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24 फ़रवरी 2015

आवकारो मीठो आपजे


कागधाम मजादर खाते चालती मोरारीबापुना स्वरे रामकथानो  चोथो दिवस छे

तो मित्रो आजे कागबापुनी ऐक रचना माणीये


आवकारो मीठो आपजे

हे जी तारा आंगणीया पुछीने जे कोई आवे रे,
               आवकारो मीठो आपजे रे जी....

हे जी तारे काने संकट कोई संभळावे रे,
            बने तो थोडू...कापजे रे जी.....

मानवीनी पासे कोई...मानवी न आवे रे... (2)
तारा दिवसनी पासे दुःखीया आवे रे
           आवकारो मीठो आपजे रे जी....

केम तमे आव्या छो ? ऐम नव केजे...रे...(2)
ऐने धीरे ऐ धीरे तूँ बोलवा देजे रे
                आवकारो मीठो आपजे रे जी....

वातु ऐनी सांभळीने...आडू नव जोजे...रे...(2)
ऐने माथु ऐ हलावी होंकारो देजे रे
               आवकारो मीठो आपजे रे जी....

"काग" ऐने पाणी पांजे...साथे बेसी खाजे...रे...(2)
ऐने झांपाऐ सुधी तुं मेलवा जाजे रे
             आवकारो मीठो आपजे रे जी....

रचियता :- कविश्री दुला भाया काग (भगत बापू)


टाईप :- वेजांध गढवी

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