|| बोलता नथी ||
हुं कही नथी शकतो,अने ऐ बोलता नथी,
वाय छे वायरो, छता अमे डोलता नथी.
मारा-मारा कही पराया दीशे, कोण जाण केम,
साथे उभा ऐम, जाणे ओळखता नथी........!
जुऐ रोज ऐ स्वप़्न मारा, लई लांबी निद्रा,
पण जोई ऐमनी मुद्रा, जाणे अमे गमता नथी......!
आम तो पडछाई ऐ तमे देखाव, अंधारे पण न ओलाव,
रोज नो आ बोलाव, छता ऐ सांभळता नथी......!
हुं तमारो अने कविता ऐ तमारी, नित बने न्यारी,
रोज लखु शायरी,छता ऐ गाता नथी......!
'वरदान' हशो मौन क्या सुधी, बंधाई छे जीदंगी,
आववु पडशे अहीं,छता ऐ समजता नथी.....!
:- वरदान गढवी.
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