रावळ जाम नामनो राजा मोटो कवि पूजक थई गयो, ऐनी कचेरी चारण कविओनुं परीक्षालय हती. एेक मेलोधेलो चारण अावी चडयो. ईषाॅळु कवि- सभा हसी. पुण्यप्रकोप दबावीने नवा आवनारे पादपूतिॅ मूकी :
'' आघ गीयण वलंभ रही-
( अरघी पृथ्वी आकाशमां लटकी रही )
' रावळ जाम ! तमारा कविराजोने आटलुं चरण आपीने हुं द्वारिका जाउं छुं. पाछो वळु त्यारे बाकीना त्रण चरण तैयार करावी राखजो. ऐम कही चारण गयो, विकट पादपूतिॅ : चारणो मुंझाया :
युकित सूझी :
चारण जातिनो नियम के तीथॅ-क्षेत्रमां स्नान करती वखते पोतानी नवी काव्य-कृतिने प्रगटपणे गाईने प्रभु-चरणे घरे. लुच्चा चारणोऐ पोताना ऐक चतुर नाना छोकराने हजामनो वेश सजावी पेला यात्रिक चारणनी पाछळ मोकल्यो. गोमतीजीना धाट उपर ऐकान्त शोघीने चारणे स्नाननी तैयारी करी. हजाम वेशघारी छोकरो आवी चडयो, चारणे मुंडन कराव्युं. गोमतीजीनां छाती समाणां जळमां ऊभा रहीने चारणे पोतानो दुहो ललकायोॅ :
आघ गीयण वलंभ रही,
कव्य चडिया तोखार !
तें उतयोॅ लखघीर रा,
भोरिंग सरथी भार !!
( हे लखघीर जामना पुत्र रावळ जाम ! कविओने तें ऐटला धोडा बक्ष्या. के धोडा चाल्या त्यारे बहु घूळ ऊडी. केटली घूळ ? अरघी पृथ्वीनी घूळ उडीने आकाशे चडी, शेषनागना शिर परथी, हे राजा, तें अरघी पृथ्वीनो भार उतायोॅ )
हजामवेशघारी बाळके पलकमां ज ऐ पंकितओ कंठे करी नाखी. ऐ नाठो, नगर गयो. पादपूतिॅ हाथ आवी गई. यात्राळु चारण पाछो आव्यो. कचेरीमां ऐणे पोतानो दुहो चोराई गयेलो मालूम पडयो, चारणोना छोकरांमांथी पेला हजामवेशघारी बाळकने ऐणे ओळख्यो. सभामां विनोद थई रहयो. ऊंचा सरपाव अपाया.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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