माणसने कहेवुं पडे छे के तुं माणस था...!
गामडा गाममां बळदने कोहे जोडे ऐटले पयाना मापनी खबर पडे. पंदर डगला हाल्यो छुं ऐटले कोह आवी गयो हशे. सोळमुं डगलुं बळद नो हाले. माथु आम नमावे त्यां कोह ठववाई जाय. बळदने खबर पडे छे के आगळ नो जवाय. अने आ माणह भटकाय नहीं त्यां सुघी पाछो नो वळे.
आमां बळद सारो के माणस सारो ? बळदने तमे खीले बांघशो तो तोडावशे नही बोलो..! ऐने खबर छे के मारो मालिक बांघीने गयो छे. मने पाणी पीवडावे छे, खड खवरावे छे. मारे तोडावाय नहीं. माणसने आपणे माणेकचोकमां उभो राखीऐ तो ते बसस्टेन्ड मोर पूगे. आपणने पाछो कहे तमे त्यां नो आव्या ते हुं आई आव्यो. हा हवे मर, तुं हवे अमारी हारे मर.
आमा बळद सारो के माणस सारो ? बळद जुगार रमे ? तो के ना. मरद रमे. गायुं फिलम जोवा जाय ? तो के ना. बायु जाय..!
स्व हरसुर गढवीनुं साहित्य.
कवि भरत उमिॅल कहे छे,
नथी हसरत मने दिलमां कोई महान बनवानी,
चाही सुख-संपति केवळ महाघनवान बनवानी.
बनी सहभागी हुं सौनो खुशी-गम थोडां वहेंचीने,
उरे अभिलाष छे ऐक ज फकत ईन्सान बनवानी.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें