चारण कवि श्री राजभा गढवी नी कलमे टंकायेल सावज [सिंह नी वेदना] माटेनी अतिसुंदर कविता...
सम्राट भाग्यो स्वान थी..
भाग्यो सावज तु भारते,कुतरा तणा कोभांड थी..
केशरी हता अम देशना,जेने इज्जत वाली जान थी..
लंछंन कुळ ने लाजतु,आखुं बधे वंचाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे...
केशरी हता अम देशना,जेने इज्जत वाली जान थी..
लंछंन कुळ ने लाजतु,आखुं बधे वंचाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे...
एक मधपुडानी माख पण,एनी जिवाइ छोडी जायना..
तारुं बिरुद ल्युं बहु नामिये,नरसिंह ने लजवाय ना..
भोजन लुंटी भडवीर नुं,जुओ शियाळीया मलकाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे..
तारुं बिरुद ल्युं बहु नामिये,नरसिंह ने लजवाय ना..
भोजन लुंटी भडवीर नुं,जुओ शियाळीया मलकाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे..
हवे समय आव्यो शियाळीयानो,तो राजवी हुं रंक बन्यो..
विगते करुं सुं वेदना,आ युग न रियो युध्ध नो..
रजळ्या अमारा राज सौ,हवे लोढ दुख ना थाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी कौतक केवुं थाय छे..
विगते करुं सुं वेदना,आ युग न रियो युध्ध नो..
रजळ्या अमारा राज सौ,हवे लोढ दुख ना थाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी कौतक केवुं थाय छे..
हवे जरा करीये जोर तो,लइ पांजरा मा पुरता..
वखत सहता वेदना,अमे झबर उभा झुरता..
समय ना सरधार थइ हवे शियाळिया मलकाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी कौतक केवुं थाय छे..
वखत सहता वेदना,अमे झबर उभा झुरता..
समय ना सरधार थइ हवे शियाळिया मलकाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी कौतक केवुं थाय छे..
गजब छो हवे गिध झरखा, खुद शिकारो खेलता..
हवे शहिद थइजा सिंह तु,भले रक्त रणमां रेलता..
जीवतर तणा जंजाळ नी,खमीर ने खोट जाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे..
हवे शहिद थइजा सिंह तु,भले रक्त रणमां रेलता..
जीवतर तणा जंजाळ नी,खमीर ने खोट जाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे..
शहीदो थयेला सिंह नु,आइंया भाव क्या पुछाय छे..
मुळदा ढंढोळी ने मुजरीमो,एना नोर काढी जाय छे..
कागडाय माटी काग नी,खंते हवेतो खाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे..
मुळदा ढंढोळी ने मुजरीमो,एना नोर काढी जाय छे..
कागडाय माटी काग नी,खंते हवेतो खाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे..
प्रजा ने भोजन पिरसवुं,ए राज नो अधिकार छे..
निज रैयत भुखी रजडे,ए नृप ने धिक्कार छे..
कर कवियसे अंकुर नु ज्यां,समर्पण त्यां थाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे..
निज रैयत भुखी रजडे,ए नृप ने धिक्कार छे..
कर कवियसे अंकुर नु ज्यां,समर्पण त्यां थाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कौतक केवुं थाय छे..
हिंम्मत मन न हारजे,कळीयुग मां तु केशरी..
समराट ने सहेवा पडे छे,लोढ दुख ना लेहरी..
"कहे राज" गांडीव नो धणी अर्जुन पण लुंटाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कैतक केवुं थाय छे..
समराट ने सहेवा पडे छे,लोढ दुख ना लेहरी..
"कहे राज" गांडीव नो धणी अर्जुन पण लुंटाय छे..
समराट भाग्यो स्वान थी,कैतक केवुं थाय छे..
रचना -- राजभा गढवी जुनागढ
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