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12 अगस्त 2018

||रचना : घोड़ा नु स्पाखरु || || कवि मितेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||

*|| रचना: घोड़ा नु संपाखरु ||*
*|| गीत : सपाखरु ||*
*||कर्ता: मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*

गुढो पंखाळो बणुको जोरो, *मितरो* तोखार गजा,
हेताळो हठाळो हूंदो चातुरी हंसाळ,
वट्टो बांग बट्टो चाग चट्टो,पट्टो धर कट्टो वीर,
पोरहो पशुळो न को विपळे प्रेमाळ,

सप्तका साथिरा बाजी,खिंचता पटल सूरे,
गायत्री  वृहती अनुस्तुप ते गंधर्व,
चतु जगती पंकति उषणीक त्रयास्तुप चवा,
संग नभा तुंगा सत्त वाहना सुसर्व,

बद्ध एराकी अनिज़ा सावी,मनाकी साहूदी बंका,
खेलानी त्रेदिका अरु नजद्दी खुमार,
सिकलावी कोटी दखणाते अरब्बे गलफ्फ सोह,
बहुधि प्रमाण  धरा  ऊपरी  सु  बार,

हिंदीया विहंग पिंड खंधारा वेढीया हठा,
बालोबड़ा  राजघडा गड़हा बिरंद,
पोरहा भीमरा डालामत्था रूपे रंग पठा,
दाखिया दिग्गज छटा सज्जिया गिरंद,

लख्खणा सुकार काठा श्यामकर्ण लागवंता,
पुरिया मंगला अठ कल्याणाय पंच,
कंच कोडिया धुरंध मलिकाक्ष चक्रवाक कंठ,
पंच पांडवा ज्यो लगो शकुनि प्रपंच,

*🙏---मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*

*कवि मीत*

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