे अमारी माफ रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(5)
माड़ी ते तो भूलो ने कीधी छे अमारी माफ रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(5)
माड़ी आजे दुखे रे पीड़ायो मारा कर्म थी,
माड़ी मारा दुखो ने सिंचया ने कीधा नवा नूर रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(6)
माड़ी मारा दुखो ने सिंचया ने कीधा नवा नूर रे,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(6)
माड़ी तू ने अरजे मितेश एना साद थीं,
माड़ी एनी चरज सुणी ने आतम ठार ने,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(7)
माड़ी एनी चरज सुणी ने आतम ठार ने,
जगदंबा आवड़ तू खरी,(7)
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