*||रचना : त्रिपुटी तंत्र ||*
*||छंद : दुर्मिळा ||*
*||कर्ता : मितेशदान महेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
भृष्ट देश महि भ्रस्ट तंत्र महि भृष्ट सभे सरकार फरी,
अति दुस्ट किया षड्यंत्र कुळी परजा सुख लूटण वाट वरी,
सत्ता सबळी नबळी वत्ता सत्ता मकळी सम जाल जड़े,
अवळा मुख काम करे सवळा की सत्ता लोभन काट चडे,(१)
अदकाई समु रूप एज सरे अधिकार पणे अवडाई करे,
कुळ देह नही मन मान धरे,
मुख वाक कुळा सनमान हरे,
शबदे शबदे मत हाथ लिए रज कारण खेल प्रकार पड़े,
अवळा मुख काम करे सवळा कु सत्ता लोभन काट चडे,(२)
लपटावेय लालच शब्दभाखी नव सत्तायू हथ काबू कर दे,
अर्थांकीय बाबत राज समय को राज बनावट में भर दे,
नह देख गरीबी और अमीरी पैसो एकज हाथ लडे,
अवळा मुख काम करे सवळा कु सत्ता लोभन काट चडे,(3)
कही रॉड कही पर डेम कही पर जनता से बनवाया है,
कही चोर कही पर लूंट कही नारी का मान गवाया है,
परीत्याग नही बलिदान जवानों पर भी सत्ता प्राण बड़े,
अवळा मुख काम करे सवळा कु सत्ता लोभन काट चडे(4)
अकड़ाट समा अह्रींमान ते आफत देख समुख निराश हुते,
नही देख ऊंचे पद कोही कही ऊपरी सब देखत दैव दुते,
कह *मीत* सुधार तू रीत सता तुज आन बताव क्यों लाज पड़े,
अवळा मुख काम करे सवळा कु सत्ता लोभन काट चडे(5)
*(अह्रींमान-भगवान नी विरुद्ध जानार)*
*(पाँचमी कड़ी नो अर्थ: एक अधिकारी ने ऊपरी अधिकारी कदाच एने एना लोभ खातर कढ़ी पण मुके पण जे साउथी ऊपरअधिकारी रहे छे जे साक्षात ईश्वर छे तेने कोई वात नो लोभ नै होय ते सर्व जुवेछे,माटे ए सत्य जोई ने निर्णय लेसे माटे सत्ता ना सेवक तने जे सत्ता मळी छे तेनो उपयोग जनहित मा कर तो प्रजा अने हरि बेय राजी रेसे,तारी सत्ता थी खोटा कार्य करावी तंत्र ने लाज न लगाड,पण आन बान शान वधे एवा कार्य कर)*
*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*
*कवि मीत*
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