कागधाम मजादर खाते चालती मोरारीबापुना स्वरे रामकथानो
त्रीजो दिवस छे
तो मित्रो आजे कागबापुनी ऐक रचना माणीये
कविश्री दुला भाया कागे नीचेना छंदमां सज्जन मित्रनो
त्याग करवाथी थनार परिस्थिति माटे लोकोने वाकेफ करवा जुड़ा जुड़ा रूपकोनु प्रयोजन
कर्यु छे.
हंस
(मान सरोवरनो
त्याग करनार हंसनी दशानुं निरूपण)
त्याग हंसे कर्यो मानसरोवर तणो,
आवियो तट दधी नीर नायो
कोई ऐने पछी हंस केतुं नथी
हंस बगलानी हारे गणायो
मोती मल्या नहि त्यां मळी माछली
सुख लवलेश त्यांथी न लाध्यु
शरीर रझल्यु जुआ तीर सागर तणे
बकगणे हंस नूँ मांस चार्यु
लोह
(लाकड़ानी ईर्षा
आववाथी खीला जहाजमांथी छूटा पडवाथी खीलानी दशानुं निरूपण)
लोहने काष्ठ बे संग ज्यारे मल्या,
जा'ज थई सागरे सफ़र
कीधी ;
लोह वजने घणुं काष्ठ संगे रही,
अंकळ रत्नाकरे लेर कीधी ;
वहाण छे काष्ठ नूं ऐम सौ को कहे,
लोहथी ऐन मनमां सहाणु ;
तुर्त जुदुं थयूं काष्ठ तरतुं रह्यु,
लोह दरिया ने तळीये समाणुं .
रचियता कविश्री दुला भाया काग
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