चारणी भाषामां जे लालित्य तेमज मीठाश जोम अने जोश छे ते जगतभरनी भाषामां नहीं जडी शके, चारणी साहित्य अणमोल छे. गुजराती भाषानी चार पैसा किंमत आंकनार पर दया आवे छे आ भाषानी किंमत तो चार रुपिया जेटली छे.
छतां मोंधवारी, कपरा संजोगो राजकीय तेमज आथिॅकताना समयमां साहित्यकारो तेने माटे कंई करी शकता नथी, जीवन ज ज्यां मुश्केल बनी गयुं छे त्यां आजिविकाना साघनो मेळववा पाछळ मनुष्यने बघी शकित खचीॅ नाखवी पडती होय त्यां आ साहित्यनी प्रवृति कोण अने केम हाथ पर लई शके ?
आ किमती साहित्य घीमे घीमे मृतपाय स्थिति प्राप्त करी रहयुं छे जे थोडा साहित्यकारो छे ते उंमरे पहोंची गया छे. परंतु युवावगॅने आ तरफ वाळवानो समय पाकी गयो छे. नहीं तो गुजरातनुं आ किंमती घन वेडफाई जशे.
चारणी साहित्यना उत्कषॅनी तैयारी करवानी जरुर छे, कोईऐ तो आ प्रश्न हाथ घरवो ज पडशे, साहित्यप्रेमीओऐ सेवाभावीओऐ अा कायॅ उपाडी लेवुं जोईऐ.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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