पारेवडी...
पेहला खोळानी दीकरी होय त्यारे परिवार जनो तेने तेडी तेडी ने फरता होय छे..पण दीकरो जन्मे ऐटले ऐने ऐनुं मानपान दीकरा ने मळवा मांडे..भाई माटे नानी चानकी मा बनावती होय दीकरी ने पण ईच्छा होय पण कही न सकती होय ..त्यारनी दीकरी नी मनो वेदना..शुं हसे ?
पिता ना घरे पण एने पाराका घरनी वस्ती कहे अने सासरीया पण पारकी जणी कहे हवे मारे पोतानुं कोने केहवुं ? कंईक आवा सवालो ने काव्य रुपे आपनी सामे मुकु छुं ..कदाच आपने गमशे ....
. || पारेवडी ||
. राग ; आगमवांणी ने मळतो
. रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)
पेला रे खोळा नी भोळी पारेवडी...
गाय अने करे छो गुल तान रे...
छांनी रे रुवे छे ..ऐने तमे सांभळो .
भाई त्यारे थासे साचु भान रे.....पेला रे...टेक
भेळो रे जमाडे बापु ..भाई ने ...
ताळीयुं दईने लीये तान रे...
विर रे आव्यो ने मने सउ विहर्या ..
कोने हवे खोळे बेहुं कान रे....पेला रे ...०१
चुले रे चडे छे विर नी चानकी...
एवा हसे ऐनां ये अर मान रे...
नाखे रे निहाको कूंणुं ऐनुं काळजुं..
मागे ऐतो पेला जेवुं मान रे.....पेला रे...०२
पिता रे कहे ई वसती पारकी...
सासरीया करे ऐवीज सान रे...
आत्यमो कहे के हवे कोंण आपणु..
जरा मने क्योने जोगीदान रे...पेला रे..०३
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