छप्पय "चारण"
चारण वो सूध चित्त,मित्त हथ प्रित्त मिलावे चारण वो मन जीत्त,रीत्त सब नित्त निभावे चारण वो सत काज,राज अरू पाट भुलावे चारण वो नीज मान, जान पर खेल ही जावे जूठ सहे नही जोगडा, कहत मूखोमुख मान है ध्रम चारण तब तक धरे, जब तक घट मे प्रान है
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