. || गझल ||
रचना : जोगीदान गढवी ( चडीया)
रचना : जोगीदान गढवी ( चडीया)
ना कहे भिष्म पीता, के ना ई द्रोंण कहे..
चारणो बिन्न कहो, बिजुं ते कोंण कहे....
चारणो बिन्न कहो, बिजुं ते कोंण कहे....
जांण कारो तो बधी, वातडी ने समजे छे
मानवुंज जेने नथी, ऐ वात मोंण कहे....
मानवुंज जेने नथी, ऐ वात मोंण कहे....
कृष्ण जेवाय अहीं, करे छे कोठा नी..
सात मां व्युह ने तो, छतां ई छोंण कहे..
सात मां व्युह ने तो, छतां ई छोंण कहे..
सर्व सक्ती हती जे, सूरज ने थंभावे
अडधुं जे समज्या छे, ई एने ओंण कहे..
अडधुं जे समज्या छे, ई एने ओंण कहे..
दान जोगी शुं कहुं, तूं साव भोळो पडे.
बात गेहरी ने बधा, हवा मां बोंण कहे...
बात गेहरी ने बधा, हवा मां बोंण कहे...
ना कहे भिष्म पीता, के ना ई द्रोंण कहे..
चारणो बिन्न कहो, बिजुं ते कोंण कहे....
चारणो बिन्न कहो, बिजुं ते कोंण कहे....
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