. || कवित ||
रचना :- चारण महात्मा श्री पालु भगत
राग जग त्यागे, अनुरागको आराधे नित,
जाग जाग सोचे, वैराग ज्ञान बढे हम.
नाक काट नारी के, नाक ही को काट कर,
नाक वास आस त्यागे, वाक वाक गढे हम,
चारन की जननी के, पयकी खमीरता को,
सत्य दिखलावे, कलीकाल हुं से लढे हम,
"पालु" भनंत मित्र, हरि कृपा हरि हुकी,
सत संग मढे नित्य, रामायन पढे हम.
रचना :- चारण महात्मा श्री पालु भगत (ववार-कच्छ) हाले काळीपाट-राजकोट
संदर्भ :- श्री सुबोध बावनी मांथी पाना नं-125 पर थी
टाईप :- www.charanisahity.in
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