कवि काग बापुना मुखे बोलायेल रामायणना केटलाक संकलित अंशो...!
माणसनुं ज्यारे खराब थावानुं होय त्यारे गमे तेवा डाह्या माणसनुं डहापण ऐनामांथी राम राम करीने हाली नीकळे छे.
'' ऐ मायारुपी मृगलो आव्यो ऐनुं साव सोनानुं शरीर ''
मृगलानुं शरीर साडा चार पांच मणनुं थाय, चार पांच मण सोनुं कांई पण महेनत विनानुं, हळ हाकया विनानुं, भेंसु दोहया विनानुं, खाण खोदया सिवायनुं,
'' श्रम विनानुं सोनुं लेवा घोडया श्री रधुवीर ''
महेनत विनानुं सोनुं लेवा भगवान ज्यारे दोडया, ऐक बाण मारवुं, मृगलो मरी जाय अने पांच मण जेवुं सोनुं मळे, पण रामे शुं मेळव्युं ?
'' ऐणे जानकीनुं जोखम खेडयुं रे.
ऐनी मढुलीमां आज कागडा पडे..
मारी सीताने कोणे हेरी..
शकित चाली गई, शकित विनानो माणस नकामो, लोको शकितना उपासक छे. लाकडामांथी शकित जाय त्यारे भारोट भांगी जाय. घरतीमांथी शकित जाय त्यारे कण कण नोखा पडी जाय, ऐम माणसमांथी शकित जाय त्यारे माणस असकत थाय छे.
रामनी शुं दशा थई के,
'' ऐनी मढुलीमां कागडा पडे, ऐवी सीताने कोणे हेरी.. अाज रधुपति राधव रुदन करे...!
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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