विष भुजाली,दीन दयाली,तू बिरदाई बाई, ।।
नवलाखु ने नोतरू दीधु,सरमोड सोनल आई, ।।
मढे गढे थी मावडी आवो,रैयण रमवा रास, ।।
दशँन काजे दौड़ती आवु,पुरवा मन नि आस,।।
आई केसर नो चाँदलो ने,मां चोखा चोड्या ललाट, ।।
हाथे हेंम नो चुडलो ने मां, कांबियुं पग सोहाई,।।
उग्यो चाँदलो ने तारला चमके, रमवा निसरीँ आई, ।।
काँधे रूडो भेंलियो ओढि, वडी देव वडाई, ।।
ढोल नगारा ने झांलर ञणके,उड़े अबिल गुलाल, ।।
आई सोनल ना वारना लव हुं,वंन्दु वार हज़ार, ।।
कवल"सुख धारण चारण कारण,
साद देजे सोनबाई,।।
'जगदीश तोरो ञुंलणो गावे,।।
दशँने सुख: थाई,।।
विस भुंजाली,,,,,,,,,,,
(जगदीश कवल ) (Vadodara) (m)9727555504
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24 अगस्त 2016
विष भुजाली - जगदीश कवल
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