कवित( 2 )
मान अपमान नांहि, मद अभिमान नांहि,
पाप से पिछान नांहि, आत्मा उदार है.
पाप से पिछान नांहि, आत्मा उदार है.
कामना न झंखना न, शंखना न काऊ हु मे,
लिखना सदैव सत्य, वृती तदाकार है.
लिखना सदैव सत्य, वृती तदाकार है.
शोच हे न संग हे न, राग हे न रंग हे न,
भ्रम हे न भंग हे न, गुन के आगार है.
भ्रम हे न भंग हे न, गुन के आगार है.
'पालु' मन रंच हु, प्रपंच को न लेश जामे,
नमस्कार नमस्कार, ताहि नमस्कार है.
नमस्कार नमस्कार, ताहि नमस्कार है.
:- भावार्थ:- ( मान के अपमान, मद के अभिमान अने पापथी जेने ओळखाण नथी. कामना, झंखना अने शंका कुशंका जेने जगत प्रत्ये छे नहि, जे सदा सत्य ने ज जूऐ छे. जेनी तदाकार ईश्वर मां वृत्ति छे.जेने राग के रंग भ्रमणा के भांगी पडवु जेनामां नथी. जेने निराशा नथी. गुणों ना जे सदन छे. जेना मनमां लेशमात्र प्रपंच नो प्रवेश नथी ऐवा संत ह्रदयने मारा वारंवार नमस्कार छे.)
(सुबोध बावनी)
( चारण महात्मा श्री पालु भगत// डायाभाई गढवी (मोटी खाखर))
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