जे कुळमां आई आवळ, आई वरुडी अने चारण महात्मा ईसरदासजी तथा सदगुरु ब्रह्मानंद स्वामीऐ जन्म घारण कयोॅ छे ऐवा देवकुळमां जन्म मळवो ऐ आपणा पर परमकृपाळु परमात्मा अने जगत जननी जगदंबानी असीम कृपा होवानुं जणाय छे. परंतु ऐ कुळनी परंपरानुं जतन करवुं जरुरी छे.
आदि काळथी चारणो माटे कहेवाय छे के ' महेश डाडो अने शेष नानो '!
त्रिलोकपति शिवजी अने पावॅतीना संतानो चारणोनो पैतृक वारसो सबळ छे. तो मातृपक्षे नागकूळनी विरासत मळी छे.
आ कुळमां जन्म लेनार चारण केवो होवो जोईऐ, ऐ संदॅभे चारण कुळ रत्न पूज्य हरिदानजी मुनि कहे छे के,
सत्यनो उपासक होय ते ज खरो चारण छे, ऐ ज देव छे. सरस्वतीनो उपासक चारण बीजानी निंदा न करे, खोटुं न करे, बीजानी निंदा करेे ऐ देव नहि दैत्य छे. साचा चारण बनवुं होय तो निंदा छोडी देजो अने माताजीनी उपासना छोडता नहि. उपासना करवाना नीम लेजो अने ते पाळजो. भगवतीनी उपासनाथी माणसने विजय मळे छे.
महाभारतमां श्री कृष्ण अजुॅनने कहे छे के, ' हे अजुॅन ! जो तारे विजय प्राप्त करवो होय तो चारणो जेनी उपासना करे छे एे भगवती दुगाॅनी उपासना कर. '
अा बतावे छे के जुना जमानाथी चारणोना ईष्टदेव भगवती जगदंबा छे. ऐने तमे भूलता नहि. '' !
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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