कविराज खूमदान बारहठ की17वीं पुण्यतिथि
खूमदानजी बारहठ
भारतवर्ष की चारण काव्य महापुरुष परम्परा में कविराज खूमदानजी बारहठ का नाम विशेष सम्मान और गौरव का प्रतीक है। कविराज श्री खूमदानजी बारहठ का जन्म पाकिस्तान के चारणवास ग्राम भीमावेरी में दिनाक 8 फ़रवरी, 1911 तदनुसार माघ शुक्ल द्वादशी विक्रमी सवत् 1968, शुक्रवार को श्री लांगीदानजी बारहठ के घर हुआ था।
कविराज जन्म से ही प्रतिभा सम्पन्न बालक थे। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा तत्कालीन विख्यात संत श्री संतोषनाथजी के सानिध्य में संपन्न हुई थी। आपने अल्पायु में रामायण, गीता, महाभारत, चारो वेद, रघुनाथ रूपक, सत्यार्थ प्रकाश, रूपद्वीप पिंगळ आदी प्रमुख धर्म ग्रथों का विधिवत् अध्ययन कर लिया था।
कविराज ने सर्वप्रथम वीररस के सौ छंदों के साथ वीर रामायण का सृजन किया। आपकी कालजयी रचनाओं में विषद काव्य, रंग तरंगिणी, मानव धर्म नीति, भारत विजय प्रकाश ओर सत्यार्थ प्रकाश की विवेचना आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।
पाकिस्तान के भडेली एवं अमरकोट के तत्कालीन सोढ़ा शासकों यथा श्री जैतमालसिंह सोढ़ा आदि ने आपको कविराज की उपाधि से सम्मानित कर, आपकी काव्य प्रतिभा को सरंक्षण प्रदान किया था।
कविराज सत्यनिष्ठता ओर वैज्ञानिक सिद्धान्तों के पक्षधर थे। आपने आई श्री सोनल माताजी औऱ प्रसिद्ध चारण कवि श्री दुला भाया काग से स्नेहिल भेंट कर चारण समाज के उत्थान एवं समृद्धि पर विवेचनात्मक आलेख भी लिखा था।
कविराज खूमदानजी बारहठ अपनी वृद्धावस्था में राजस्थान के बीकानेर जिले के पूगल ग्राम में रहे, जहाँ दिनाँक 26 अक्टूबर, 2001 तदनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष पंचमी, विक्रमी संवत् 2058 शुक्रवार को 91 वर्ष की दीर्घ आयु में आप देवलोक गमन कर गये।
कविराज खूमदानजी बारहठ की साहित्यिक सेवाओं के लिए शत् - शत् अभिनन्दन।
जय माताजी
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