रावण नो पत्र
कागळ वांचे श्री रधुनाथ जी.
वांचे श्रीरधुनाथ लखीयो रावण केरे हाथ कागळ...
वांचे श्रीरधुनाथ लखीयो रावण केरे हाथ कागळ...
मेधनाथना मरणथी मारे आंगणे उल्कापात जी (2);
ऐनी करी लउं छेल्ली क्रिया(2), कोई उपाडे नही हाथ.
कागळ-1.
ऐनी करी लउं छेल्ली क्रिया(2), कोई उपाडे नही हाथ.
कागळ-1.
वेरीकेरा दुःखनी वातुं, सहे न सीतानो नाथ जी,(2),
"ईन्र्दजितने अंजलि देवा(2), हुं चालीश तारी साथ."
कागळ-2.
"ईन्र्दजितने अंजलि देवा(2), हुं चालीश तारी साथ."
कागळ-2.
राधवजीऐ नजरे जोयो, मंदोदरीनो विलापजी जी(2),
शरीरकेरी शुध्द्रि भुल्या(2) रावणे जाल्यो हाथ.
कागळ-3.
शरीरकेरी शुध्द्रि भुल्या(2) रावणे जाल्यो हाथ.
कागळ-3.
"रावण राजा ! तारे ने मारे संप थई जात जी (2);
साथे रही आ जगतकेरु(2), कल्याण करीने जात"
कागळ-4
साथे रही आ जगतकेरु(2), कल्याण करीने जात"
कागळ-4
"काग हरीनी अंजली झीले, मेधनाथनो हाथजी(2);
विभीषणने भाळी भागे(2), रावण तनुज नी राख.
कागळ-5.
विभीषणने भाळी भागे(2), रावण तनुज नी राख.
कागळ-5.
रचियता :- कवि श्री दुला भाया काग (भगत बापु)
टाईपींग- लाभुभाई गढवी
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