( आज इस देश में कइ तरह के स्वार्थी लोग अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए सडकों पर निकल पड़े हैं, और अपनी इस प्रवृत्ति को "क्रांति" नाम दे रहे हैं।
*ऐसे लोगों को क्या क्रांतिकारी कह सकते हैं?*
*वास्तविक क्रांति कैसे होती है,?*
इन ख्यालों का एक काव्य प्रस्तुत कर रहा हूं।)
*क्रांति कैसे होती है?*
क्रांति सोचना सरल है,
क्रांति लिखना भी सरल है।
क्रांति के विषय में तुम बोल भी सकते हो,
सभाएं भर कर, गला फाड़ कर, दहाडकर,चिल्लाकर, भावुक होकर,
रो भी सकते हो, रूला भी सकते हो।
*किंतु केवल इतने मात्र से क्रांति नहीं होती।*
भीड इकट्ठा करने की तरकीबें तुम जानते हो,
भीड को आंदोलित करने के कुछ खास लहेजे हैं तुम्हारे।
लेकिन तुम जिस आग की बात करते हो,
वो आग तुम्हारे सीने में नहीं, एच डी केमरे में है,
इससे आग सा आभास होता है,
जलन नहीं होती,
ऊष्मा नहीं होती।
अपने सीने में जलन लिए बिना,
औरों के सीनों में आग जगाने तुम्हारी यह चेष्टा,
*क्रांति नहीं है, गदारी है*
हर उस शख्स से गदारी है,
जो तुम्हारी शख्सियत पर ऐतबार जता रहा है।
उसुलों से गदारी है,
वतन से गदारी है,
गदारी है खुद अपने आप से,
तुम्हें नाम देने वाले बाप से,
जन्म देने वाली मा से गदारी है।
*अगर तुम अपने सीने में आग लिए बिना,*
*औरों के सीने जलाने में प्रवृत्त हो,*
*तो तुम क्रांतिकारी नहीं गदार हो*
तुम्हें व्यवस्था चाहिए,
तुम्हें अवस्था चाहिए,
तुम्हें संस्था चाहिए।
तुम्हें पद चाहिए, सता चाहिए,
सता का मद चाहिए,
इस लिए तुम गदार हो।
*क्रांति मांग से नहीं, त्याग से होती है।*
पेट में भुख हो किन्तु,
परोसी गई थाली पर बैठकर भी, न खा सको तुम,
श्रमित देह, थकी आंखे,
बोझिल मस्तिष्क से भी, न सो सको तुम,
मन मोहक, ह्दयंगम प्रिया के आलिंगन में भी,
तडप उठो तुम तब क्रांति होती है।
तुम्हें भीड के पिछे भागना नहीं पड़ता।
तुम्हारे कदमों के निशान पर,
जवानीयां अपना नामो-निशां मिटा दे,
तब क्रांति होती है।
अपनी छाती में खंजर डालकर,
कतरे कतरे से इन्कलाब लिखा जाए,
तब क्रांति होती है।
अरमान, सम्मान, महत्वाकांक्षा, पूर्व धारणा,
सब कुछ जल कर राख हो जाता है,
तब क्रांति होती है।
क्रांति सरलता से नहीं होती, संघर्षों से होती है।
क्रांति अपने सुख के लिए नहीं होती,
क्रांति पीडा सहने के जज्बे से होती है,
क्रांति अपने लिए नहीं होती,
आने वाली नस्लों के लिए होती है।
क्रांति षडयंत्रो से नहीं होती,
बलिदान मंत्रों से होती है।
क्रांति भीड इकठ्ठा करने की तरकीबों से नहीं होती,
कोई अकेला सर फिरा, हुजूम से टकराए तब क्रांति होती है
दुकानों, घरों,स्कूल बसों में,
आग लगाने से क्रांति नहीं होती,
*जय* नव सर्जन की ज्वाला, अपने जिगर में जलाने से क्रांति होती है।
* * * * * * * * * * *
कवि : *जय*
जयेशदान गढवी।
मो. नं 9408243131
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