( योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंदजी के कुछ मंत्रों को इस काव्य में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है)
।। विवेक वाणी ।।
* रोमरोम को जागृत करके रक्तबिंदु में आश भरदे।
श्वास श्वास में चेतन जगाकर, जीवन अवसर सार्थक करदे।
भुल जा तुं बीते कल को, आते पल की चिंता छोड।
ऊठ जाग निरंतर लक्ष्य साधने, भीतर की तुं द्विधा छोड।
* यही क्षण ऊतम अद्विती, न गया न आएगा कभी।
इसको चुके नही चलेगा, यही दाव है समझ आखरी।
पल जीता तो जीवन जीता, बीता पल जीवन गया बीत।
यही क्षण है दिग्विजय की, ऊठा शस्त्र विजय निश्चित।
* हारजीत के क्षुल्लक भेद सब, दुर हटादे अंतर से।
कर्तव्य अपने आप मे दिग्विजय, भाग्य लिख तुं निज कर से।
लक्ष्य चिंतन ऊर निरंतर समर गीत तुं गाएजा।
परिवर्तनशील कालचक्र पर, अटल पताका लहेराएजा।
* निंदास्तुति ऊभय समदरशी, करनेवाले करते रहेंगे।
ठान जिगर से दृढ संकल्प को, तेरी कहानी युग कहेंगे।
तुं वीर विवेकानंद का शिष्य, ठाकुर की तुझ पर अमीछाया।
सत्य सनातन "जय" निर्भय हो, गहरे स्वर से कर गाया।
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- कविः जय।
- जयेशदान गढवी।
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