सवैया
जो न जप्यो वृजराज हुंको जस
तो कविराज अकाज कहायो
लोभीनको यश पेट हीके लीये
गाम ही गाम फिर्यो नित गायो
नांही दीयो परमारथमें धन
अन्न न पेट भरी कबु खायो
दृष्टि पर्यो जमको जब दंगल
पिंगल अंत वही पछतायो
राज मिल्यो शिरताज धर्यो
गजराज चडयो सुकवि गुन गायो
राग सुन्यो गुनिका मन रंजन
बाग बिहार अपार बनायो
रैयतको कछु काज सर्यो नहीं
गोविंदको गुन ना कबु गायो
दृष्टि पर्यो जमको जब दंगल
पिंगल अंत वही पछतायो
मानुषको अवतार दीयो प्रभु
भुल गयो घरकाज लुभायो
केफ कीयो रु बक्यो बिन कारन
ऐश करी बहु द्रव्य उडायो
राम उचार नहीं रसना पर
दीनकुं अन्न कबु न दिलायो
दृष्टि पर्यो जमको जब दंगल
पिंगल अंत वही पछतायो
रचियता :- भावनगर राजकवि पिंगळशीभाई पाताभाइ नरेला
टाईप :- हरि गढवी ववार कच्छ
वंदे सोनल मातरम्
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